ज्ञानेश्वर, वरिष्ठ पत्रकार
हम ये नहीं कह रहे कि 50 पार के बाद के सभी एसपी जिलों के लिए रिजेक्टेड मैटेरियल ही होते हैं । अब भी कुछ अच्छे हैं । पर, इनकी प्राथमिकताएं सीधे आईपीएस अधिकारियों के बराबर तो हरगिज नहीं होती । आगे बात करने के पहले हम 13 जिलों के 50 पार वाले एसपी की सूची देख लें । कोष्ठक में उम्र है । ध्यान रखें, रिटायरमेंट की उम्र 60 है । 1. बरुण कुमार सिन्हा,मुंगेर (59) 2.विनोद कुमार-2,सहरसा (55) 3.अनिल कुमार सिंह,खगडि़या (57) 4.अजीत कुमार सत्यार्थी,दरभंगा (59) 5.कुमार एकले,सुपौल (58) 6.मो. अख्तर हुसैन,मधुबनी (59) 7.सुरेश प्रसाद चौधरी,समस्तीपुर (52) 8.पंकज सिन्हा,नौगछिया (53) 9.आनंद कुमार सिंह,बगहा (59) 10.अशोक कुमार,लखीसराय (55) 11.राजीव रंजन,किशनगंज (52) 12.दिलीप कुमार मिश्रा,अरवल (54) व 13.विवेकानंद,नालंदा (54)
राजनीतिक दलखअंदाजी
50 पार के इन 13 एसपी में दो-तीन नाम छोड़ दें,तो और कोई नहीं, जिनका रिकार्ड आईपीएस में प्रोन्नति के पहले भी अपराध के खिलाफ तगड़े योद्धा के रुप में रहा हो । रिटायरमेंट के वक्त तक जिले की कमान में पालिटिकल कनेक्शंस का बड़ा योगदान होता है । यह आदि काल से चला आ रहा है । पर जब अपराध बढ़ता है,तो सवाल जरुर उठेगा कि जिलों में अधिक हिट-फिट एसपी क्यों नहीं ? 22-25-27 साल की उम्र में कोई नौजवान यूपीएससी की कड़ी प्रतियोगिता पास कर आईपीएस बनता है तो सेवा में पहला गौरव काल तब आता है,जब वह जिले का एसपी बनता है । हम यह भी मानते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में कठोर प्रतिज्ञा वाले अफसर कम आ रहे हैं । फिर भी,सिस्टम से करप्ट होने के पहले सभी कुछ न कुछ तो करना ही चाहते हैं । सो,वे 50 पार वाले एसपी से अधिक हिट-फिट तो रहते ही हैं ।
50 पार की प्राथमिकता
सेवा काल में पचास पार और रिटायरमेंट के करीब-करीब आते लाइफ की प्रायोरिटी बदल जाती है, समझने की जरुरत है । कुछ वर्ष पहले की बात है । आपको याद होगा कि केरल के श्रीपद्मनाभस्वामी मंदिर के तहखानों को खोलने को लेकर विवाद चल रहा था । सभी तहखानों में हीरे-जवाहरात भरे हैं । कुछ खुले, कुछ नहीं खुले । मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया । तभी दिल्ली में रात को बड़े क्लब में कई बड़े लोगों की बैठकी में शामिल था । कानून के जानकार भी थे । बहस श्रीपद्मनाभस्वामी मंदिर के तहखानों को लेकर शुरु हो गई । तभी टिप्पणी हुई कि सुप्रीम कोर्ट के माननीय न्यायाधीश तहखानों को खोलने को लेकर कोई स्पष्ट आदेश नहीं देंगे । मैंने तपाक से पूछा,क्यों ? जवाब मिला- भगवान के तहखाने को खोलने-न खोलने को लेकर कोई कानून तो है नहीं । विवेक से जज को निर्णय लेना होता है । ऐसे में, माननीय न्यायाधीश फैसले के पहले भगवान को सोचने लगते हैं । भगवान क्या मानेंगे और क्या नहीं मानेंगे, मन में सवाल उठने लगता है । ऐसे में, विवाद अटका रह जाता है और जज साहब रिटायरमेंट की उम्र तक पहुंच जाते हैं । इस मिथक को तोड़ने वाले विरले ही होते हैं ।
बुड्ढे एसपी की चर्चा के बीच श्रीपद्मनाभस्वामी मंदिर और सुप्रीम कोर्ट का प्रसंग लाने का मेरा ध्येय आप सभी समझ गये होंगे । प्रारंभ में भी कहा था कि नौकरी के बचे-खुचे वर्षों में रिटायरमेंट के बाद का प्लान अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है । सरकारी जिम्मेवारी से ज्यादा निजी जवाबदेही का ख्याल आता है । ऐसे में, मन-मिजाज अपराधियों के खिलाफ ‘सिंघम’ बनने से रोकता है । मार-धाड़ और सख्त पुलिसिंग के तौर-तरीकों पर काम नहीं करने देता । रात में अधिक गश्ती की इजाजत शरीर नहीं देता । और इन सबों का परिणाम तो आप समझ ही रहे हैं कि सिर्फ व सिर्फ जिला भुगतता है ।
(वरिष्ठ पत्रकार ज्ञानेश्वर की साइट sampoornakranti से साभारðX
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