बिहार की मछलियां बढ़ा रहीं बंगाल का जायका
दीपक कुमार.खगड़िया.
कोसी और बागमती की मछलियां अगर खाने की थाली में हो तो क्या कहना। मछलियों की छोटी वेरायटी और उसे पकाने की कई तकनीक उसके स्वाद को और बढ़ÞÞा देती है। शायद इसीलिए खगड़िया की मछलियों की मांग बंगाल, असम सहित बांग्लादेश तक है। यहां छोटी मछलियां जैसे पोठिया, इचना, गरैय, कैंची, कौआ, चंदा, पलवा व पतासी को धूप में सुखाते हुए देख सकते हैं। दरअसल इन मछलियों को देसी फूड प्रोसेसिंग की तकनीक से सुखाकर बाहर भेजा जाता है। इनकी मांग बांग्ला भाषी क्षेत्रों में काफी अधिक है। असम, मेघालय और बांग्लादेश में इन सूखी मछलियों का सब्जी की तरह इस्तेमाल किया जाता है। इन मछलियों को बांस की चटाई पर सुखाया जाता है। एक क्विंटल मछली सुखाने में लगभग तीन दिन लगते हैं। फिर मछलियों की छंटाई की जाती है। पोठिया, इचना, गरैय, कैंची वेरायटी की सूखी मछलियों के भाव खगड़िया में 150 रुपए प्रति क्विंटल तक हैं। वहीं पतासी और कौआ 200 से 250 रुपए तक मिलती हैं। बोरे में कसकर इन मछलियों को बाहर भेजा जाता है। यहां सिल्लीगुड़ी और असम के व्यापारी आते हैं और खरीद कर ले जाते हैं। वहीं असम में इन सूखी मछलियों का भाव 500 से 800 रुपए किलो तक जाता है। इस व्यवसाय से जुड़े विनोद मंडल बताते हैं कि जलकर से निकली मछलियों को तो यहां के बाजार में नहीं खपाया जा सकता है, तो उन्हें थोड़ी मेहनत के बाद अच्छा दाम मिलता है। वहीं बड़ी मछलियों को चीरा लगाकर सुखाया जाता है। इस तरह के काम खगड़िया में सोनमनकी, अलौली, गोगरी के पैकांत, चौथम के सोनवर्षा में किए जाते हैं।
20 हजार से ज्यादा को रोजगार
मत्स्य विभाग भी समय-समय पर इन मछुआरों को ट्रेनिंग देता है। जिला मत्स्य पदाधिकारी अंजनी कुमार का कहना है कि विभाग प्रशिक्षण देता है। मछलियों का फूड प्रोसेसिंग प्लांट खगड़िया में बैठाना थोड़ा मुश्किल है। 10 करोड़ से अधिक पूंजी लगेगी। वे इस देसी तकनीक को दूसरी पीढ़ी में भेजने के पक्षधर हैं। कहा कि इस तकनीकी को अपनाकर मछली के कारोबार में मुनाफा कामाया जा सकता है। एक अनुमान के मुताबिक खगड़िया में 20 हजार से अधिक लोग सीधे मत्स्य पालन व्यवसाय से जुड़े हैं।
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