डेयरी फामिंर्ग: लिखें तरक्की की इबारत
ग्रामीण भारत के कमजोर तबकों के आर्थिक विकास में डेयरी सेक्टर ने अहम भूमिका निभाई है। यह क्षेत्र डिग्रीधारी युवाओं को भी अपनी ओर आकर्षित कर रहा है। अगर डेयरी फार्मिंग में मुकम्मल योजना के साथ जुड़ा जाए तो यह काफी फायदे का रोजगार है। बता रहे हैं संजीव कुमार सिंह
एक समय ऐसा था, जब देश में लोग शौक के चलते पशुपालन के क्षेत्र में आते थे। लेकिन आज यह विकसित उद्योग का रूप ले चुका है। इससे ग्रामीण क्षेत्रों की आर्थिक संरचना तेजी से मजबूत हो रही है। करनाल स्थित नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्टीट्यूट के पूर्व जॉइंट डायरेक्टर (एकेडमिक) डॉ. जीआर पाटिल का कहना है कि आधुनिक तकनीकों से लैस हो चुके इस व्यवसाय ने युवाओं को तेजी से अपनी ओर खींचा है। लोग इंजीनियरिंग व मैनेजमेंट की डिग्री लेकर इस क्षेत्र में कदम रख रहे हैं। कई ऐसे युवा हैं, जिन्होंने जमी-जमाई नौकरी छोड़ कर इस पेशे को अपनाया है। कॉमर्शियल डेयरी फार्मिंग ने उनकी उम्मीदों को परवान चढ़ाया है। आज भारत दुनिया के सबसे बड़े दुग्ध उत्पादक देशों में से एक है तथा दुग्ध उत्पादों का निर्माण भी यहां प्रचुर मात्रा में होता है। एसोचैम इकोनॉमिक्स रिसर्च ब्यूरो के एक अध्ययन के अनुसार, पूरे देश में डेयरी इकाइयां 60,255 करोड़ रुपए का बिजनेस करती हैं। पूरे देश में वार्षिक दुग्ध उत्पादन 121 मिलियन टन के करीब है।
क्या है डेयरी फार्मिंग
डेयरी फार्मिंग (दुग्ध उत्पादन) सीधे तौर पर पशुपालन से जुड़ा उद्योग है। इसमें मवेशियों का प्रजनन तथा देखभाल, दूध की खरीद तथा डेयरी उत्पादों के प्रोसेसिंग संबंधी कार्य आते हैं। कृषि व डेयरी फार्मिंग के बीच एक परस्पर निर्भरता वाला संबंध है। कृषि उत्पादों से मवेशियों के लिए भोजन और चारा उपलब्ध होता है और डेयरी फार्मिंग में विभिन्न प्रकार के दुग्ध उत्पादों जैसे दूध-दही, मक्खन, पनीर, खोया, संघनित दूध व दूध का पाउडर आदि का उत्पादन होता है।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था होती है सुदृढ़
पिछले दिनों नई दिल्ली में आयोजित गोशालाओं पर राष्ट्रीय सम्मेलन में केंद्रीय कृषि मंत्री ने पशुधन को ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ बताते हुए ऐसी योजनाओं को तैयार करने का भरोसा दिलाया, जिससे जलवायु परिवर्तन के कारण आने वाली चुनौतियों का मुकाबला किया जा सके। उन्होंने देसी नस्ल की गायों के दूध की गुणवत्ता और प्रतिरोधक क्षमता को बनाए रखने के लिए अलग से डेयरी प्लांट की स्थापना पर भी बल दिया। भारतीय दुग्ध उत्पादन से जुड़े सांख्यिकी आंकड़ों के अनुसार देश में 70 प्रतिशत दूध की आपूर्ति छोटे व सीमांत भूमिहीन किसानों से होती है। इसी कारण इसे ह्यग्रामीण उद्योगह्य भी कहा जाता है। एक रिपोर्ट के अनुसार, डेयरी फार्मिंग ने ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी उन्मूलन में भी काफी योगदान दिया है, क्योंकि सूखे के दौरान 75-80 प्रतिशत आय वंचित परिवारों को दुग्ध उत्पादकों से ही प्राप्त हुई थी।
