भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में जगह मिली तो हिन्दी की कमर टूट जाएगी.
- डॉ. अमरनाथ
हमारी हिन्दी आज टूटने के कगार पर है. कुछ स्वार्थी लोगों ने भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की माँग तेज कर दी है. भोजपुरी क्षेत्र के दो माननीय सांसदों ने संसद में फिर से यह माँग की है. पिछले 8 अगस्त और इसके बाद 15 नवंबर को इस माँग के समर्थन में दिल्ली के जंतर मंतर पर धरना दिया गया. ‘जन भोजपुरी मंच’ नामक संगठन के लोग हमारे प्रधान मंत्री श्री मोदी जी को इस आशय का संदेश भेजकर उनपर अपना दबाव बना रहे हैं. दुख इस बात का है कि 11नवंबर 2016 को हमारे गृहमंत्री माननीय राजनाथ सिंह ने भी लखनऊ की एक सभा में बयान दे डाला कि भोजपुरी को संविधान की आठवी अनुसूची मे शामिल किया जाएगा. इतने गंभीर मुद्देपर बयान देने से पहले कम से कम उन्हें देश के प्रतिष्ठित भाषा वैज्ञानिकों, विश्वविद्यालयों के हिन्दी विभागों, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय, साहित्य अकादमी जैसी प्रतिष्ठित संस्थाओं से सुक्षाव अवश्य ले लेना चाहिए. सिर्फ चुनाव में वोट के लिए हिन्दी और हिन्दी समाज को विखंडित और कमजोर करने वाले बयान भाजपा जैसी विकास की पक्षधर और राष्ट्रवादी पार्टी की प्रकृति के सर्वथा प्रतिकूल है. हम माननीय गृहमंत्री श्री राजनाथ सिंह से आग्रह करते हैं कि वे अपने बयान पर पुनर्विचार करें. संविधान की आठवी अनुसूची में भोजपुरी के शामिल होने से राजभाषा हिन्दी को जो क्षति होगी उसका संक्षिप्त विवरण हम क्रमबद्ध रूप में यहाँ दे रहे हैं.-
- भोजपुरी के आठवीं अनुसूची में शामिल होने से हिन्दी भाषियों की जनसंख्या में से भोजपुरी भाषियों की जनसंख्या घट जाएगी. स्मरणीय है कि सिर्फ संख्या-बल के कारण ही हिन्दी इस देश की राजभाषा के पद पर प्रतिष्ठित है. यदि यह संख्या घटी तो राजभाषा का दर्जा हिन्दी से छिनते देर नहीं लगेगी. भोजपुरी के अलग होते ही ब्रज, अवधी, छत्तीसगढ़ी, राजस्थानी, बुंदेली, मगही, अंगिका आदि सब अलग होंगी. उनका दावा भोजपुरी से कम मजबूत नहीं है. ‘रामचरितमानस’, ‘पद्मावत’, या ‘सूरसागर’ जैसे एक भी ग्रंथ भोजपुरी में नहीं है.
- ज्ञान के सबसे बड़े स्रोत विकीपीडिया ने बोलने वालों की संख्या के आधार पर दुनिया के सौ भाषाओं की जो सूची जारी की है उसमें हिन्दी को चौथे स्थान पर रखा है. इसके पहले हिन्दी का स्थान दूसरा रहता था. हिन्दी को चौथे स्थान पर रखने का कारण यह है कि सौ भाषाओं की इस सूची में भोजपुरी, अवधी, मारवाड़ी, छत्तीसगढ़ी, ढूँढाढी, हरियाणवी और मगही को शामिल किया गया है. साम्राज्यवादियों द्वारा हिन्दी की एकता को खंडित करने के षड़्यंत्र का यह ताजा उदाहरण है और इसमें विदेशियों के साथ कुछ स्वार्थांध देशी जन भी शामिल हैं.
