बिहार की 5 बेटियों को विदेशी दंपति ने लिया गोद
91 बच्चे लिए गए गोद
अनुपम कुमारी
पटना। महज दो साल की मीनाक्षी और अंजली पर कुदरत की नाराजगी ऐसी हुई कि अपनों ने भी किनारा कर लिया. जन्म से नि:शक्त होने के कारण घरवालों ने अपनाने से इनकार कर दिया। पर, किस्मत का करिश्मा ऐसा की इन्हें अपनाने के लिए सात समंदर पार की दूरी भी कम पड़ रही है। जी हां, इस साल मीनाक्षी और अंजली समेत कुल पांच बच्चियों को विदेशी दंपतियों ने गोद लिया है। ये पांचों बच्चियां नि:शक्त हैं। इन्हें माता-पिता के साथ समाज ने भी ठुकरा दिया था। ये बच्चियां राज्य दत्तक ग्रहण केंद्र से गोद ली गई हैं। बिहार सरकार की ओर से संचालित राज्य दत्तक ग्रहण संसाधन केंद्र (सारा) विदेशों से आॅनलाइन आवेदन कर बच्चियों को अपना रही हैं। इसमें पांच बच्चियां गोद ली गई हैं और 18 प्रक्रियाधीन हैं।
समाज कल्याण विभाग के तहत पूरे बिहार में कुल नौ एजेंसियां संचालित हैं. इनमें इस वर्ष कुल 196 बच्चे हैं। जिसमें लड़कों की संख्या 31 और लड़कियों की 126 हैं। वहीं, इनमें 39 नि:शक्त बच्चे हैं। इस वर्ष कुल 91 बच्चे गोद लिए गए हैं. इनमें 26 लड़के व 60 लड़कियां है। इसमें पांच बच्चियां नि:शक्त हैं, जिन्हें विदेशी दंपतियों ने गोद लिया है। दत्तक ग्रहण के वेबसाइट के अनुसार यूएस के पांच दंपतियों ने बच्चों को गोद लिया है। इनमें अंजली को नार्थ कैरोलिना, मीनाक्षी को फ्लोरिडा, बेबी को वर्जेनिया, अनुष्का को ओकलाहामा व अफसाना को मोडेस्टो के दंपतियों ने गोद लिया है। इनको विदेशी दंपतियों से मैच करा कर गोद दिया गया है।
यह है व्यवस्था
सारा के बेवसाइट के जरिए देश भर से गोद लेनेवाली एजेंसियों को जोड़ा गया है। इन एजेंसियों को विदेशों से जोड़ने के लिए आथोर्राइज्ड फॉरेन एजेंसी (आफा) सभी देश में संचालित हैं। इनकी एक एजेंसी केरल में स्थापित हैं। इसकी मदद से इन विदेशी दंपतियों की जांच की जाती है। जांच प्रक्रिया पूरी होने के बाद राज्य दत्तक ग्रहण संस्थान आफा के सहयोग से इन बच्चियों को सौंपा जाता है। गोद लेने के बाद उस देश की एजेंसी आफा इन बच्चियों की मॉनीटरिंग भी करता है। इसकी सूचना भारत के आफा एजेंसी के पास भी रहता है। from prabhatkhabr.com
लगता है डेढ़ माह का समय
पहली बार बिहार के अनाथ व स्पेशल बच्चों को विदेशी दंपती की ओर से चयन किया गया है। बच्चों को सौंपने से पहले पूरी जांच की जाती हैं। पूरी छानबीन करने में एक से डेढ़ माह का समय लगता है। आथोर्राइज्ड फॉरेन एजेंसी की मदद से प्रक्रिया पूरा होने पर बच्चियों को उन्हें बुला कर सौंपा जाता है।
– ब्रजेश कुमार, प्रोग्राम मैनेजर, राज्य दत्तक ग्रहण संसाधन केंद्र
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