10 लाख का पैकेज छोड़ दिल्ली से लौटी मुखिया का चुनाव लड़ने
संजीव कुमार
सीवान/मढ़ौरा.गांव का मुखिया बनना लोगों के लिए भले बहुत बड़ा काम नहीं दिखता हो, लेकिन इसी मुखिया पद के लिए एक एमबीए महिला ने बड़ी कंपनी और बड़ी सैलरी को छोड़ गांव की ओर का रुख किया है। प्रियंका सिंह पंचायत के लोगों के बीच अपने समर्थन के लिए लोगों के बीच अपनी बात रख रही हैं। प्रियंका जब अपने गांव के लोगों के बीच विशुद्ध भोजपुरी में अपनी बात रखती हैं तो लोगों को उनके अपना होने का एहसास होता है। प्रियंका का कहना है कि गांव और पंचायत का विकास लोगों की सोच को ऊपर उठा कर ही किया जा सकता है। विशेषतौर पर गांवों में महिलाओं की स्थिति में बदलाव की जरूरत है। गांव की लड़कियों को शिक्षा और संस्कार में बेहतर बना कर समाज में बड़ा बदलाव लाया जा सकता है। वह समाज में इसी परिवर्तन के लिए काम करना चाहती हैं।
प्रियंका कहती हैं कि ऐसा तभी हो सकता है जब पढ़े-लिखे लोग इस स्तर पर सक्रिय भागीदारी निभाएंगे। तरैया प्रखंड के सरैया बसंत निवासी प्रियंका सिंह की शादी यहां हुई थी। शादी के समय स्नातक प्रियंका में शुरू से आगे पढ़ने की इच्छा थी। पति दिलीप सिंह का साथ मिला तो उसने बैंक से एजुकेशन लोन लेकर बिजनेस स्कूल आॅफ दिल्ली से टइअ की पढ़ाई पूरी की।
फैसले में फैमिली का मिला साथ
प्रियंका ने जब गांव जाकर पंचायत चुनाव में लोगों के बीच जाने की बात फैमिली के सामने रखी तो पहले सभी को अटपटा लगा। अच्छी नौकरी और सैलरी छोड़ गांव जाने की बात पर सभी ने समझाने का प्रयास किया। बाद में प्रियंका की सोच को सभी ने स्वीकारा, अब हसबैंड दिलीप सिंह ,ससुर शंकर सिंह, देवर पिंटू सिंह, ननद रुपाली सहित परिवार के सभी सदस्य प्रियंका का साथ दे रहे हैं।
पूर्व से रही है राजनीति की विरासत
प्रियंका के ससुराल में राजनीति से जुड़ाव पहले से रहा है। पंचायत में शंभू सिंह 32 वर्षों तक मुखिया रहे हैं। हालांकि पिछली बार वे चुनाव हार गए थे। प्रियंका सिंह दिवंगत मुखिया की पुत्रवधू हैं। लेकिन इससे अलग प्रियंका अपनी पहचान खुद से बनाना चाहती है। तभी वह गांव में अपनी बात कहती हैं और महिला सशक्तिकरण पर अपना विचार को सबके सामने रखती हैं।
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