जो साथ खेलते थे, अब देखते ही भूत समझ कर रोते हैं डर से
मिथुन को अपना चेहरा आईने में देखने से लगता है डर
चेहरा विकृत हो जाने से मिथुन को खाना खाने में भी काफी दिक्कत होती है।
अशोक प्रियदर्शी/सोनू कुमार
नवादा। 16 साल के मिथुन को छोटे बच्चे देख लें तो रोने लगते हैं। रात को वह घर से बाहर निकल जाए तो अनजान लोग उसे देख घबरा जाते हैं। जो कभी बचपन में उसके साथ खेला करते थे, आज उसे ह्यभूतह्ण समझ बैठते हैं। देखते ही नजर फेर लेते हैं। 11 साल से वह ऐसी ही जिंदगी जी रहा है। बिहार के नवादा जिले के तिलकचक गांव का रहने वाला मिथुन जब पांच साल का था तो उसके चेहरे पर एक फुंसी हो गई थी। उसका दर्द जब असहनीय हो गया तो पिता रामजी चौहान उसे गांव के ही एक डॉक्टर के पास ले गए। डॉक्टर ने दो दवाएं तीन दिन तक खिलाने को दीं। इन्हीं तीन दिनों में उसका चेहरा हमेशा के लिए विकृत हो गया। शरीर लाल पड़ गया। गांव वाले बोले- मिथुन को ह्यमाताह्ण निकल आई है। कुछ दिन उसके यूं ही ठीक होने का इंतजार किया, लेकिन बजाय सुधरने के मिथुन की शक्लो-सूरत बिगड़ती चली गई।
देखते ही भूत-भूत चिल्लाने लगते हैं बच्चे
इसके बाद मिथुन को नवादा सदर अस्पताल ले जाया गया। डॉक्टरों ने बताया- दवा रिएक्शन कर गई है, इसलिए ऐसा हुआ है। लंबा इलाज चलेगा। इलाज चलता रहा, लेकिन मिथुन का चेहरा ठीक नहीं हुआ। गांव के बड़े तो अब फिर भी उसे इस हाल में देखने के अभ्यस्त हो चुके हैं, लेकिन बच्चे अगर उसे देख लें तो भूत ही समझते हैं। 8 साल की उम्र में जब मिथुन प्राइमरी स्कूल में भर्ती कराया तो बच्चे उसे देखते ही भूत-भूत चिल्लाने लगे। ऐसे में स्कूल वालों ने भी उसे एडमिशन देने से मना कर दिया।
अपना चेहरा आईने में देखने से डरता है मिथुन
मिथुन खुद भी अपना चेहरा आईने में देखने से डरता है। चूंकि उसका अधिकतर वक्त बीमारी में बीता है, ऐसे में वह ठीक से बोलना भी नहीं सीख पाया है। पिता मजदूर हैं। बताते हैं- नवादा, गया और पटना के कई अस्पतालों में दिखा चुका हूं। अब इतना पैसा नहीं है कि किसी और बड़े अस्पताल ले जा पाऊं। डॉक्टर तो ठीक से उसकी बीमारी भी नहीं बता पाते हैं। अब तो इतना ही ध्यान रखते हैं कि वह कहीं गलती से रात को बाहर निकल जाए। मिथुन ज्यादातर घर में रहता है। कहता है- जो बचपन में साथ खेला करते थे आज मुझे देखकर भाग जाते हैं। जब उसका घर में मन नही लगता तो वह खेतों की तरफ बकरी चराने के लिए निकल जाता है।
पैसे की कमी से नहीं हो पा रहा सही इलाज
रामजी चौहान के मिथुन के अलावा चार और बेटे हैं। आर्थिक तंगी के बीच मिथुन का इलाज तो दूर परिवार को चलाना भारी पड़ता है। काफी मुश्किलों से पिछले साल मिथुन का विकलांग कार्ड बन पाया है, लेकिन कई जगह अपना दुखड़ा बताने के बाद भी कोई सरकारी मदद नहीं मिली है। मिथुन का परिवार बीपीएल कैटेगरी में आता हैं, लेकिन आवास की सुविधा भी नहीं मिल पाई है। राशन तक नहीं मिल पाता।
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