बिहार की तवायफ मंडी, अब यहां मुजरा नहीं, होता है देहव्यापार
मुजफ्फरपुर। किसी जमाने में जहां बेली के फूलों की खुशबू महका करती थी, जमीदारों की महफिल सजती थी। कानों में पाजेब के घुंघरुओं की झंकार और तबले की थाप से समा गूंज जाती थी, वहां अब न तो महफिलें सजती हैं और न ही उनके कद्रदान ही रह गए हैं। यह हालात हैं बिहार के मुजफ्फरपुर की तवायफ मंडी की। यहां से लोग उन्हें अपने घर के किसी बड़े कार्यक्रम में बुलाते थे। महफिलें सजा कर दूल्हा-दुल्हन तवायफों का मुजरा सुना करते थे। ठुमरी और राग रागनी में लोग गुम हो जाते थे। लेकिन अब कुछ नहीं बचा है। अब तो हालात यह है कि तवायफों की बेटियां गुजारा करने के लिए स्टेज प्रोग्राम करने लगी हैं। मुजफ्फरपुर में इन तवायफों की बड़ी कदर हुआ करती थी। आम तौर पर लोग शादी विवाह में इन्हें ले जाया करते थे, महफिल सजती थीं। लोग बैठ कर इनका मुजरा बड़े शौक से सुना करते थे। लेकिन अब बस सन्नाटा सा रह गया है। इस तवायफ मंडी में लोग अपने बच्चों को तहजीब सिखने के लिए भेजा करते थे। राजा महराजा और जमींदारों के बच्चे यहां दिन में रह कर तहजीब सीख कर जाते थे और शाम में यहां पाजेब की घुंघरू को बांधे तवायफें नाच गाना कर जमींदारों का मनोरंजन किया करती थी। कई तवायफ का आलीशान घर इसी की बदौलत आज है, लेकिन अब यहां महीने में एक या दो मुजरा ही हुआ करता है।
अब कमाई का कोई जरीया नहीं बचा
यहां पर अब स्टेज शो के जरिए ही तवायफें अपना भरण पोषण किया करती हैं। पुरानी तवायफों को इस बात का दर्द है कि उनके आगे के लोगों को अब वह दिन नहीं देखने को मिल रहा है जो पहले हुआ करता था।
मुजरा नहीं होने से अब देह व्यापार होने लगा
अब यहां मुजरा नहीं होने से अब देह व्यापार होने लगा है। यहां की पुरानी तवायफें दबी जुबान से मानती हैं कि पहले वाली बात नहीं है। अब तो हम लोग कोठे पर चढ़ने तक नहीं देते है।
तवायफों की बेटियां स्टेज प्रोग्राम करने लगी
हालत यह है कि यहां के तवायफों की बेटियां स्टेज प्रोग्राम कर रही हैं, कुछ स्वरोजगार से जुड़ गई हैं। समाजसेवी हो या साहित्कार, वह भी इन लड़कियों को स्वरोजगार से जुड़ने को अच्छा कदम मन रहे है। बिहार में तवायफों की संख्या लाखों में है। अकेले मुजफ्फरपुर में लगभग पांच सौ तवायफ का परिवार यहां रहता है। तवायफ शब्द तो अब खत्म होता जा रह है और इसके जगह सेक्स वर्कर का नाम ले लिया है। ऐसे में जो तवायफें हैं, उन्हें अब अपनी परम्परागत पेशे में अपने आने वाले वंश को लाने में दिक्कत आ रही है।
कंटेंट साभार : हिंदी इनायडु
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