सतीश पांडे की जमानत : कोर्ट का न्याय या भगवान की नियति
सतीश पांडे के गतिविधियों पर रहेगी पुलिस की पैनी नजर
संजय कुमार
बिहार कथा. हथुआ-गोपालगंज
यह संयोग ही है कि जब गोपालगंज में एक महिला (केएस अनुपम) एसपी थी तब इलाके के कुख्यात सतीश पांडे ने आत्मसमर्पण किया था और वे जेल से जमानत पर बाहर आए तभी जिले की कमान एक महिला (नताशा गुडिया) के हाथ में है। सतीश पांडे का आत्मसमर्पण अप्रैल 2010 में हुआ था। यह नीतीश के सुशासन का वह दौर था, जब बिहार के अधिकांश बाहुबलियों पर प्रशासन ने शिद्दत से नकेल कसा था। छोटे-मोटे गली मोहल्ले के अपराधिक प्रवृत्ति के मनचलों ने दूसरे शहरों में शरण ले लिया था या मेहनत से कमाने के लिए विदेश भाग गए। यही वह दौर था जब पुलिस ने एनकाउंटर का भय दिखा कर अपराधियों से जेल भरे थे। आज भी गोपालगंज की पुलिस कप्तान एक महिला है। सतीश पांडे की रिहाई के विषय में चर्चा करने पर नताशा गुडिया कहती हैं कि सतीश पांडेय के जमानत पर रिहा होने के बाद पुलिस गोपनीय स्तर पर उनकी गतिविधियों पर नजर रखेगी। अगर किसी प्रकार की गड़बड़ी पाई गई, तो पुलिस कानूनी कार्रवाई करेगी।
जानकार कहते हैं कि तब एसपी केएस अनुपम ने भी तब के जिला पंचायत अध्यक्ष व सतीश पांडे की र्स्वगवासी धर्मपत्नी उर्मिला पांडे को सतीश पांडे से समर्पण कराने के लिए सहमत कराने को कहा। बात नहीं बनती देख एसपी अनुपम ने उर्मिला पांडे को सतीश पांडे के ट्रेस किए हुए कॉल डिटेल और मोबाइल लोकेशन तक दिखाया और इस बात का भय दिखाया कि यदि समर्पण नहीं किया तो एनकाउंटर होगा। एक पढ़ी लिखी तेज तर्रार आईपीएस ने एक कुख्यात की गवई महिला को सुहाग बचाने के इमोशनी ब्लैकमेल के जाल में डाल कर अपनी ड्यूटी पूरी की। हालांकि समर्पण के बाद सतीश पांडे ने कहा था कि मुख्यधारा में लौटने के लिए वे काफी समय से समर्पण करने की सोच रहे थे। लेकिन पहले उन्हें प्रशासन पर भरोसा नहीं था। उन्होंने कहा कि अब पुलिस प्रशासन पर लोगों का विश्वास बढ़Þा है।
जब सतीश पांडे ने समर्पण किया, तब जिले में उन्हें देखने वालों की स्वत: हुजूम उमड़ पड़ी थी। वक्त बदले, हालात बदले। पांच साल बाद जब जमानत पर बाबा बाहर आ रहे थे, तब कथित समर्थकों का हुजूम था। हथुआ से मीरगंज तक गाड़ियों की आवाजाही थी। लेकिन इसके लिए सतीश पांडे के भाई कुचायकोट विधानसभा के विधायक उमरेंद्र पांडे उर्फ पप्पू पांडे ने काफी मेहनत की थी। यह मेहनत एक ऐसी साख बचाने की थी, जिसके बुनियाद पर उन्होंने राजनीति के ककहरे को शुरू किया था। मतलब सतीश पांडे के बाहुबल के प्रभाव से राजनीतिक में प्रवेश। इस बार चनावे से तुलसियां तक जो भीड़ उमड़ी, वह स्वत: नहीं थी। चनावे पहुंचने वालों को पेट्रोल का खर्चा, साथ ही लजीज खाने की व्यवस्था। जहां बेकरी हो, वहां इतनी सुविधा पर भीड़ भला क्यों न उमड़े।
