बिहार की ग्रीन लेडी ने कैसे बदली गांव की तस्वीर
बिहार के मुंगेर जिले में एक छोटा-सा गांव है सराधी। बात 90 के दशक की है। उन दिनों गांव में न बिजली थी, और न पानी। बच्चियां स्कूल नहीं जाती थीं। बेटी दस-बारह साल की हुई नहीं कि उसे ससुराल भेजने की तैयारी शुरू हो जाती थी। जया देवी इसी गांव में पली-बढ़Þीं। इलाके में महाजनों और दबंगों का खौफ था। बात-बात पर गोलियां चलतीं। पुलिस में सुनवाई नहीं होती थी। कोई थाने में शिकायत भी नहीं दर्ज करवाता था। जया के पिता किसान थे। वह चाहते थे कि बच्चे पढ़-लिखकर नौकरी करें। मगर गांव में बेटियों की पढ़ाई की बात करना मानो अपराध था। जया को पढ़ने का शौक था। पांचवीं कक्षा पास करने के बाद आगे पढ़ने की बात कही, तो हंगामा हो गया। गांव वालों को उनका स्कूल जाना जरा भी नहीं भाया। स्कूल जाने के लिए चोरी- चुपके घर से निकलना पड़ता था। सब उनके खिलाफ थे, पर पिता संग थे। उन्होंने गांव में बड़ा स्कूल खुलवाने के लिए अपनी जमीन दान दे दी। सोचा, बेटी के संग गांव के बच्चे भी पढ़ाई करेंगे। पर इससे पहले कि स्कूल बन पाता, दबंगों ने उस जमीन पर कब्जा कर लिया। परिवार ने विरोध किया, तो गुंडों ने तांडव मचा दिया। जया के पिता व दूसरे परिजनों की पिटाई हुई। दोबारा आवाज नहीं उठाने की धमकी भी दी गई। जया कहती हैं, बहुत गुस्सा आता था। पर तब मैं बहुत छोटी थी। कुछ नहीं कर सकती थी उनके खिलाफ।
उस घटना के बाद पिताजी के हौसले पस्त हो गए। सबने सलाह दी, बेटी को स्कूल भेजने की बजाय ससुराल भेज दो। पिता उनके लिए दूल्हा खोजने लगे। 12 साल की उम्र में जया की शादी हो गई। चंद महीने बाद ही पति उन्हें छोड़ काम की तलाश में मुंबई चले गए। 18 साल की उम्र तक वह तीन बच्चों की मां बन चुकी थीं। वर्ष 1993 में पिता की मौत के बाद वह मायके आकर रहने लगीं। इसी बीच गांव में एक दिन खौफनाक वाकया हुआ। गांव के कुछ दबंगों ने सरेआम एक लड़की के साथ बलात्कार किया। जया उस लड़की को अच्छी तरह जानती थीं। जब उन्हें यह बात पता चली, तो बहुत गुस्सा आया। जया कहती हैं, मैं दबंगों को सबक सिखाना चाहती थी। मगर कैसे करती? कोई नहीं था मेरे साथ। न परिवार वाले, न गांव वाले।
उसी दौरान एक दिन वह अपने बीमार बच्चे की दवा लेने गांव के अस्पताल गईं। जया के हाव-भाव देखकर वहां मौजूद नर्स को कुछ गड़बड़ लगी। उसने जया से पूछा, तुम इतनी परेशान क्यों लग रही हो? कुछ हुआ है तुम्हारे साथ? जया ने नर्स को गांव की घटना के बारे में बताया। नर्स ने कहा, अगर गांव की सारी औरतें मिलकर आवाज उठाएं, तो हालात बदल सकते हैं। नर्स की बातों में जया को एक उम्मीद नजर आई। बदलाव की पहली सीढ़ी थी महिलाओं में जागरूकता पैदा करना। महिलाओं को एकजुट करना और उन्हें बताना कि नारी अन्याय बर्दाश्त करने के लिए मजबूर नहीं है। अभियान की शुरुआत के लिए उन्होंने एक गैर-सरकारी संगठन से 15 दिनों की ट्रेनिंग ली। घर पर अपने बच्चों को छोटी बहन के हवाले करके वह रोज सुबह निकल पड़तीं गांव की महिलाओं से संवाद करने। शुरुआत में महिलाएं घूंघट से बाहर निकलने को तैयार न थीं, पर धीरे-धीरे हालात बदलने लगे। जया बताती हैं, रोजाना मैं बारी-बारी हर घर का दरवाजा खटखटाती थी। कई बार तो औरतें मुझे देखकर दरवाजा बंद कर लेती थीं। मैं बाहर बैठकर उनका इंतजार करती और बाहर निकलने पर उन्हें समझाती कि यह सब मैं गांव की भलाई के लिए कर रही हूं। इस बीच उन्होंने दो गाएं खरीदीं और दूध बेचकर घर चलाने लगीं। परिवार का खर्च निकालने के बाद थोड़ी बचत भी हो जाती थी। मन में ख्याल आया कि क्यों न गांव की बाकी महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बनाया जाए। एक साल के अंदर उन्होंने 16 गांवों में स्व-सहायता समूह बना लिए। महिलाओं को छोटी बचत कराना सिखाया, ताकि वे महाजनों के चंगुल से आजाद हो सकें, जो कर्ज और ब्याज के बहाने उनका शोषण करते थे।
अब मेरे गांव की बंजर जमीन पर हरियाली छाई है। महिलाएं घर से बाहर निकलकर काम करने लगी हैं। बेटियां अब घर में चूल्हा नहीं फूंकतीं। वे साइकिल चलाकर स्कूल जाती हैं। लेकिन हालात हमेशा से ऐसे नहीं थे। यह खूबसूरत बदलाव हम औरतों की वजह से आया है।
महिलाओं के संग काम करने पर जया को समझ में आया कि गांव की बदहाली की बड़ी वजह है- बंजर जमीन। लिहाजा उन्होंने रेन वाटर हार्वेस्टिंग की ट्रेनिंग ली और महिलाओं की मदद से मुंगेर जिले के तमाम गांवों की बंजर जमीन को उपजाऊ बनाने का अभियान छेड़ा। जया ने वह कमाल कर दिखाया, जो आज तक किसी सरकारी योजना के तहत संभव नहीं हो सका था। उनकी टीम ने करीब पांच हजार एकड़ बंजर इलाके को हरे-भरे खेतों में तब्दील कर दिया। हरियाली के साथ गांवों में खुशहाली आई, पर बडे़ जमींदार और नक्सली ताकतें नाराज हो गईं। धमकियां मिलने लगीं। लेकिन जया बिना डरे आगे बढ़Þती गईं। उनकी शोहरत मुंगेर के सराधी गांव से निकलकर पूरे बिहार में फैल गई। वह ग्रीन लेडी आॅफ बिहार के नाम से मशहूर हो गईं। 2008-09 में उन्हें दिल्ली में नेशनल यूथ अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। जया बताती हैं, अब मेरे गांव की लड़कियां चूल्हा नहीं फूंकतीं। वे साइकिल चलाकर स्कूल जाती हैं। मेरी दोनों बेटियां भी पढ़ती हैं। अब इलाके में दबंगों की नहीं, हम महिलाओं की धमक चलती है। (जया देवी से मीना त्रिवेदी की बातचीत पर आधारित) from livehindustan.com
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