इस तरह शुरू हुई यह पूजा : अनुश्रुति है कि नि:संतान राजा प्रियवंद से महर्षि कश्यप ने पुत्र की प्राप्ति के लिए यज्ञ कराया तथा राजा की पत्नी मालिनी को आहुति के लिए बनाई गई खीर दी। इससे उन्हें पुत्र की प्राप्ति तो हुई, लेकिन वह मरा हुआ पैदा हुआ। राजा प्रियंवद पुत्र को लेकर श्मशान चले गए और उसके वियोग में प्राण त्यागने लगे। कहते हैं कि श्मशान में भगवान की मानस पुत्री देवसेना ने प्रकट होकर राजा से कहा कि वे सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण षष्ठी कही जाती हैं। उन्होंने राजा को उनकी पूजा करने और दूसरों को इसके लिए प्रेरित करने को कहा। उन्होंने ऐसा करने वाले को मनोवांछित फल की प्राप्ति का वरदान दिया। इसके बाद राजा ने पुत्र की कामना से देवी षष्ठी का व्रत किया। उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। कहते हैं कि राजा ने ये पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को की थी। तभी से छठ पूजा इसी दिन की जाती है।
माता सीता ने की सूर्य की आराधना : छठ से जुड़ी एक कहानी भगवान राम व माता सीता से भी जुड़ी है। कहा जाता है कि जब राम-सीता 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे तो रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए उन्होंने ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूर्य यज्ञ करने का फैसला लिया। भगवान राम ने यज्ञ के लिए ऋषि मुग्दल को आमंत्रित किया। मुग्दल ऋषि ने मां सीता पर गंगाजल छिड़ककर पवित्र किया। इसके बाद कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया। तब माता सीता ने मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर छह दिनों तक सूर्यदेव भगवान की पूजा की थी।
कर्ण ने सबसे पहले की सूर्य की पूजा : छठ से जुड़ी एक कहानी इसका आरंभ महाभारत कालीन बताती है। कहते हैं कि सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य की पूजा कर छठ पर्व का आरंभ किया था। भगवान सूर्य के भक्त कर्ण प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर उन्हें अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बने। आज भी छठ में अर्घ्य दान की परंपरा प्रचलित है।
इस पूजा से द्रौपदी को मिला मनोवांछित फल : एक और कहानी बताती है कि जब पांडव अपना राजपाठ जुए में हार गए तब दौपदी ने राजपाट वापस पाने की मनोकामना के साथ छठ व्रत किया था। इसके बाद पांडवों को अपना राजपाट वापस मिला था।
छठ 2016, एक नजर…
04 नवंबर (नहाय-खाय) : लोकपर्व छठ की शुरुआत 4 नवंबर (शुक्रवार) को होगी। इस दिन छठ व्रती सात्विक भोजन ग्रहण कर व्रत का संकल्प लेंगे। व्रती विशेषकर कद्दू की सब्जी का सेवन करते हैं। इस दिन को कद्दू-भात का दिन भी कहते हैं।
5 नवंबर (खरना) : सांध्यकालीन अर्घ्य के एक दिन पूर्व खरना का विशिष्ट महत्व का है। पूरे दिन उपवास रहकर व्रती शाम को खीर-रोटी का प्रसाद ग्रहण करते हैं। इस प्रसाद को मित्रों परिचितों को खिलाने की होड़ रहती है। इस बार इसका मुहूर्त शाम 5.58 बजे से 6.26 बजे के बीच है।
6 नवंबर (सांध्यकालीन अर्घ्य) : अस्ताचलगामी भगवान सूर्य की यह पूजा नदी, तालाब, पोखर के किनारे की जाती है। अब तो लोग घरों में भी पानी जमाकर सूर्य की पूजा करते हैं। इसमें सूर्यास्त के पहले डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। पटना में इस दिन सूर्यास्त संध्या 05.05 बजे होगा, इसलिए उस समय तक अर्घ्य दान का मुहूर्त है।
7 नवंबर (उदीयमान सूर्य को अर्घ्य) : सांध्यकालीन अर्घ्य केे बाद रातभर प्रतीक्षा की जाती है। इस साल सोमवार की सुबह 06.01 बजे सूर्योदय होना है, इसलिए इस समय उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। इसके साथ ही चार दिनों के छठ व्रत का समापन हो जाएगा।
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