न्याय रथ से बिहार को जगाने वाले सहज जीवन के पुरोधा थे कपूर्री ठाकुर

karpoori_thakur_stamp_1991 biharकपूर्री ठाकुर के जन्मदिवस 24 जनवरी पर विशेष
इमरान
जननायक कपुर्री ठाकुर का जन्म बिहार के समस्तीपुर जिले के पतोझिया ग्राम में 24 जनवरी सन 1924 को एक अति पिछड़े वर्ग के परिवार में हुआ। पिता का नाम गोकुल ठाकुर तथा माता का नाम रामदुलारी था। बिहार प्रांत में गरीबी का जीवन यापन करने वाले इनके पिता गोकुल ठाकुर ने पतौझिया से 6 किलोमीटर दूर स्थित तिरहुत एकेदमी में कपूर्री ठाकुर की प्रारम्भिक शिक्षा दिलाई। यह दूरी कपूर्री ठाकुर को पैदल ही नंगे पैर तय करनी पड़ती थी। विद्यायय जाते समय रास्ते में एक अध्यापक के पास ठहरकर अखबार पढ़ लेते थे, जिससे कपूर्री ठाकुर को देश विदेश की घटनाओं का ज्ञान होने लगा। 1936 में कपूर्री ठाकुर ने आठवीं की परीक्षा पास कर ली थी। कपूर्री ठाकुर पर कुछ कहते अथवा लिखते समय महाकवि मैथिलीशरण गुप्त की निम्न पंक्तियों का स्मरण हो आता है , राम तुम्हारा जीवन ही तो काव्य है, कोई कवि बन जाए, सहज संभाव्य है, इन पंक्तियों की रचना गुप्त ने साकेत महाकाव्य की रचना के क्रम में की थी, सिद्धान्त रूप में यह कथन प्रत्एक कालखंड में तमाम तरह के छोटे-बड़े महापुरुषों के जीवन पर चरितार्थ होता है, महान व्यक्तित्व का सार्वभौमीकरण , सरलीकरण और साधरणीकरण होता ही इसलिए है ताकि समय विशेष में आम लोग उसमें अपना चेहरा देख सकें। लेकिन कपूर्री ठाकुर इसके भी अपवाद थे, महाकवि कबीर ने कहा है – सहज सहज सब कोई कहे ,सुहज न जाने कोई मेरा मानना है कि जननायक कपूर्री ठाकुर का सम्पूर्ण जीवन ही सहजता का पर्याय था, इसी सहजता की वजह से उनका परिवेश गत स्वभाव जन्म से लेकर मृत्यु तक एक सा बना रहा , बोलचाल, भाषाशैली, खानपान, रहन सहन, और रीति नीति आदि सभी क्षेत्रों में उन्होने ग्रामीण संस्कार और संस्कृति को अपनाए रखा, सभा सम्मेलनों तथा पार्टी और विधानसभा की बैठकों में भी उन्होने बड़े से बड़े प्रश्नों पर बोलते समय उन्ही लोकोक्तियों और मुहावरों का, जो हमारे गांवो और घरों मे बोले जाते हैं,Bihar-Katha-header-black-and-red सर्वदा इस्तेमाल किया । कपूर्री का वाणी पर कठोर नियंत्रण था, वे भाषा के कुशल कारीगर थे उनका भाषण आडम्बररहित, ओजस्वी, उत्साहवर्धक तथा चिंतक पूरक होता था, कड़वा से कड़वा सच बोलने के लिए वे इस तरह के शब्दों और वाक्यों को व्यवहार में लेते थे, जिसे सुनकर प्रतिपक्ष तिलमिला तो उठता था, लेकिन यह कह नहीं पाता था कि कपूर्री जी ने उसे अपमानित किया है। उनकी आवाज बहुत ही खनकदार एवं चुनौतीपूर्ण होती थी। लेकिन यह उसी हद तक सत्य संयम और संवेदना से भी भरपूर होती थी, कपूर्री जी को जब कोई गुमराह करने की कोशिश करता था। तो वे जोर से झल्ला उठते थे तथा क्रोध से उनका चेहरा लाल हो उठता था, ऐसे अवसरों पर वे कम ही बोल पाते थे, लेकिन जो नहीं बोल पाते थे , वह सब उनकी आंखों में साफ साफ झलकने लगता था, फिर भी विषम से विषम परिस्थितियों में भी शिष्टाचार और मयार्दा की लक्ष्मण रेखाओं का उन्होने कभी भी उल्लंघन नही किया।
