मिट्टी और कचरे से पाट कर मार दिए गए जल पुरखे
गोपालगंज में 1397 कुएं रिकार्ड में, कभी बुझती थी प्यास
ननद भौजाई का कुंआ भी अब कोई नहीं जानता!
बिहार कथा. गोपालगंज। बात दो दशक पहले की है। जिले में कुओं का सर्वे कराया गया था। तब गांवों में 1397 कुएं मिले थे। इसी से लोगों की प्यास बुझती थी। गांवों के बाहर भी आठ हजार से अधिक कुएं थे। जिससे खेतों की सिंचाई होती थी। लेकिन गांवों में पीने से लेकर खेतों की सिंचाई की जरुरत पूरा करने वाले कुआं अब नहीं दिखते। संरक्षण के अभाव में कुएं अपना अस्तित्व खोते चले गए। अब तो बस कुएं लोगों की याद में ही रख गए हैं। पानी का संकट बढ़ÞÞने के साथ ही अब कुएं का महत्व समझ में आने लगा है। लेकिन कुएं बचे हो तब न दिखें। अब तो बदहाली की स्थिति में पड़े कुछ कुओं को देखकर यही आहें निकल रही है कि कभी यहां भी एक कुआं था जिससे लोगों की प्यास बुझती थी। जिले में दो दशक पूर्व तक कुओं का अपना महत्व था। गांवों में सिंचाई से लेकर पीने का पानी तक का इंतजाम इन्हीं कुओं से होता था। दो दशक पूर्व जिले में स्थित कुओं की गणना कराई गई थी। उस गणना में गांवों में बनाए गए कुओं की संख्या 1397 तथा गांव से बाहर सिंचाई के लिए स्थापित कुओं की संख्या आठ हजार से भी अधिक पाई गई। लेकिन बाद में व्यवस्था बदली और सिंचाई तथा पेयजल के लिए इन कुओं पर लोगों की निर्भरता कम होती गई। गांवों के कुएं मिट्टी से पाटे जाने लगे हैं। सिंचाई के लिए बनाए गए कुएं समुचित देखभाल के अभाव में बेकार होते जा रहे हैं। पहले जिन कुओं से लोगों की प्यास बुझती थी, वे कुएं संरक्षण के अभाव में खत्म होते चले गए। अब परिणाम सामने है। पानी के मामले में धनी इस जिले में भी पानी का संकट सामने आने लगा है।
मिसाल है ननद भौजाई का कुआं
उंचकागांव प्रखंड में स्थित ननद भौजाई का कुआं ऐतिहासिक महत्व रखता है। यह कुआं करीब एक सौ साल पूर्व ननद व भौजाई के बीच बढ़ÞÞती कटुता के कारण एक ही स्थान पर स्थापित किया गया था। लेकिन इन कुओं की दशा भी अन्य कुओं से इतर नहीं रह गई है।
कुओं के संरक्षण के दिशा में कोई भी प्रयास वर्तमान समय में नहीं चल रहा है। हां, तालाबों के संरक्षण के नाम पर मनरेगा के तहत इसकी खुदाई का कार्य जरुरत होता है। ऐसे में जल संकट बढ़ÞÞने के साथ ही पुराने कुओं के बचाने के लिए सरकारी स्तर पर संरक्षण की व्यवस्था करने की जरुरत महसूस की जा रही है।
भगवानपुर के राकेश प्रसाद कहते हैं कि वर्षो पूर्व कुओं से शीतल पानी लोगों को प्राप्त होता था। आज के जमाने में चापाकल का पानी पीने के प्रयोग में लाया जाता है। लेकिन कुओं के पानी में जो मिठास थी वह आज के चापाकल में कहां है। आज कुओं की दशा काफी खराब हो गई है। पुराने कुओं को बचाने के दिशा में सरकारी स्तर पर प्रयास किया जाना चाहिए। मैनपुर के बलिराम सिंह कहते हैं कि कुएं हमारी पुरानी संस्कृति के पहचान हैं। कुओं से भू जल का स्तर भी बना रहता है। कुओं को बचाने के दिशा में प्रशासनिक स्तर पर प्रयास की जरुरत है।
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