- हमारी मुख्य लड़ाई अंग्रेजी के वर्चस्व से है. अंग्रेजी हमारे देश की सभी भाषाओं को धीरे धीरे लीलती जा रही है. उससे लड़ने के लिए हमारी एकजुटता बहुत जरूरी है. उसके सामने हिन्दी ही तनकर खड़ी हो सकती है क्योंकि बोलने वालों की संख्या की दृष्टि से वह आज भी देश की सबसे बड़ी भाषा है और यह संख्या-बल बोलियों के जुड़े रहने के नाते है. ऐसी दशा में यदि हम बिखर गए और आपस में ही लड़ने लगे तो अंग्रेजी की गुलामी से हम कैसे लड़ सकेंगे?
- भोजपुरी की समृद्धि से हिन्दी को और हिन्दी की समृद्धि से भोजपुरी को तभी फायदा होगा जब दोनो साथ रहेंगी. आठवीं अनुसूची में शामिल होना अपना अलग घर बाँट लेना है. भोजपुरी तब हिन्दी से स्वतंत्र वैसी ही भाषा बन जाएगी जैसी बंगला, ओड़िया, तमिल, तेलुगू आदि. आठवीं अनुसूची में शामिल होने के बाद भोजपुरी के कबीर को हिन्दी के कोर्स में हम कैसे शामिल कर पाएंगे? क्योंकि तब कबीर हिन्दी के नहीं, सिर्फ भोजपुरी के कवि होंगे. क्या कोई कवि चाहेगा कि उसके पाठकों की दुनिया सिमटती जाय?
- भोजपुरी घर में बोली जाने वाली एक बोली है. उसके पास न तो अपनी कोई लिपि है और न मानक व्याकरण. उसके पास मानक गद्य तक नहीं है. किस भोजपुरी के लिए मांग हो रही है? गोरखपुर की, बनारस की या छपरा की ?
- कमजोर की सर्वत्र उपेक्षा होती है. घर बँटने से लोग कमजोर होते हैं, दुश्मन भी बन जाते हैं. भोजपुरी के अलग होने से भोजपुरी भी कमजोर होगी और हिन्दी भी. हमारे भीतर हीनताबोध बढ़ेगा. इतना ही नहीं, पड़ोसी बोलियों से भी रिश्तों में कटुता आएगी और हिन्दी का इससे बहुत अहित होगा. मैथिली का अपने पड़ोसी अंगिका से विरोध सर्वविदित है.
- संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी को स्थान दिलाने की माँग आज भी लंबित है. यदि हिन्दी की संख्या ही नहीं रहेगी तो उस मांग का क्या होगा?
- संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं में भोजपुरी को माध्यम भाषा के रूप में स्वीकार करना पड़ेगा और भोजपुरी के साहित्य को भी एक विषय के रूप में रखना पड़ेगा. परीक्षक भी भोजपुरी के विद्वान ही होंगे. ऐसी दशा में मूल्यांकन में परीक्षकों के भीतर क्षेत्रीयता का भाव विकसित होगा और अखिल भारतीय सेवाओं के लिए चयनित होने वाले लोक सेवकों का स्तर गिरेगा.
- भोजपुर राज्य की मांग को बल मिलेगा और हिन्दी क्षेत्र के और अधिक टुकड़े होंगे. मिथिलाँचल की मांग होने लगी है. अलग राज्य बनने से होने वाला खर्च जनता को ही वहन करना पड़ेगा. उल्लेखनीय है कि विकास सुशासन से होता है छोटे या बड़े राज्य बनने से नहीं. हां, इससे नेताओं की जमात और तैयार हो जाएगी जिसका खर्ज जनता को ही वहन करना पड़ेगा..