सामान्य, सरल और सहज जीवन शैली के हिमायती कपूर्री ठाकुर को प्रारम्भ से ही सामाजिक और राजनीतिक अंतर्विरोधों से जूझना पड़ा, यह अंतर्विरोध अनोखे थे और विघटनकारी भी, हुआ यह कि आजादी मिलने के साथ ही साथ पर कांग्रेस काबिज हो गई , बिहार में कांग्रेस पर उंची जातियों का कब्जा था, यह उंची जातियां सख्या का अधिक से अधिक स्वाद चखने के लिए आपस में लड़ने लगी, पार्टी के बजाय इन जातियों के नाम पर वोट बैंक बनने लगे, सन 1952 के प्रथम आम चुनाव के बाद कांग्रेस के भीतर की कुछ संख्या बहुत पिछड़ी जातियों ने भी अलग से एक गुट बना डाला जिसका नाम रखा गया त्रिवेणी संघ अब यह संघ भी उस महानायक में सम्मिलित हो गया। शीघ्र ही इसके बुरे नतीजे सामने आने लगे , संख्याबल, बाहुबल और धन बल की काली ताकतें राजनीति और समाज को नियंत्रित करने लगी ,राजनीतिक दलों का स्वरूप बदलने लगा, निष्ठावान कार्यकर्ता औंधे मुंह गिरने लगे, कपूर्री जी ने न केवल इस परिस्थिति का डटकर सामना किया। देश भर में कांग्रेस के भीतर और भरी कई तरह की बुराइंया पैदा हो चुकी थी, इसलिए उसे सत्ताच्युत करने के लिए सन 1967 के आम चुनाव में डा राममनोहर लोहिया के नेतृत्व में गैर कांग्रेसवाद का नारा दिया। कांग्रेस पराजित हुई और बिहार में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी, सत्ता में आम लोगों और पिछड़ों की भागीदारी बढ़Þी, कपूर्री जी उस सरकार में उप मुख्यमंत्री बने ,उनका कद उंचा हो गया। उसे तब और ऊंचाई मिली जब वे 1977 में जनता पार्टी की विजय के बाद बिहार के मुख्यमंत्री बने, हुआ यह था कि 1977 के चुनाव में पहली बार राजनीतिक सख्या पर पिछड़ा वर्ग को निर्णायक बढ़Þत हांसिल हुई थी, मगर प्रशासन तंत्र पर उनका नियंत्रण नहीं था, इसलिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण की मांग जोर शोर से की जाने लगी, कपूर्री जी ने मुख्यमंत्री की हैसियत से उक्त मांग को संविधन सम्मत मानकर एक फॉमूर्ला निर्धारित किया और काफी विचार विमर्श के बाद उसे लागू भी कर दिया। इस पर पक्ष और विपक्ष में थोड़ा बहुत हो हल्ला भी हुआ, अलग अलग समूहों ने एक दूसरे पर जातिवादी होने के आरोप भी लगाए। मगर कपूर्री जी का व्यक्तित्व निरापद रहा, उनका कद और भी उंचा हो गया। और अपनी नीति और नियत की वजह से वे सर्वसमाज के नेता बन गए ,जननायक कपूर्री जी जीवन भर बिहार के हक की लड़ाई लड़ते रहे ,वह खनिज पदार्थ के माल भाड़ा समानीकरण का विरोध ,खनिजों की रायल्टी वनज के बजाए मूल्य के आधार पर तय कराने तथा पिछड़े बिहार को विशेष पैकेज की मांग के लिए संघर्ष करते रहे, जीवन के अन्तिम दिनों में सीतामढ़ी के सोनवरसा विधानसभा क्षेत्र का विधायक रहते हुए उन्होने श्री देवीलाल द्वारा प्रदान न्याय रथ से बिहार को जगाया।
गांधी मैदान पटना में न्याय मार्च रैली आयोजित कर केन्द्र को चुनौती दी, इसके बाद वे काल के काल में समा गए, 17 फरवरी 1988 को वे हमारे बीच से सदा के लिए चले गए, माल भाडा समानीकरण 1992 में समाप्त हुआ ,बाकी बिहार के हक की लड़ाई राज्य के निवर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लड़ते रहे, इस प्रकार अपने संघर्ष के रूप में कपूर्री ठाकुर आज भी हमारे दिलों में जीवित हैं।

space for advt






Related News

  • क्या बिना शारीरिक दण्ड के शिक्षा संभव नहीं भारत में!
  • मधु जी को जैसा देखा जाना
  • भाजपा में क्यों नहीं है इकोसिस्टम!
  • क्राइम कन्ट्रोल का बिहार मॉडल !
  • चैत्र शुक्ल नवरात्रि के बारे में जानिए ये बातें
  • ऊधो मोहि ब्रज बिसरत नाही
  • कन्यादान को लेकर बहुत संवेदनशील समाज औऱ साधु !
  • स्वरा भास्कर की शादी के बहाने समझे समाज की मानसिकता
  • Comments are Closed

    Share
    Social Media Auto Publish Powered By : XYZScripts.com