कंधे पर बिठा कर कोचिंग ले जाता था भाई, दोनों ने पास की आईआईटी एंट्रेंस परीक्षा…

basant kumar and krishan kumar from samstipur bihar crack iit entrance exam 2016शरत कुमार
नई दिल्‍ली. कोटा में रहकर कोचिंग करनेवाले बिहार के समस्तीपुर के निकट परोरिया गांव के रहनेवाले दो भाइयों बसंत कुमार और कृष्ण कुमार की खुशी का इन दिनों ठिकाना नहीं है, मगर दुख भी है. खुशी की वजह ये है कि अब वे अब आईआईटी में पढ़ सकेंगे. दिव्यांग कृष्ण कुमार ने ओबीसी पीडब्ल्यूडी कोटे में अखिल भारतीय स्तर पर 38वां स्थान प्राप्त किया है. वहीं बसंत कुमार को ओबीसी में 3675 रैंक मिली है. दोनों पिछले 15 वर्षों से एक-एक पल साथ बिताते रहे हैं. मगर दुःख की बात है कि अब वे एक-दूसरे से जुदा हो जाएंगे.
ये कहानी दो भाइयों के अद्भुत सामंजस्य की कहानी है. कोटा के कोचिंग्स में हर कोई इसका गवाह है. हर सुबह-शाम छोटा भाई अपने बड़े भाई को कंधों पर लादकर कोचिंग लाता था. बड़े भाई कृष्णा के दोनों पैर नहीं है. मगर दोनों भाइयों की लगन और प्रेम ऐसा कि दोनों ने आईआईटी एंट्रेस की परीक्षा पास कर ली है.
पिता हैं छोटे किसान…
बिहार के समस्तीपुर जिले के परोरिया गांव में कुल 400 परिवार रहते हैं. उनके पिता एक ग्रामीण किसान हैं और उनके पास करीब 5 बीघा खेती की जमीन है. पूरे परिवार का खर्च खेती पर ही आश्रित है. वे बताते हैं कि पुत्र कृष्ण कुमार को डेढ़ साल की उम्र में पोलियो हो गया. दोनों पैर खराब हो गए. दांए हाथ पर भी कुछ असर है. इसकी वजह से वे स्कूल नहीं जा सके. इसके बाद छोटा भाई बसंत कुमार थोड़ा बड़ा हुआ और उसके स्कूल जाने की उम्र हुई तो दोनों को एक साथ गांव के प्राथमिक विद्यालय में दाखिला दिलवा दिया गया. धीरे-धीरे बसंत अपने साथ कृष्ण को ले जाने लगा. बचपन से शुरू हुआ सिलसिला आज भी जारी है. कोटा में तीन साल कोचिंग करने के बाद इस वर्ष दोनों ने जेईई-एडवांस की परीक्षा और सफलता प्राप्त की.
भाई से अलग रहना आसान नही होगा…
रिजल्ट के बाद कृष्ण ने बताया कि हम दोनों बचपन से साथ-साथ रह रहे हैं. बसंत मेरे लिए हर काम करता है. मुझे कंधे पर बिठाकर क्लास में ले जाता है. घर से लाता है, खाना लगाता है, इसके बिना कैसे रह सकूंगा. बसंत कहते हैं कि उन्हें यह सब करने की आदत लग चुकी है, भाई के लिए कुछ भी करने पर उन्हें बहुत खुशी होती है. वे भी कृष्ण के बिना नहीं रह सकते. पिछले दिनों ही गांव से आते समय इसी दुःख के चलते वे दो दिनों तक ठीक से खाना नहीं खा सके.
शिविर में भी रहे थे साथ-साथ…
बसंत कहता है कि जब हम पांचवी में थे तो गांव के निकट हसनपुर के सकरपुरा में दिव्यांगों के लिए आवासीय शिविर लगाया गया. कृष्ण भी वहां गया, एक दिन ही रहा, दूसरे दिन टीचर मुझे बुलाने आए, कृष्ण मेरे बिना नहीं रह रहा था. हम दोनों को तब भी साथ रहने की इजाजत दी गई.
बचपन से किया संघर्ष…iit
गांव में आठवीं तक ही स्कूल था. दोनों ने वहां साथ पढ़ाई की. इसके बाद 10 किमी दूर रोसरा में प्रवेश लिया, साइकिल से आते-जाते थे. तब भी दोनों साथ रहते थे. इसके बाद जब कोटा आने की बात हुई तो गांव वालों ने कहा इसे कहां ले जाएगा? ये कैसे जाएगा लेकिन मैं नहीं माना और हम दोनों कोटा आ गए. बड़े भाई यहां आकर हमें किराए के मकान में रखकर गए.
साथ पढ़ना चाहते हैं…
बसंत और कृष्ण अब आगे भी साथ पढ़ना चाहते हैं. दोनों का मानना है कि भले किसी भी कॉलेज में प्रवेश मिले लेकिन एक ही क्लास में पढ़ें. बसंत का कहना है कि इंजीनियरिंग के बाद प्रशासनिक सेवाओं में जाना चाहता है, वहीं कृष्ण कम्प्यूटर साइंस से इंजीनियरिंग करना चाहते हैं.
गैराज में काम करके भाई उठा रहे खर्च…
मदन पंडित के छह पुत्र हैं. दो बड़े पुत्र श्रवण व राजेश मुम्बई में गैराज में काम करते हैं. फीस में 75 फीसदी की  रियायत तो कोचिंग संस्थान ने दे दी, इसके बाद शेष खर्च दोनों भाई उठा रहे हैं. तीसरा पुत्र राजीव इंजीनियरिंग कर रहा है. चैथा कृष्ण और पांचवा बसंत है. इनसे छोटा प्रियतम 10वीं में है. श्रवण और राजेश की जिद थी कि कृष्ण और बसंत को इंजीनियर बनाना है. गांव वालों के मना करने के बाद भी दोनों भाइयों ने खर्च उठाया और कोटा में पढ़ने भेजा. वे कहते हैं कि पांव तो नहीं लेकिन कृष्ण अपनी प्रतिभा के दम पर खड़ा होकर दिखाएगा.






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