क्षत्रपों का राष्ट्रीय मिशन 2019!
शशांक राय
नीतीश कुमार ने मिशन 2019 की तैयारी शुरू कर दी है। नरेंद्र मोदी ने भी 2012 में लगातार तीसरी बार चुनाव जीतने के बाद मिशन 2014 की शुरुआत की थी। उसी तरह नीतीश ने 2015 में लगातार तीसरा चुनाव जीत कर अपने मिशन की शुरुआत की है। उनका जदयू का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनना और फिर संघ मुक्त भारत बनाने का आह्वान करना इस तैयारी का संकेत है। उनके चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर इस समय उनके सलाहकार हैं और कांग्रेस के लिए भी काम कर रहे हैं। सो, जाहिर है कि नीतीश के अभियान में कांग्रेस की अहम भूमिका रहेगी। वह भूमिका कैसी रहेगी, इसका अंदाजा अभी नहीं लगाया जा सकता है।
नीतीश कुमार के लिए सकारात्मक बातों में सबसे पहली बात उनकी छवि है। उन्होंने न्याय के साथ सुशासन की सरकार देने की छवि गढ़ी है। अगले आम चुनाव में प्रधानमंत्री पद के दूसरे दावेदारों के मुकाबले उनकी यह छवि ज्यादा कारगर होगी। संघ मुक्त भारत का उनका नारा भी उन्हें एक बड़े मतदाता समूह के साथ जोड़ सकता है। इसके अलावा आने वाले दिनों में जनता दल यू का विस्तार होने वाला है। नीतीश कुमार एक नई पार्टी बना कर उसमें चौधरी अजित सिंह, बाबूलाल मरांडी और कमल मोरारका को जोड़ रहे हैं। यह नई पार्टी अखिल भारतीय स्वरूप वाली होगी।
संदेह नहीं कि वे घोषित-अघोषित तौर पर प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे। तभी उन्होंने जनता दल यू की कमान अपने हाथ में ली है। वे अपने मनमाफिक जनता दल यू को 2019 की चुनौती के लिए तैयार करेंगे। यों उन्होंने कहा है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने का और अर्थ न निकाला जाए। उनकी प्राथमिक जिम्मेवारी बिहार के लोगों की उम्मीदों को पूरा करना है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री पद के लिए उनकी योग्यता के बारे में फैसला तो जनता करेगी।
दरअसल ऐसा कहना भी प्रधानमंत्री पद के लिए नीतीश कुमार की पोजिशनिंग है। नीतीश कुमार का महत्वकांक्षी बनना गलत नहीं है। आज की तारीख में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आगे तीन ही नेता मुखर हंै। अरविंद केजरीवाल, राहुल गांधी और नीतीश कुमार। तीनों अपने हिसाब से नरेंद्र मोदी के आगे अपनी पोजिशनिंग कर रहे हैं। लेकिन तीनों में कद, उम्र, अनुभव और एलायंस को चलाने की कसौटी में नीतीश कुमार आगे बनते हंै। बिहार में लालू यादव की पार्टी और कांग्रेस के साथ एलायंस बना कर चुनाव जीतने का नीतीश कुमार ने जो कमाल किया उसका जनता में मैसेज है तो राजनैतिक जमात में भी है। नीतीश कुमार ने सेकुलर जमात, नरेंद्र मोदी विरोधी मीडिया में अपनी साख बनाई है।
मतलब नरेंद्र मोदी और भाजपा के खिलाफ जितनी तरह की राजनीति है उसकी वे धुरी बने हुए हैं या बन सकते हंै। इसलिए नीतीश कुमार अपने सलाहकार प्रशांत किशोर के साथ 2019 का तानाबाना बुनें तो वह सहज, स्वाभाविक है। दिक्कत यह है कि बिहार की उनकी गद्दी कांटों का ताज है। बिहार में वे क्या ऐसा प्रदर्शन कर पाएंगे जिससे देश में वैसी हवा बने जैसी मई 2014 से पहले नरेंद्र मोदी की बनी थी?