व्यवसाय शुरू करने से पहले
पीसीडीएफ मैनेजर शेषनाथ शुक्ला के अनुसार डेयरी फार्मिंग का व्यवसाय शुरू करने से पहले रणनीति, उद्देश्य और योजनाओं को निर्धारित करने की जरूरत होती है। व्यापारियों के लिए सबसे पहला और महत्वपूर्ण उद्देश्य कच्चे दूध और दुग्ध उत्पादकों की सुरक्षा और गुणवत्ता होनी चाहिए। पशुओं को रोगों से बचाने के लिए इनकी देखभाल पर सबसे अधिक ध्यान देना चाहिए। योजना बनाते समय पेशेवर विशेषज्ञों और एकाउंटेंट की सलाह लेना बेहतर है। व्यापार शुरू करते समय बुनियादी ढांचा जैसे पशु प्रजातियां, आवश्यक पूंजी, चारे व पानी की व्यवस्था, स्वच्छता, कुशल कर्मचारी, अनुकूल वातावरण, प्रभावी नियंत्रक उपायों की जानकारी के अलावा कचरा प्रबंधन की सटीक व्यवस्था होनी चाहिए। इसके अलावा पशुओं का चयन, आहार, स्वच्छता व देखरेख, दूध निकालने की प्रक्रिया, डेयरी उत्पादों का विक्रय, अपशिष्ट प्रबंधन आदि कई ऐसी प्रक्रियाएं हैं, जिनकी जानकारी डेयरी संचालक या डेयरी मैनेजर को होनी चाहिए।
कोर्स से मिलेगी मदद
डेयरी फार्मिंग में शिक्षित व अशिक्षित सभी खुद को आजमा सकते हैं। लेकिन बाकायदा कोर्स करके इस क्षेत्र में उतरते हैं तो तकनीक व बाजार के ट्रेंड को समझने में मदद मिलती है, साथ ही हिसाब-किताब रखने के अलावा कस्टमर डीलिंग में भी आसानी रहती है। इसमें स्नातक से लेकर पीजी लेवल तक पाठ्यक्रम संचालित किए जाते हैं। प्रवेश परीक्षा के आधार पर दाखिला मिलता है। बीएससी सरीखे कोर्स के लिए गणित/बायो विषय से 10+2 होना चाहिए। डेयरी प्रोडक्शन के पीजी डिप्लोमा कोर्स के लिए बीएससी (60 प्रतिशत अंकों के साथ) होना चाहिए।
सरकारी योजनाओं से अवसर
डेयरी फार्मिंग का कोर्स कर यदि नौकरी चाहते हैं तो इसमें सरकारी व गैर सरकारी दोनों जगह अवसर हैं। इम्प्लीमेंटिंग, प्लानिंग, फाइनेंस व कृषि व्यवसाय से संबंधित एनडीडीबी, नेस्ले, कैडबरी, कैलॉग्स, केएफसी, एचएलएल, हेरिटेज फूड्स जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियां अच्छे पैकेज पर डेयरी टेक्नोलॉजिस्ट, प्लांट मैनेजर या डेयरी मैनेजर को रखती हैं। गांवों व शहरों में दुग्ध उत्पादन को बढ़Þावा देने के लिए केंद्र व राज्य सरकारें डेयरी योजनाओं के विकास पर काम कर रही हैं। सरकारी व गैर सरकारी संस्थाएं डेयरी व्यवसाय के लिए 10 लाख रुपए तक का लोन प्रदान कर रही हैं।
कुछ प्रमुश योजनाएं-
