बिहार में हार से मजबूर भाजपा ने बदली रणनीति
बिहार कथा
नई दिल्ली। असम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल जैसे राज्यों के इस बार के विधानसभा चुनावों में सत्तारूढ़ भाजपा की रणनीति में बड़ा बदलाव देखा जा रहा है। बिहार चुनावों की तुलना में देखें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पश्चिम बंगाल और असम में पार्टी के प्रचार के लिए केवल दो दिन दिए हैं। हालांकि इन राज्यों में पार्टी के चुनावी हिसाब किताब में प्रधानमंत्री मोदी एक अहम फैक्टर हैं। भाजपा के कैम्पेन में प्रधानमंत्री मोदी की प्रोफाइल भले ही कमतर दिख रही हो लेकिन उन्होंने अपने भाषणों में ममता बनर्जी और तरुण गोगोई पर तीखा हमला बोला है। प्रधानमंत्री के भाषण विकास के अजेंडे के इर्द-गिर्द सिमटे हुए दिख रहे हैं और वह अपने विरोधियों खासकर कांग्रेस के पुराने रिकॉर्ड को टारगेट कर रहे हैं। दोनों ही राज्यों में प्रधानमंत्री मोदी का रवैया बिहार के चुनावी अभियान के तौर तरीकों से हटकर दिख रहा है।
बारीक बदलाव का यह है कारण
भाजपा के चुनावी संदेश में आए इस बारीक बदलाव की वजह यह बताई जा रही है कि बिहार के कैम्पेन में प्रधानमंत्री मोदी विकास के अजेंडे से भटक कर बीफ जैसे हिंदुत्व के मुद्दे पर आ गए थे। नतीजे में निराशा हासिल हुई और प्रधानमंत्री के विकास की साख पर सवाल खड़े हुए। पश्चिम बंगाल और असम में भाजपा के चुनावी तरकश में जनसंख्या की संरचना और हिंदुत्व दोनों ही मुद्दे हैं। इन दोनों राज्यों में अवैध रूप से आए बांग्लादेशी एक चुनावी मुद्दा है। हालांकि प्रधानमंत्री मोदी अभी तक इन मुद्दों पर बचकर बोलते हुए दिखे हैं। बिहार में मोदी ने 10 दिनों में 31 रैलियों को संबोधित किया था जबकि मौजूदा चुनावों का इखढ के लिए अधिक चुनौतीपूर्ण होने के बावजूद उनके कैम्पेन में कटौती एक सोचा समझा कदम मालूम देता है। हालांकि मोदी की व्यस्तता भी इसका एक पहलू है। प्रधानमंत्री फिलहाल विदेश दौरे पर हैं और तीन देशों की यात्रा से वह चार अप्रैल को भारत लौटेंगे। तब पश्चिम बंगाल और असम में चुनाव के पहले चरण का वक्त होगा।
दूसरे नेता नहीं जुटा पा रहे भीड़
भाजपा के दूसरे नेता जैसे गृह मंत्री राजनाथ सिंह, पार्टी अध्यक्ष अमित शाह, मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी और ट्रांसपोर्ट मिनिस्टर नितिन गडकरी पार्टी के प्रचार अभियान में लगे हुए हैं। हालांकि उनकी रैलियां प्रधानमंत्री की तुलना में ज्यादा भीड़ आकर्षित नहीं कर पा रही हैं। बिहार में भाजपा के दूसरे नेता नुक्कड़ रैलियां करते हुए दिख रहे थे।
जितनी रैली बिहार में, उससे कम पांच राज्यों में
पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि बचे हुए चरणों में भी प्रधानमंत्री मोदी की भागीदारी इसी अनुपात में दिखेगी। पश्चिम बंगाल के लिए वह एक या दो दिन चुनाव प्रचार कर सकते हैं। लेकिन असम में अब उनके और कैम्पेन के आसार कम ही हैं। असम में चुनाव 4 और 11 अप्रैल को है जबकि पश्चिम बंगाल में छह चरणों में चुनाव है जो 4 अप्रैल से 5 मई तक चलेगा। इस बात की भी संभावना है कि मोदी ने बिहार में जितनी रैलियों को संबोधित किया था, उसकी तुलना में इस बार वह पांच राज्यों में भी उतनी रैलियां नहीं करेंगे।
बिहार के अनुभव से सबक
तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी में 16 अप्रैल को चुनाव होना है और पार्टी सूत्रों का कहना है कि इन राज्यों में प्रधानमंत्री का दौरा संक्षिप्त ही रहेगा। केरल में शायद पार्टी ज्यादा फोकस करेगी। भाजपा के चुनाव प्रबंधक प्रधानमंत्री मोदी की छवि को लेकर इस बार ज्यादा सतर्क हैं और वे बिहार के अनुभवों से सबक लेते हुए दिख रहे हैं। हालांकि भाजपा का कहना है कि प्रधानमंत्री पार्टी की जरूरतों को समझते हैं और उसे लेकर उदार भी हैं।
भाजपा का यह है कहना
पार्टी प्रवक्ता श्रीकांत शर्मा ने बताया, ह्यप्रधानमंत्री पार्टी के प्रति प्रतिबद्ध हैं और वह जरूरत के मुताबिक प्रचार कर रहे हैं। हमारे लिए सभी राज्य महत्वपूर्ण हैं। इसके अलावा पार्टी के कई नेता चुनाव वाले राज्यों में कैम्पेन कर रहे हैं। पार्टी अध्यक्ष असम और पश्चिम बंगाल में कैम्प कर रहे हैं और रोजाना तीन से पांच रैलियों को संबोधित कर रहे हैं।
from : नवभारत टाइम्स
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