नीतीश कुमार अध्यक्ष बनने के बाद अपनी पार्टी का कायाकल्प करेंगे। पार्टी नए नाम और नए चुनाव चिंह की कोशिश में है। उत्तरप्रदेश में अजीत सिंह और उनके बेटे को नीतीश कुमार अपने साथ लेंगे। अजित सिंह को पार्टी अध्यक्ष बना कर उनके बेटे जयंत को वे यूपी के मुख्यमंत्री के रूप में भी प्रोजेक्ट कर सकते हैं। मतलब एक बड़े रोडमैप पर काम हो रहा है। राष्ट्रीय राजनीति में नीतीश कुमार की छटपटाहट का फैसला बिहार में उनके काम से होगा। नरेंद्र मोदी की वाहवाही गुजरात में काम से ही बनी थी उस नाते अगले तीन साल नीतीश कुमार बिहार में क्या चमत्कार दिखा सकेंगे? बिहार में ही उनके मिशन के पंचर होने के खतरे कम नहीं हंै।
इस नई पार्टी के जरिए नीतीश कुमार और उनके चुनाव रणनीतिकारों की कोशिश 1996 के चुनाव को दोहराने की होगी। उस चुनाव में कांग्रेस और भाजपा के बरक्स जनता दल अखिल भारतीय स्तर पर लड़ी थी और उसके 45 सांसद जीते थे। इन 45 सांसदों के बूते पहले एचडी देवगौड़ा और बाद में आईके गुजराल मुख्यमंत्री बने थे। हालांकि उसके बाद यह राजनीतिक सिद्धांत भारत में स्थापित हो गया कि सबसे बड़ी पार्टी का नेता ही गठबंधन का नेतृत्व करेगा। पिछले करीब दो दशक से चल रहे इस सिद्धांत का इकलौता अपवाद नीतीश कुमार ही हैं। वे गठबंधन की छोटी पार्टी होने के बावजूद बिहार में सरकार के मुखिया हैं। ऐसा ही कुछ जादू वे अगले आम चुनाव में करना चाहते हैं।
पर उनके इस अभियान में कुछ बाधाएं भी हैं। सबसे पहली बाधा खुद कांग्रेस पार्टी है, जिसके नेताओं ने कहा है कि वे राष्ट्रीय स्तर पर कोई गठबंधन नहीं करेंगे। उन्हें राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाना है। इसके बाद प्रादेशिक क्षत्रपों के आपसी झगड़े हैं। डीएमके बनाम अन्ना डीएमके, लेफ्ट बनाम तृणमूल कांग्रेस, सपा बनाम बसपा, कांग्रेस बनाम बीजू जनता दल के ऐसे झगड़े हैं, जिनके बीच भाजपा या कांग्रेस विरोधी एक मोर्चा बनाना किसी के लिए संभव नहीं है। फिर क्षत्रपों की चुनौती अपनी जगह है। ममता बनर्जी की पार्टी के नेता इस तैयारी में हैं कि अगर वे दूसरी बार सीएम पद की शपथ लेती हैं तो उसके बाद दिल्ली दो घंटे की दूरी पर है। ऐसे ही अरविंद केजरीवाल दिल्ली के बाद पंजाब, गोवा, हिमाचल प्रदेश और छत्तीसगढ़ में अपने पैर फैला रहे हैं और उनकी महत्वाकांक्षा भी प्रधानमंत्री बनने की है।
Related News
इसलिए कहा जाता है भिखारी ठाकुर को भोजपुरी का शेक्सपियर
स्व. भिखारी ठाकुर की जयंती पर विशेष सबसे कठिन जाति अपमाना / ध्रुव गुप्त लोकभाषाRead More
पारिवारिक सुख-समृद्धि और मनोवांछित फल के लिए ‘कार्तिकी छठ’
त्योहारों के देश भारत में कई ऐसे पर्व हैं, जिन्हें कठिन माना जाता है, यहांRead More
Comments are Closed