दुधारू मवेशी योजना: गरीबी रेखा के नीचे गुजर-बसर करने वाले ग्रामीण क्षेत्र के लोगों के लिए दुधारू मवेशी योजना के तहत दुग्ध उत्पादन करने वाले को 50 प्रतिशत अनुदान व 50 प्रतिशत ऋण पर दो दुधारू मवेशी दिए जाते हैं। योजना लागत में जानवर की खरीद के लिए 70 हजार रुपए और गौशाला के निर्माण के लिए 15 हजार रुपए दिए जाते हैं। जानवरों का तीन वर्ष का बीमा भी कराया जाता है।
मिनी डेयरी योजना (दस मवेशी के लिए): इसमें दुग्ध उत्पादन के लिए 10 दुधारू मवेशी दिए जाते हैं। इस योजना का लाभ स्वयं सहायता समूह भी ले सकते हैं। सभी को 40 प्रतिशत अनुदान एवं 60 प्रतिशत बैंक लोन पर दुधारू जानवर उपलब्ध करवाए जाते हैं।
मिनी डेयरी योजना (पांच मवेशी के लिए): सरकार की ओर से मिनी डेयरी योजना के तहत किसानों अथवा शिक्षित बेरोजगारों को पांच दुधारू मवेशी उपलब्ध कराएजाते हैं। इसके तहत 50 प्रतिशत अनुदान एवं 50 प्रतिशत बैंक लोन पर पांच दुधारू मवेशी दिए जाते हैं। योजना लागत में मवेशी की खरीद के लिए 1,75,000 रुपए, शेड निर्माण के लिए 45,000 रुपए तथा तीन वर्षों के लिए मवेशियों के बीमा के लिए 20 हजार रुपए दिए जाते हैं।
कामधेनु डेयरी योजना: पशुपालन को बढ़Þावा देने और श्वेत क्रांति के उद्देश्य से यूपी सरकार की कामधेनु डेयरी योजना की लागत एक करोड़ 20 लाख 91 हजार रुपए की है। यह 100 मवेशी दुधारू पशुओं को रखने की योजना है। इसमें लाभार्थी को 25 प्रतिशत मार्जिन मनी लगभग 30 लाख 13 हजार स्वयं लगाना होता है। शेष 75 प्रतिशत राशि 90 लाख 38 हजार रुपए बैंक से ऋण स्वीकृत करा सकते हैं। मिनी कामधेनु डेयरी योजना में 50 पशुओं को रखने की व्यवस्था है। इसकी लागत 52 लाख 35 हजार रुपए है। इसमें लाभार्थी को 25 प्रतिशत मार्जिन मनी लगभग 13 लाख 9 हजार रुपए स्वयं लगाना है। शेष 75 प्रतिशत बैंक से ले सकते हैं। एक माइक्रो कामधेनु योजना भी है। इसमें 25 मवेशी रखने की व्यवस्था है। इसमें लाभार्थी को 26 लाख रुपए मिलते हैं। अन्य शर्तें पूर्ववत हैं।
नाबार्ड: नाबार्ड के सहयोग से डेयरी उद्योग प्रारंभ करने के लिए छोटे किसानों और भूमिहीन मजदूरों को बैंक की ओर से लोन दिया जाता है। बैंक से लोन प्राप्त करने के लिए किसान अपने नजदीक के वाणिज्यिक बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक अथवा को-आॅपरेटिव बैंक को मवेशी की खरीद के लिए आवेदन कर सकते हैं। इस योजना के लिए केंद्र सरकार धन देती है।
डेयरी उद्यम पूंजी कोष: इसमें ग्राम स्तर पर दूध का प्रसंस्करण, कम लागत में पॉश्च्युराइज्ड दूध की बिक्री, आधुनिक उपकरणों से व्यावसायिक स्तर पर पारंपरिक प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल और प्रबंधन कुशलता व ग्रामीण दुग्ध उत्पादकों को प्रोत्साहन शामिल है। इसके लिए एक नई डेयरी/पोल्ट्री उद्यम पूंजी कोष नामक केंद्रीय योजना शुरू की गई। इसमें शहरी-ग्रामीण स्तर पर बैंक परियोजनाओं के माध्यम से 50 प्रतिशत ब्याज मुक्त ऋण मिलता है। उद्यमी को 10 प्रतिशत धनराशि देनी होती है और 40 प्रतिशत स्थानीय बैंक से ऋण लेना पड़ता है।
