72 साल की दीदी ने बनाया बैंक, जमा की 60 लाख की पूंजी

chapra saran jyotiअविवाहित ज्योति की बदौलत सारण जिले के 80 गांवों में महिलाएं खुद चलातीं हैं रोजगार
अमन कुमार सिंह. छपरा।
केरल की 72 वषीर्या अविवाहित ज्योति आज सारण जिले के गांव-गांव तक शिक्षा व महिला सशक्तीकरण की ज्योति जला रही हैं। उन्होंने महिलाओं के साथ मिलकर एकता सहकारी समिति बैंक बनाया। जो कल तक महिलाएं कर्ज में जी रही थी वह आज इसी बैंक के बदौलत दूसरों को कर्ज दे रही हैं। फिलवक्त इस बैंक में महिलाओं ने मिलकर 60 लाख पूंजी जमा की है। कई महिलाएं जो कल तक घर की चौखट से बाहर नहीं आती थीं, वे आज खेतों में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर कृषि कार्य कर रही हैं। करीब 80 गांवों में महिलाएं खुद की रोजगार करती हैं। तीन हजार महिलाएं आज आत्मनिर्भर बन चुकी हैं और खुद से मोमबत्ती, सर्फ व दवा बना कर अपने परिवार को पाल रहीं हैं।
शुरू में लोगों की समझ थी कि इस काम के पीछे उनका लाभ होगा, लेकिन उन्होंने सरकार द्वारा मुफ्त में प्रदान की जाने वाली चीजों की बजाय खुद के हाथों की कमाई पर भरोसा की सीख दी। जैसे-जैसे ज्योति की बात लोगों के जेहन में बैठती गई उनके प्रति उनकी निष्ठा बढ़ती चली गई और अब ज्योति जी सिस्टर ज्योति बन गई। सिस्टर जी महिलाओं का 150 समूह बनाई है और युवाओं का 30 समूह तैयार किया है। उन्हें पहले शिक्षित की फिर आत्मनिर्भर बनाया। आज एक ज्योति से कई ज्योति प्रज्ज्वलित है।
3 हजार महिलाओं की जिंदगी संवारी
72 वर्ष की हो चुकीं केरल से आईं ज्योति अब यहां सिस्टर ज्योति कहलाती हैं। इनकी सरपरस्ती में तीन हजार महिलाएं हैं। वे सभी साक्षर हो चुकी हैं और आत्मनिर्भर भी। 19 साल पहले सिस्टर ज्योति केरल के छिंदवारा से यहां आई थीं। यहां की गरीबी, अशिक्षा बेरोजगारी उन्हें द्रवित कर गई। उन्होंने निर्णय लिया कि वह इन हालातों को बदलेंगी और अशिक्षितों को तालीम देने का काम और दीन-दुखियों की सेवा करना शुरू की।
खुद का कोआॅपरेटिव बैंक
72 महिला स्वयं सहायता समूहों ने मिलकर एक एकता सहकारी समिति बैंक बनाया। जो कल तक महिलाएं कर्ज में जी रही थी, वह आज इसी बैंक के बदौलत दूसरों को कर्ज दे रही हैं। फिलवक्त इस बैंक में महिलाओं ने मिलकर 60 लाख पूंजी जमा की है। जमा पूंजी से महिलाएं लोन के तौर पर पैसा लेकर खेती व सर्फ, मोमबत्ती, पापड़ बनाती हैं। इतना ही नहीं कई लोगों इस कोआॅपरेटिव बैंक से लोन लेकर अपने बच्चों को अच्छे स्कूलों में पढ़ा भी रही हैं। इसी बैंक के बदौलत सैकड़ों निर्धन लोगों ने जमीन नहीं थी वे पट्टे पर जमीन लेकर खेती करते हैं। इस बैंक में शुरू के दौर में 12 हजार ही पूंजी इकट्ठा थी, जो दो वर्ष में आज साठ लाख तक पहुंची है।
असंभव कुछ नहीं
अविवाहित सिस्टर का एक ही उद्देश्य है कि सभी शिक्षित हों और मुफ्त में न किसी को कुछ दें, न लें। अपने निवाले खुद बना लें। उनका कहना है कि असंभव कोई शब्द ही नहीं। दुनिया में काई भी काम असंभव नहीं।






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