बिहार चुनाव ने दिया राष्ट्रीय राजनीति को निर्णायक मुकाम
पटना। . बिहार चुनाव ने राष्ट्रीय राजनीति को निर्णायक मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया है। यहां का फैसला देश में संघ और विकसित होते भाजपा विरोधी मिजाज की एक अभिव्यक्ति है। इस चुनाव से भाजपा ने कोई सीख नहीं ली। भाजपा व संघ परिवार एक बार फिर से राम मंदिर को मुद्दा बनाकर देश में सांप्रदायिक विभाजन की राजनीति करना चाहते हैं।
ये बातें रविवार को फुलवारीशरीफ के हरनीचक में शुरू भाकपा-माले के केंद्रीय कमेटी की तीन दिवसीय बैठक के पहले दिन वक्ताओं ने कही। कहा कि संविधान दिवस के नाम पर गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने धर्मनिरपेक्षता पर ही प्रश्न चिन्ह लगाया। संघ व भाजपा परिवार संविधान, लोकतंत्र तथा धर्म निरपेक्ष मूल्यों पर लगातार हमला कर रहे हैं, इसका जोरदार प्रतिरोध करना होगा।
बैठक के दौरान तय किया गया कि माले 2016 में पश्चिम बंगाल, असोम, तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी में होने वाले विधानसभा चुनाव में वामदलों तथा लोकतांत्रिक ताकतों में एकता स्थापित करते हुए चुनाव में भाग लेगा। केंद्रीय कमेटी ने कामरेड विनोद मिश्र की 17वीं बरसी के दिन 18 दिसंबर से सदस्यता विस्तार और नवीनीकरण अभियान चलाने का फैसला लिया। यह 15 फरवरी तक चलेगा।
बैठक में महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य, पोलित ब्यूरो सदस्य स्वदेश भट्टाचार्य, बिहार राज्य सचिव कुणाल, उत्तर प्रदेश के सचिव रामजी राय, ऐपवा सचिव कविता कृष्णन, तमिलनाडु से कुमार स्वामी, वी. शंकर, बांगर राव, ओडिशा से युद्धिष्ठिर महापात्रा, असोम से रूबुल शर्मा, बंगाल से कार्तिक पाल, पार्थो घोष, राजस्थान से महेंद्र चौधरी, दिल्ली से रवि राय, राजीव डिमरी, स्वप्न मुखर्जी, पंजाब से गुरमीत सिंह, उत्तराखंड से राजा बहुगुणा के साथ मीना तिवारी, कृष्णा अधिकारी, धीरेंद्र झा, शशि यादव आदि शामिल हैं।
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