छत्तीसगढ़ में थी पैर काटने की तैयारी, बिहार ने दी संजीवनी
छत्तीसगढ़ में विशेषज्ञ करते रहे पैर काटने की बात, दरभंगा में 20 दिन में ही हो गया चमत्कार
अंबु शर्मा. दंतेवाड़ा (छत्तीसगढ़)
बिहार कथा. छत्तीसगढ़ के बड़े सरकारी अस्पताल मेकाहारा ने पैर काटने की तैयारी कर ली थी, आवश्यकता थी सिर्फ पत्नी के सहमति के लिए दस्तख्त की। अचानक ख्याल आया गृहग्राम जाएं और एक बार वहां इलाज करवा लें और चल दिए बिहार के दरभंगा के एक अस्पताल। 20 दिन में ऐसा कमाल हो गया कि ना तो पैर काटने की नौबत आई और ना ही ज्यादा पैसे खर्च हुए और मिल गया नया जीवन। यह कहानी है दंतेवाड़ा जिले के गीदम शहर के वार्ड क्रमांक एक निवासी सुधीर शर्मा की। यह भयावह कहानी बताती है दो अलग-अलग प्रदेशों के चिकित्सकीय प्रणाली का अंतर। जिसमें पहले प्रदेश की चिकित्सकीय प्रणाली शरीर से अंग को अलग करने की पूरी तैयारी कर लेती तो वहीं दूसरे प्रदेश की प्रणाली 20 दिनों के अंदर कमाल कर बिना अंग को अलग किए पीड़ित को एक नया जीवन देती है। निश्चित ही यह कहानी छत्तसगढ़ की स्वास्थ्य सेवाओं पर प्रश्न चिन्ह लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है।
शरीर के किसी भी अंग में हुए घाव में लाख दवाएं काम ना आए और आखरी चारा उस अंग को शरीर से अलग कर देना रहे तो उस व्यक्ति पर क्या गुजरती है, सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। यदि इस बीच अचानक ऐसा कोई चमत्कार हो जाए कि बिना उस अंग को अलग किए बीमारी कटती जाए तो उसे एक नया जीवन मिलना शुरू होता है। दरअसल बीते दो-तीन वर्षों से शहर के सुधीर के पैरों में सड़न होने लग गई थी। जिला चिकित्सालय, संभाग चिकित्सालय में हजारों रुपए फूंकने के बाद भी सुधीर के पैरों का ईलाज नहीं हो पा रहा था।
इन्फेक्शन के बाद हुआ था घाव
जिला चिकित्सालय के चिकित्सकों ने सुधीर को डायबटिज का मरीज बताया और पैरों में हुए घाव का ठीक होना असंभव बताते हुए संभागीय अस्पताल रिफर कर दिया। एक छोटे से इन्फेक्शन से हुए घाव ने अच्छे खासे व्यक्ति को पंगु बना दिया और व्हील चेयर थमा दी। घर में छोटे-छोटे बच्चों और पत्नी काफी परेशान होने लगी। इधर परिवार का आर्थिक स्तर इतना अधिक गिर गया था कि सुधीर का मासूम बेटा मजदूरी करने मजबूर हो गया था। करीब 10 दिनों तक जिला अस्पताल में सुधीर का ईलाज चलता रहा। अंत में चिकित्सकों के परामर्श के बाद रायपुर के कुष्ठ प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान रायपुर भेजा गया। जहां स्थिति गंभीर देखते हुए अंबेडकर अस्पताल में दाखिल करवाया गया।
मां के दस्तख्त की आवश्यकता थी
सुधीर के इस इलाज के लिए उसका बड़ा पुत्र पिन्टू साथ था। पिन्टू ने बताया कि अंबेडकर अस्पताल में जब पिताजी को दाखिल करवाया गया, चिकित्सकों ने ईलाज असंभव बताते हुए पैर काटने को कहा। इसके लिए मां के दस्तख्त की आवश्यकता थी। मां रायपुर में हमारे साथ नहीं थी, इसलिए दस्तख्त नहीं हो पाया और हमें कुछ वक्त और मिल गया। अगर मां हमारे साथ होती तो शायद पिताजी का पैर काट दिया जाता।
सुधार की आवश्यकता
सुधीर को नया जीवन मिलने पर सुधीर और उसका परिवार बेहद खुश है। सुधीर की पत्न ी मंजू ने बताया कि बेटे पिन्टू ने मुझे फोन पर बताया कि पापा का पैर काटने को डॉक्टर बोल रहे हैं। इसके लिए आपके दस्तख्त की आवश्यकता होगी। मुझे बेहद चिंता होने लगी। लेकिन बाद में हमने बिहार जाने का निर्णय लिया। बिहार के एक अस्पताल में ईलाज के दौरान चिकित्सक ने उसे बताया कि पैर के अंदर की नसों में इन्फेक्शन हो गया था, जिसके चलते पैरों में सड़न होने लग गई थी। उसने कहा कि अब यहां की चिकित्सकीय प्रणाली से भरोसा उठना लाजिमी है। यहां के स्वास्थ्य व्यवस्थाओं में सुधार की आवश्यकता है। हालांकि छिटपुट बीमारियों का इलाज यहां संभव होना भी उन्होंने बताया। इधर सुधीर के पुन: अपने पैरों में खड़े होने की बात को लेकर सभी बेहद अचंभित हैं। आसपास के लोगों का कहना है कि यहां के चिकित्सकों ने जवाब दे दिया था, लेकिन सुधीर को अब नया जन्म मिल गया है।
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