मां डॉक्टर, पिता सेना में अफसर और बेटा अघोरी
पटना। बासंघाट श्मशान में गंगा किनारे दो चिता जल रही है। जलाने आए लोग गमगीन बैठे हैं। वहीं दूसरी ओर, जलती चिताओं के ठीक सामने एक फूस की झोपड़ी में बढ़ी हुई दाढ़ी और जटाधारी बाबा गांजे की चिल्म भर रहे हैं। ये अघोरी साधु हैं। अपनी साधना के लिए यहां पर आए हैं। अघोरी साधू को लोग पंखा बाबा के नाम से जानते हैं। पंखा बाबा के बचपन का नाम लक्ष्मी नारायण ऊर्फ गौरी गिरी था। इनका परिवार हाई प्रोफाइल है। इनकी मां लंदन में डॉक्टर हैं तो पिता रिटायड लेफ्टिनेंट हैं। ये अपने बच्चे(पंखा बाबा) को डॉक्टर बनाना चाहते थे। लेकिन पंखा बाबा को पड़ने में मन नहीं लगता था। इस कारण उनकी अक्सर स्कूल में पिटाई भी हुआ करती थी। पंखा बाबा मूल रूप से जालंधर के रहने वाले हैं। एक दिन लेट से स्कूल पहुंचने पर मास्टर ने पिटाई कर दी। इसपर पंखा बाबा को गुस्सा आ गया। वे अपने मास्टर को पत्थर मार कर सिर फोड़ दिया। वे कहते हैं कि ना मैं मास्टरजी का सिर फोड़ता, ना घर छोड़ता। मास्टरजी का सिर फोड़ने के बाद मां-पिताजी से बचते-बचाते दिल्ली पहुंच गए वहां से मुंबई पहुंच गए। कई दिनों तक भूखे रहे पर किसी से कुछ मांगा नहीं। एक महात्माजी ने खाना खिलाया। और साथ ले गए। फिर चेला बना लिया। 12 साल की उम्र में रोज जंगल में कुल्हाड़ी लेकर लकड़ियां काटते। वे साधु महंथ गणेश गिरी थे। बाबा ने बताया कि आज जो कुछ हूं मां भगवती की कृपा से हूं। उन्हीं की बदौलत हूं। कोई तंत्र-मंत्र नहीं करता, बस माता की भक्ति में मस्त रहता हूं। बाबा करीब 75 साल के हो चुके अघोरी बाबा को परिवार के लोग दो बार उन्हें लंदन ले गए, पर मन नहीं लगा और बाबा फिर अपनी पुरानी जगह पहुंच गए।
पटना में अपने भक्तों के आग्रह पर नवरात्र में मां भगवती की आराधना करने आए हैं। कहा, मां भगवती की कृपा से बांसघाट सिद्धेश्वरी काली मंदिर के सामने श्मशान में आराधना का अवसर मिला। जो लोग नवरात्र में हैं और जो नहीं भी हैं, सबके कल्याण की मंगल कामना के लिए भगवती की आराधना करते हैं। हर साल नवरात्र में यही काम है। बाबा ने कहा कि देश के सैनिक सीमा पर अपनी दिलेरी दिखा रहे हैं। उनके कल्याण और देश की सुरक्षा के लिए मां से कामना कर रहे हैं। पाकिस्तान में सर्जिकल स्ट्राइक करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी जी को माता और शक्ति दें, यह भी कामना है। बाबा के साथ रहे अघोर संप्रदाय के ही पंडित जयराम तिवारी उर्फ साधु जी ने बताया कि बाबा पूरे नवरात्र कुछ नहीं खाते। सिर्फ चाय पीते हैं और गांजे का कश लगाते हैं। आम दिनों में भी जब मन हुआ तो कुछ खा लिया, नहीं तो 15-15 दिनों तक कुछ नहीं खाते पीते। जिंदगी एकदम फक्कड़ों वाली। अपने नाम पंखा बाबा की कहानी बाबा ने बताई कि असम में बहुत पहाड़ हैं कामरूप कामाख्या में रहते हुए पहाड़ों के बीच से गुजरने के दौरान बहुत गर्मी लगती थी, तब मां मां चिल्लाते हुए पंखा पंखा कहता था। तभी से लोगों ने पंखा बाबा नाम रख दिया।
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