- ऐसी मांग करने वाले लोग अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में पढ़ाते हैं, खुद हिन्दी की रोटी खाते हैं और मातृभाषा के नाम पर भोजपुरी को पढ़ाई का माध्यम बनाने की माँग कर रहे हैं, ताकि उनके आस पास की जनता गँवार ही बनी रहे और उनकी पुरोहिती चलती रहे. क्या मेडिकल और इंजीनियरी की पढ़ाई भोजपुरी में कराना संभव है? तमाम प्रयासों के बावजूद आज तक राजभाषा हिन्दी में भी उनकी पढ़ाई करा पाने में हम सफल नहीं हो सके.
- हमें देखना होगा कि इसकी मांग करने वाले कौन लोग हैं. कुछ नेता, कुछ अभिनेता और कुछ बोलियों के साहित्यकार. जिन साहित्यकारों को उनकी हिन्दी कृतियों की स्तरहीनता के कारण प्रतिष्ठा नहीं मिल सकी उन्हें भोजपुरी में लिखने के लिए तरह तरह के पुरस्कार जरूर मिलने लगेंगे क्योंकि वहाँ कोई प्रतियोगिता नहीं होगी. अभिनेताओं को उनकी फिल्मों के लिए पैसे व प्रतिष्ठा दोनो मिलेगी और नेताओं को वोट, जिसे अपनी भोजपुरी की मान्यता के नाम पर इस क्षेत्र की सीधी सादी जनता भावनाओं में बहकर दे देगी. किन्तु हिन्दी क्षेत्र की आम जनता को इसकी कितनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी, इसका आकलन कर पाना भी संभव नहीं है,.
- स्वतंत्रता के बाद हिन्दी की व्याप्ति हिन्दीतर भाषी प्रदेशों में भी हुई है. हिन्दी की संख्या और गुणवत्ता का आधार केवल हिन्दी भाषी राज्य ही नहीं, अपितु हिन्दीतर भाषी राज्य भी हैं. अगर इन बोलियों को अलग कर दिया गया और हिन्दी का संख्या-बल घटा तो वहाँ की राज्य सरकारों को इस विषय पर पुनर्विचार करना पड़ सकता है कि वहाँ हिन्दी के पाठ्यक्रम जारी रखे जायँ या नहीं. इतना ही नहीं, राजभाषा विभाग सहित केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय अथवा विश्व हिन्दी सम्मेलन जैसी संस्थाओं के औचित्य पर भी सवाल उठ सकता है.
निष्कर्ष यह कि भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की माँग भयंकर आत्मघाती है. डॉ. राजेन्द्र प्रसाद और स्व. चंद्रशेखर जैसे महान राजनेता तथा महापंडित राहुल सांकृत्यायन और आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी जैसे महान साहित्यकार ठेठ भोजपुरी क्षेत्र के ही थे किन्तु उन्होंने भोजपुरी को मान्यता देने की मांग का कभी समर्थन नहीं किया. आज थोड़े से लोग, अपने निहित स्वार्थ के लिए बीस करोड़ के प्रतिनिधित्व का दावा करके देश को धोखा दे रहे है. हम माननीय प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी तथा माननीय गृहमंत्री श्री राजनाथ सिंह जी से आग्रह करते हैं कि हिन्दी की किसी भी बोली को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल न करे और इस विषय में यथा स्थिति बनाए रखें. हम अपने देश के प्रबुद्ध नागरिकों, साहित्यकारों, राष्ट्र भक्तों और हिन्दी प्रेमियों से भी आग्रह करते हैं कि टुकड़े टुकड़े होकर विखरने के कगार पर खड़ी हिन्दी को बचा लें. आज हम सबका दायित्व है कि हिन्दी को विखरने से बचाने के लिए अपने प्रधान मंत्री जी तथा गृहमंत्री जी को लिखें, उन्हें ट्वीट करें और जिस भी तरह से संभव हो हिन्दी की शक्ति को बचाने के लिए लामबंद होकर संघर्ष करें. हमारी कोई मांग नहीं है. हम इस विषय में सिर्फ यथास्थिति बनाए रखने का आग्रह भर कर रहे हैं. (डॉ. अमरनाथ, संयोजक, हिन्दी बचाओ मंच)
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