यहां मरने के बाद दफना दिए जाते हैं हिन्दू भी
निलेश कुमार.पीरी बाजार(लखीसराय).
गरीबी की मार किस तरह सभ्यता-संस्कृति तक को प्रभावित कर देती है, इसका उदाहरण लखीसराय जिले के पीरी बाजार क्षेत्र में देखने को मिल रहा है। यहां पहाड़ों व जंगलों से घिरे आदिवासी समाज के लोगों की दाह-संस्कार की परंपरा बदलती चली जा रही है। एक अन्य समुदाय की तरह यहां हिन्दू भी मरने के बाद जमीन में दफना दिए जाते हैं। सुन कर विश्वास न हो, लेकिन यह सच्चाई है। शव को दफनाने के चलन के पीछे किसी तरह का दबाव या अंधविश्वास नहीं है, बल्कि गरीबी के कारण यहां का आदिवासी समुदाय दाह-संस्कार का खर्च वहन नहीं कर पाता और मरने के बाद परिजनों के शव को मिट्टी में ही दफना दे रहा है।
पीरी बाजार व कजरा क्षेत्र के नक्सल प्रभावित इलाके टाली कोड़ासी, लठिया कोड़ासी, बरियासन, सुअरकोल, जमुनिया, मनियारा आदि गांवों में गरीबी एवं जिल्लत के मारे इन आदिवासी लोगों की यह मजबूरी हो चुकी है। कुछ दिन पूर्व इन गांवों में जाना हुआ था। मालूम हुआ कि यहां के करीब 20 प्रतिशत आदिवासियों द्वारा यह चलन पिछले कई वर्षों से अपनाया जा रहा है। ए लोग परिजनों के निधन के बाद शव को जलाते नहीं, बल्कि गांव के पास पहाड़ी जंगल में गड्ढा खोद कर मिट्टी डाल देते हैं और फिर पत्थर के नीचे दबा कर दफना देते हैं। पत्थर के ऊपर खाट रखने की भी बात सामने आई।
पीरी बाजार थाना क्षेत्र के टाली विशनपुर गांव के कारू बेसरा, बबलु बेसरा ने बताया कि जब से होश संभाला है तब से ही गांव के गरीब परिवार के लोगों को पहाड़ एवं खेते में ही शव को दफन करते देखते चले आ रहे हैं। बुजुर्ग बताते हैं कि हिन्दु कुल में जन्म लेने के बावजूद दाह-संस्कार की परंपरा नहीं अपना सकते। उन्होंने बताया कि शव को दफन कर उनकी याद में वहां पत्थर लगा दिया जाता है और दूसरा कारण शव को जानवरों से सुरक्षित रखना भी है।
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