जातीय आरक्षण की सीमा में ना बांधें जननायक र्कपूरी को
राजन झा
कपूर्री ठाकुर की जयंती के मौके पर बिहार के सभी राजनीतिक दलों द्वारा कपूर्री ठाकुर की राजनीतिक विचारधारा को आरक्षण की सीमा में बांधने का भरपूर प्रयास किया गया। जहां एक तरफ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने केंद्र सरकार से अतिपिछड़ों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर अलग से आरक्षण करने की मांग की, वहीं विपक्षी दल भाजपा ने पंचायत स्तर पर अतिपिछड़ों के लिए आरक्षण सीमा बढ़Þाने की मांग की। जहां तक राजनीतिक विचारधारा की बात है, कपूर्री ने रोटी और आजादी का नारा दिया था और रोटी हर एक इंसान की जरूरत है, चाहे वो किसी भी जाति का हो। इसी प्रकार आजादी के मायने भी कपूर्री के लिए किसी खास जाति-वर्ग तक सीमित नहीं था, बल्कि सामंती व्यवस्था से शोषित सभी तबके मसलन गरीब किसान, मजदूर और महिलाओं को राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक आजादी दिलाने का था। इसी राजनीतिक दृष्टि से कपूर्री ठाकुर फामूर्ला मुंगेरीलाल आयोग की सिफारिशों में कुछ संशोधन के साथ प्रस्तुत किया गया था। इसके अंतर्गत 26 फीसदी आरक्षण की बात की गई थी। इसकी तीन श्रेणियां बनाई गईं। एनेक्सर -1 में अति पिछड़ी जातियों को रखा गया और उन्हें 12 फीसदी आरक्षण का प्रावधान किया गया। एनेक्सर-2 में उन पिछड़ी जातियों को रखा गया, जो थोड़ी संपन्न हैं और उन्हें 8 फीसदी आरक्षण तथा किसी भी वर्ग की महिलाओं एवं उच्च वर्ग के गरीब लोगों को तीन-तीन फीसदी आरक्षण का प्रावधान प्रस्तावित था। उपर्युक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि कपूर्री ठाकुर का फामूर्ला जाति के लिए नहीं बल्कि समाज के तमाम कमजोर वर्गों को ध्यान में रख कर बनाया गया था। तो क्या कपूर्री ठाकुर की जयंती के बहाने विभिन्न राजनीतिक दल वोट की राजनीति के तहत जननायक को जातीय आरक्षण की सीमा में बांधने का प्रयास कर रहे हैं? भाजपा और आरएसएस का एक वर्ग जहां आरक्षण की समीक्षा के पक्ष में है, वहीं बिहार चुनाव में हार के बाद एक वर्ग का मानना है कि अति पिछड़े वर्ग के समर्थन के बिना पार्टी को चुनावी सफलता नहीं मिल सकती। सनद रहे कि जातीय आधार पर आरक्षण से हिन्दू समाज में व्याप्त असमानताएं उजागर होती हैं। आरएसएस के कुछ बयानों से देश भर में विवाद होने के बावजूद भाजपा ने उत्तरप्रदेश में कपूर्री ठाकुर फामूर्ले के तहत अति पिछड़ों के लिए अलग से आरक्षण की मांग कर डाली। जानकारों के मुताबिक भाजपा का यह कदम आगामी उत्तर प्रदेश चुनाव को ध्यान में रख उठाया गया है। उसे उम्मीद है कि उसकी इस मांग से अति पिछड़ों का उसकी तरफ झुकाव होगा। दूसरी तरफ जननायक की राजनीतिक विरासत पर अपनी स्वाभाविक दावेदारी पेश करने वाले सत्ताधारी दल जनता दल यूनाइटेड ने कपूर्री की जयंती तो पूरे धूमधाम से मनाई, लेकिन विरोधी उस पर सवाल उठा रहे हैं। महिलाओं को पंचायतों और सभी सरकारी नौकरियों में आरक्षण देकर निश्चित ही नीतीश कुमार ने कपूर्री के सपने को साकार करने का काम किया। पर, विरोधियों का आरोप है कि सरकार अपने ही कार्यकाल में बनाए गए अति पिछड़ा आयोग की रिपोर्ट को सदन के पटल पर नहीं रख सकी। अति पिछड़ों के समर्थन से 10 वर्षों तक सरकार चलाने के बावजूद सरकार अति पिछड़ा नीति बनाने में असफल रही। आरक्षण के अलावा बुनियादी समस्याओं मसलन भूमि सुधार, समान शैक्षणिक अवसर प्रदान करने जैसे मुद्दे पर सरकार सफलता का बड़ा दावा नहीं कर सकती है। आज भी राज्य में अति पिछड़े और महिलाओं के लिए बजट में अलग से प्रावधान नहीं हैं। राजनीतिक अधिकारों के साथ साथ आर्थिक सशक्तीकरण भी जरूरी है। आरक्षण से राजनीतिक प्रतिनिधित्व तो मिला, पर जीवन के अन्य क्षेत्रों में इन वर्गों का सही मायने में प्रतिनिधित्व आर्थिक समृद्धि से ही सुनिश्चित हो
सकेगा। लालू प्रसाद के शासन काल में सामाजिक न्याय का आजादी वाला पक्ष काफी हद तक सफल रहा। नीतीश कुमार ने नारे के दूसरे पक्ष को ध्यान में रखते हुए विकास की राजनीति करने की कोशिश की, पर जब तक विकास की रोशनी पंक्ति में खड़े अंतिम लोगों तक नहीं पहुंचेगी, तब तक जननायक का सपना पूरा नहीं होगा।
Related News
इसलिए कहा जाता है भिखारी ठाकुर को भोजपुरी का शेक्सपियर
स्व. भिखारी ठाकुर की जयंती पर विशेष सबसे कठिन जाति अपमाना / ध्रुव गुप्त लोकभाषाRead More
पारिवारिक सुख-समृद्धि और मनोवांछित फल के लिए ‘कार्तिकी छठ’
त्योहारों के देश भारत में कई ऐसे पर्व हैं, जिन्हें कठिन माना जाता है, यहांRead More
Comments are Closed