सीवान जिले की पहली ग्रेजुएट महिला थीं शैलजा
स्मृति शेष : डॉ अमित कुमार मुन्नू
सीवान : संस्कृत-हिंदी एवं भोजपुरी की सुधी लेखिका एवं कवयित्री स्व श्रीमती शैलजा कुमारी का जन्म 19 अक्तूबर, 1927 को हुआ. श्याम किशोर श्रीवास्तव एवं सुभद्रा देवी की संतान शैलजा जी के पिता स्व श्याम किशोर श्रीवास्तव उर्दू एवं फारसी के मूर्धन्य विद्वान एवं शायर थे, जबकि इनके अग्रज स्व मणि शंकर श्रीवास्तव हिंदी के कवि होने के साथ-साथ समालोचक भी थे. इनका जन्म एक साहित्यिक परिवार में हुआ.
इनका विवाह भी सीवान जिलान्तर्गत दिघवालिया ग्राम के एक शिक्षित प्रतिष्ठित एवं जमीदार परिवार में महेंद्र कुमार, एमए, एमकॉम, डीप-इन-एड के साथ हुआ. इनके श्वसुर स्व रसिक बिहारी शरण एमए, बीएल सीवान के एक प्रतिष्ठित वकील थे. इनके जेठ (भैंसुर) दर्जनों पुस्तकों के रचयिता, स्व संत कुमार वर्मा हिंदी भोजपुरी के विद्वान लेखक, कवि, समालोचक पत्रकार, अधिवक्ता होने के साथ ही देशरत्न डाॅ राजेंद्र प्रसाद के साहित्यिक सचिव भी थे.
सीवान में हुई प्रारंभिक शिक्षा
शैलजा जी की प्रारंभिक एवं माध्यमिक शिक्षा क्रमशः पिलुई और सीवान में हुई. उच्च शिक्षा काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी में पायी, जहां आचार्य नंद दुलारे वाजपेयी, महाकवि पं सूर्यकांत त्रिपाठी ‘ निराला’ तथा आचार्य बद्रीनाथ शुक्ल का सानिध्य उन्हें प्राप्त हुआ. इससे उनकी अंकुरित-पल्लवित साहित्यक प्रतिभा में निखार आया. शैलजा जी ने बिहार संस्कृत समिति, पटना से साहित्याचार्य (स्वर्ण पदक प्राप्त), एमए संस्कृत बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर तथा पटना से डिप एड किया. शिक्षा विभाग की सेवा में आने के पश्चात इन्होंने एमए, साहित्याचार्य (स्वर्ण पदक प्राप्त) तथा डिप-इन-एड किया.
शिक्षा विभाग के विभिन्न पदों पर कार्यरत रहीं. अंत में प्राचार्या,महिला प्राथमिक शिक्षक शिक्षामहाविद्यालय, सीवान के साथ ही साथ जिला विद्यालय निरीक्षिका, सारण-सीवान-गोपालगंज के पद से 31 अक्तूबर, 1985 को सेवानिवृत्त हुईं. 31 दिसंबर, 1989 को उनका स्वर्गवास हुआ. शैलजा जी 1970 में पुराने सारण जिला भोजपुरी साहित्य सम्मेलन के सीवान अधिवेशन की स्वागताध्यक्ष रहीं. 1972 में कानपुर भोजपुरी साहित्य सम्मेलन में सचिव बनीं.
1977 में अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन के तीसरे अधिवेशन की संयुक्त सचिव तथा अखिल भारतीय भोजपुरी महिला साहित्य सम्मेलन की स्वागत मंत्री भी बनीं. 1981 में सीवान जिला भोजपुरी साहित्य सम्मेलन की अध्यक्षा भी रहीं. 1984 जिले की प्रतिनिधि साहित्यिक संस्था साहित्य -संचेतना, सीवान द्वारा इन्हें सम्मानित भी किया गया.
इन्होंने लगभग चार दशकों तक साहित्य की सेवा की. इनकी रचनाएं बिहार तथा उत्तर प्रदेश की साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं. पटना आकाशवाणी से भी इनकी अनेक रचनाएं प्रसारित हुई हैं. साहित्य परिषद-सीवान द्वारा प्रकाशित सारण जिले (छपरा-सीवान -गोपालगंज) के हिंदी साहित्यकारों के प्रतिनिधि कविता- संग्रह नव-ज्योति में इनकी छह कविताएं प्रकाशित हैं.
