क्या जॉर्ज फर्नांडीज की तरह होगा शरद यादव का हाल!

nitish kumarm with sharad yadav jdu politice in biharजानिए क्या चल रहा जदयू के अंदरखाने की राजनीति में
शिशिर सोनी. नई दिल्ली।
बिहार कथा. जदयू के भितरखाने भारी खींचतान मची है। पार्टी के रणनीतिकारों का मानना है कि वरिष्ठ नेताओं के बीच शांति का मंजर तूफान की आहट दे रहा है। शरद यादव का चौथी बार अध्यक्ष नहीं बनना। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जदयू अध्यक्ष भी बनेंंगे तो जाहिर है सत्ता और संगठन का धु्रवीकरण पटना में होगा। शरद यादव लंबे समय से राष्टÑीय राजनीति के चेहरा रहे हैं। जब वे तीन बार जदयू अध्यक्ष रह चुके थे तो ऐसी क्या बात हो गई कि उन्हें फिर से पार्टी संविधान में संशोधन कर चौथी बार पार्टी की कमान सौंपने में अड़चन थी! यह बात हालांकि स्वयं शरद यादव की जुबानी है कि वे चौथी बार अध्यक्ष नहीं बनना चाहते। जो राजनेता एक वक्त भाजपा का साथी दल होते हुए जॉर्ज फर्नांडीज के बाद राजग का संयोजक बनने की ख्वाहिश रखते थे, वह अपनी पार्टी का अध्यक्ष बनने से क्यों परहेज करेंगे? यह एक बड़ा सवाल जदयू के अंदरखाने तैर रहा है। ये ऐसा सवाल है कि नीतीश कुमार और शरद यादव को छोड़, किसी के पास जवाब नहीं। सवाल ये भी है कि कहीं इस खेल में राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद और नीतीश कुमार का मिलाजुला खेल तो नहीं?
कभी शरद यादव के हम प्याला, हम निवाला रहे राज्यसभा सांसद केसी त्यागी, इन दिनों नीतीश कुमार के ज्यादा करीब हैं। बिहार से खाली हो रही राज्यसभा की पांच सीटों में से केसी त्यागी का नाम भी शुमार है। शरद यादव, केसी त्यागी, पवन वर्मा, गुलाम रसूल बलियावी और सूबाई राजनीति में नीतीश के दाहिना हाथ माने जाने वाले आरसीपी सिंह में से इस बार वे कौन से दो नाम होंगे जिन पर नीतीश कुमार की मुहर लगेगी! गौर करने लायक बात ये है कि रविवार, 10 अप्रैल को होने वाली बैठक में जदयू अध्यक्ष पर शरद यादव की जगह नीतीश कुमार के नाम की घोषणा के बाद बाजी पूरी तरह से नीतीश के हाथों में होगी। जदयू की बिसात पर ज्यादातर मोहरे हालांकि नीतीश के ही बिछाए हैं मगर, राज्यसभा के नामांकन का दारोमदार भी वे खुद ही निभाएंगे। जदयू में ऐसा कोई नेता नहीं जो यह दावे के साथ कह सके कि शरद यादव का राज्यसभा में नामांकन पक्का है! मतलब उनके नाम पर भी पेंच फंसा है। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता के कहने का मतलब आप निकालिए, वे कहते हैं- शरद जी बड़े नेता हैं। उनकी जिम्मेदारी बड़ी होने जा रही है। रालोद और झाविमो के विलय के बाद राष्टÑीय स्तर पर संगठन को विस्तार देना है। विलय पर औपचारिक फैसला 23 अप्रैल को पटना में राष्टÑीय परिषद की बैठक में लिया जाना है।
राज्यसभा के लिए 41 विधायकों का समर्थन चाहिए। जदयू के पास 73 विधायक हैं। राजद के पास 80 और कांग्रेस के खाते में 27 विधायक हैं। राजद से राबड़ी देवी को लालू प्रसाद इसीलिए दिल्ली लाना चाहते हैं ताकि पूर्व मुख्यमंत्री के नाते उन्हें टाइप-8 बंगला लुटियन जोन में आसानी से मिल सके। हालांकि उनकी बेटी मीसा भारती भी राज्यसभा को लेकर इच्छुक है। रघुवंश प्रसाद सिंह तीसरे वरिष्ठ नेता लाइन में हैं। 58 विधायकों वाली भाजपा के पास एक सीट जाएगी। ज्यादा उम्मीद है कि शहनवाज हुसैन के हाथ बाजी लगे।






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