मुश्किल में तलाशें अवसर
एक जंगल में ढेर सारे जानवर रहते थे। जंगल के पास एक पहाड़ भी था। एक बार जंगल में एक प्रतियोगिता का आयोजन हुआ। इसमें पहाड़ की चोटी पर पहुंचना था। जो जानवर सबसे पहले चोटी पर पहुंचेगा, उसे पुरस्कृत किया जाएगा। उसमें शेर, बंदर, जिराफ, हाथी, लोमड़ी आदि सभी ने भाग लिया। प्रतियोगिता में मेंढ़कों का एक झुंड भी था। प्रतियोगिता शुरू होते ही जानवर मेंढ़कों का मजाक उड़ाने लगे। जानवरों के एक झुंड से आवाज आई, अरे देखो इन मेंढ़कों को, ए भी हमारी बराबरी कर रहे हैं। देखना थोड़ी देर फुदकने पर ही इनकी जान निकल जाएगी। ऊपर क्या खाक चढ़ेंगे? इस बात पर सभी प्रतियोगी जानवरों ने जोरदार ठहाके लगाए। अभी जानवर कुछ दूर ही चले थे कि एक जानवर बोला- हे भगवान! पहाड़ तो बहुत ऊंचा है, इस पर चढ़ना मुश्किल है? कई जानवरों ने उसकी हां में हां मिलाई। कुछ वहीं रुक गए। बाकी आगे बढ़Þे। कुछ समय बाद फिर आवाज आई, मेरा तो पैर दर्द कर रहा है। कहीं मैं थक कर बेहोश न हो जाऊं? सिर्फ यह सुन कर कई अन्य जानवर वहीं से वापस लौट चले।
बाकी बचे जानवर थोड़ा और आगे बढ़Þे कि उनके बीच से फिर आवाज आई, इतनी ऊंची चोटी पर चढ़ पाना हमारे बस का नहीं, हम पर्वतारोही तो हैं नहीं। साथ चल रहे कई जानवरों को यह बात सही लगी और वे वहीं से लौट पड़े। अभी कुछ जानवर चल रहे थे। उनमें मेंढक भी थे। समय गुजरता गया, जानवर कम होते गए। अंत में चोटी पर केवल एक मेंढक पहुंचा। यह देख कर सभी जानवरों को बेहद शर्मिंदगी हुई। उन्होंने उसी झुंड के एक मेंढक से पूछा- यार! ए बताओ, तुम्हारा दोस्त चोटी पर कैसे पहुंच गया? मेंढक मुस्कराते हुए बोला- वह चोटी पर इसलिए पहुंचा, क्योंकि बहरा है। अत: तुम्हारे ताने उसकी कानों तक नहीं पहुंचे। यह बात सुनकर तमाम जानवर स्तब्ध रह गए। किसी महान विचारक ने क्या खूब कहा है, ह्ययदि आपमें नकारात्मकता है तो आप हर अवसर में मुश्किल देखेंगे, और यदि सकारात्मकता है तो आप हर मुश्किल में अवसर देखेंगे।ह्य अब ए हमें तय करना है कि क्या हम नकारात्मक माहौल में उस मेंढक की तरह बहरे बन सकते हैं? यदि हां, तो हमें अपने उद्देश्य की चोटी पर पहुंचने से कोई ताकत नहीं रोक सकती।
आशीष आदर्श, करियर काउंसलर
डेयरी व्यवसाय के फायदे
– ईको फ्रेंडली होने से पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचता
– दूसरे व्यवसायों की बजाय कम योग्यता
– दुग्ध उत्पाद पूरे साल बिकते रहते हैं, आॅफ सीजन नहीं
– डेयरी फार्मिंग कम लागत में शुरू होने वाला व्यवसाय है
– पूरी व्यवस्था आसानी से हो जाती है दूसरी जगह शिफ्ट
– पशुओं के बीमे की है सुविधा
source : livehindustan.com
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