पांच वजहों से बिहार में फेल हो सकती है शराबबंदी!

रोहित गुप्ता .
नीतीश के लिए शराबबंदी को सफलतापूर्वक लागू करना आसान नहीं रहने वाला.जिस राज्य के बारे में माना जाता है कि हर दूसरा आदमी किसी न किसी तरह के नशे का शौकीन है, उस बिहार में हर तरह की शराब पर पाबंदी लगाकर नीतीश कुमार ने बहुत बड़ा कदम उठाया है. लेकिन बिहार में शराबबंदी की सफलता संदिग्ध लगती है. जानिए बिहार में शराबबंदी को सफलता के साथ लागू करना क्यों इतना मुश्किल है…

1. कैसे होगी 4 हजार करोड़ के नुकसान की भरपाई?
बिहार में शराब पर पूरी तरह से रोक लगने से सरकार को तकरीबन 4 हजार करोड़ रुपये का सालाना नुकसान होगा. साल 2015-16 में एक्साइज डिपार्टमेंट ने देशी, विदेशी और मसालेदार शराब की बिक्री से 3645.77 करोड़ रुपये का राजस्व का लक्ष्य रखा था. इतने बड़े नुकसान की भरपाई सरकार दूसरे क्षेत्रों से करने की कोश‍िश करेगी, जिसका सीधा असर आम आदमी की जेब पर होगा. दूसरी चीजों पर टैक्स लगाया गया तो आम आदमी का गुस्सा नीतीश सरकार पर फूटेगा.

2. शराब की तस्करी
इससे पहले बिहार में 1977 में तत्कालीन मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर ने शराबबंदी की थी. लेकिन इससे शराब की तस्करी इतनी बढ़ गई और गैरकानूनी तरीके से शराब बेचने वाले अपराध‍ियों की तादाद इतनी तेजी से बढ़ी कि सरकार को शराबबंदी का फैसला वापस लेना पड़ा. उस वक्त कई विधायक इस फैसले पर सरकार के ख‍िलाफ खड़े हो गए थे सरकार किसी तरह शराबबंदी को डेढ़ साल तक खींच पाई थी. इस उदाहरण से नीतीश को सबक लेना होगा और शराब की तस्करी को रोकने के लिए सख्त उपाय करने होंगे.

3. नशे के लिए शराब से भी ज्यादा खतरनाक विकल्प उपलब्ध
शराबबंदी लागू होते ही पीने के शौकीन लोग नशे के दूसरे विकल्पों की ओर भी भाग रहे हैं. देसी शराबबंदी लागू होने के पहले ही दिन रोहतास जि़ले के सासाराम से नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने 15 हजार कोरेक्स कफ सीरप जब्त किए. जाहिर है शराब न मिलने पर बहुत लोग नशे के लिए व्हाइटनर, कफ सीरप, क्विक फिक्स और कफ सीरप जैसी चीजों का इस्तेमाल करेंगे, जो शराब से भी ज्यादा घातक है. बिहार में पहले ही दिन शराब न मिलने से लगभग 750 लोग बीमार पड़ गए. जबकि दो लोगों की तो मौत ही हो गई. ऐसे लोग सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती हैं, जो रोज पीने के आदी हैं और जो शराब के बिना जीने की कल्पना ही नहीं करते.

4. दूसरे राज्यों को नहीं मिली कामयाबी
शराब पीने को पूरी तरह सफलता के साथ लागू करने में किसी राज्य को कामयाबी नहीं मिली है. गुजरात में 1960 से शराबबंदी लागू है, लेकिन फिर भी वहां जहरीली शराब से लोग मरते हैं. सरकारी के आंकड़ों के मुताबिक़ ही पिछले पांच सालों में वहां 2500 करोड़ रुपये की अवैध शराब ज़ब्त हुई. 2009 में अहमदाबाद में जहरीली शराब पीने से लगभग 150 लोग मारे गए थे.

5. दूध के डिब्बों में शराब
अवैध रूप से शराब सप्लाई करने के लिए बिहार में लोग नए-नए आइडिया लेकर आ रहे हैं. एक पुलिस अफसर ने बताया कि पूर्णिया में कुछ लोग एंबुलेंस में शराब छि‍पाकर ला रहे थे. मधुबनी जिले के झंझारपुर में शौचालय से और जमीन में गड्ढा कर छिपाकर रखी गई 51 बोतल विदेशी शराब बरामद की गई हैं. पुलिस के लिए ऐसे लोगों पर लगाम लगाना आसान नहीं रहने वाला. गया और कोडरमा के बीच कुछ लोग दूध के डिब्बों में शराब की बोतलें लाते पकड़े गए. from aajtak






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