इनके भोजपुरी निबंध संग्रह चिंतन-कुसुम पर अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन ने इनको मरणोपरांत चित्रलेखा पुरस्कार प्रदान किया. बाणभट्ट द्वारा लिखित कादम्बरी (तीन जन्म की कहानी) को भोजपुरी में इन्होंने मूलग्रंथ की कथा और भावना के साथ किसी प्रकार की छेड़छाड़ किये बिना भोजपुरी में कादम्बरी लिखी. पंडित गोविंद झा के शब्दों में यह कृति न तो कादम्बरी का अनुवाद है ,न रूपांतरण. मैं इसे अनुवाद नहीं अनुनाद कहूंगा.
भोजपुरी की कादम्बरी न तो आज के कथा साहित्य में रखी जा सकती है, न लोक साहित्य में. निश्छल रूप में यह कादम्बरी की काया नहीं आत्मा है. अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन द्वारा इसे भी कथा ग्रंथ के रूप में 2004 में पुरस्कृत किया गया. शैलजा जी के चिंतन कुसुम की भूमिका में आचार्य विश्वनाथ सिंह (प्राचार्य, अनुग्रह मेमोरियल कालेज गया, अधिष्ठाता ,मानविकी संकाय ,मगध विश्वविद्यालय,बोधगया) ने लिखा है कि चिंतन -कुसुम 11 निबंधों का संग्रह है, जिसमें दो तरह के निबंध हैं -साहित्यिक एवं आध्यात्मिक.
शैलजा कुमारी कवि तथा कहानीकार भी हैं. शैलजा जी का अध्ययन क्षेत्र काफी व्यापक है. संस्कृत,अंगरेजी, हिंदी,उर्दू एवं भोजपुरी काव्य के अनुशीलन के साथ लोकगीतों का लालित्य से और दूसरी तरफ योग और भक्ति आध्यात्मिक तत्वों से लेखिका का जो समृद्ध मानस निर्मित हुआ, उसकी परिणत स्वरूप इसमें देखने को मिलती है.
इनका दार्शनिक अध्ययन के विस्तार में गीता ,उपनिषद्, हठयोग ,नादयोग से लेकर बाइबिल तक का समावेश है. लेखिका के साहित्यिक वयक्तित्व के निर्माण में बाल्मिकी, कालीदास, भवभूति, हाल, माघ शूद्रक, श्रीहर्ष वाणभट्ट, जयदेव, भोज, मुरारी, विल्हण, पंडित राज जगन्नाथ, विद्यापति, जायसी, सूर, तुलसी, बिहारी, मतिराम, सेनापति, पद्माकर, तोष, हरिऔध, प्रसाद, निराला, महादेवी, बच्चन और भोजपुरी के अशांत, अनिरुद्ध, मनोरंजन, महेंद्र शास्त्री, राम विचार पांडेय, अंजोर, पांडेय कपिल, प्रभुनाथ मिश्र, अलमस्त, अनिल आदि के काव्य शास्त्र से लेकर आल्हा सारंगा -सदावृज और भोजपुरी लोकगीतों की समृद्ध परंपरा तक का योगदान इस पुस्तक में देखा जा सकता है.
शैलजा जी मधुर गीतों की कवयित्री थीं. प्रवाहमयी भाषा में उनका प्रकृति -प्रेम अपने मनोहारी भाव-बिंबों के साथ उपस्थित हुआ है. ‘वे सावन की रिमझिम, ये यादों की रातें, तडित मेघ-गर्जन की घनघोर घातेंं. मगर फिर भी घन की नहीं जीत होती, नयन -नीर से हार खाता बेचारा.’ उनके गीतों में मिलन -अभिलाषा और वियोग -दशा के चित्रण है. इनकी अनेक पांडुलिपियां (कविता और कहानी संग्रह) प्रकाशन की प्रतीक्षा में हैं. from prabhatkhabar.com
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