कई समर्थक सतीश पांडे की कहानी एक रॉबिनहुड की कहानी कही तरह सुनाते हुए इतराते हैं। लेकिन सतीश पांडे के रॉबिन हुड करनामे के पीछे के एक दूसरा पहलू हमेशा गायब होता दिखा। साधारण पंचायत और कोर्ट कचहरी की न्याय से नाउम्मीद अनेक लोग सतीश पांडे की शरण में आए। बाबा ने जो फैसला सुनाया, उसे एक पक्ष ने खिलखिलाकर स्वीकार किया तो दूसरे ने मनमारकर माना और एक टिस दिल में दबा कर रख लिया। कइयों को यह टिस आज भी उभरती होगी। हमने ऐसे अनेक लोगों को देखा जो पूरी तरह भय के दबाव में बाबा के शरणागत हुए है। दिखावे के समर्थन में है। इसका प्रभाव दरौली विधानसभा चुनाव में सतीश पांडे की करारी हार से दिखना शुरू हो गया था। सतीश पांडे के जेल जानो के बाद से उर्मिला पांडे दूसरी बार जिला परिषद की चेयरमेन नहीं बन पार्इं। अमरेंद्र पांडे के जीत को अंतर घट कर नोट के दबे बटन से भी कम हो गया। हालांकि अब सतीश पांडे 2010 में ही जेल जाने के बाद से भी जेल से चुनाव लड़ने के मूड में थे। हथुवा तांडवा गांव के दिनानाथ अमीन (जो अब इस दुनिया में नहीं रहे) ने एक छोटी सी चर्चा में बताया था कि हथुआ विधानसभा के हर क्षेत्र के लोगों को सतीश पांडे ने चुनावे जेल में एक बैठक ली। अमीन साहब भी उस बैठक में शामिल थे। सतीश पांडे ने कहा था, सरकार ने इतना केस लाद दिया है कि जिनगी जेल में कट जाएगी, तभी बाहर नहीं निकल पाएंगे। इसलिए चुनाव जीतना ही जेल से निकलने का सबसे आसाना रास्ता है। लेकिन प्रशासन अलर्ट था। चुनाव से पहले ही दूसरे जेल में शिफ्ट कर दिया। बाबा के मंसूबे पर पानी फिर गए। फिर क्या था, जेल से बाहर निकलने के कोर्ट में बेहतरीन वकील और समाज में अलग तरही की रणनीति अपनाई गई।
जो सतीश पांडे एक अपराधिक सरगना के रूप में दो दशकों से बिहार और यूपी पुलिस के लिए सिरदर्द बने हुए थे, उनके अधिकतर केस कोर्ट में कमजोर होते गए। जिन पर बिहार सरकार ने इनाम रखे थे, उनके खिलाफ खारिज होते केसों के खिलाफ अपर कोर्ट में अपील भी नहीं हुई। पीड़ितों ने समझौता करना ही बेहतर समझा। सरेंडर के समय केएस अनुपम ने बताया था कि तब के लिए उपलब्ध आंकड़ों के हिसाब से सतीश पांडे के खिलाफ 51 मामले दर्ज है। लेकिन अबतक जो आंकड़े सामने आए हैं उसके अनुसार सतीश पांडेय पर पुरखास व राजापुर नरसंहार के अलावा कोईरीगांवां कांड, चाड़ी में ठेकेदार सहित चार लोगों की हत्या, मीरगंज में दिनदहाड़े शहर के बीचोंबीच दरोगा की हत्या सहित कई संगीन मामले लंबित हैं। बाकौल एसपी सतीश पांडेय उर्फ पहलवान पर पटना के शास्त्रीनगर थाने में तत्कालीन मंत्री बृजबिहारी प्रसाद की हत्या को लेकर 336/98 कांड अंकित है। इसके अलावा मीरगंज थाने में 75/85 (लूट) के अलावा मीरगंज थाना कांड संख्या 74/89 (हत्या), 74/89 (हत्या), 125/89 (अपराध की योजना बनाना), 126/89 (आ?र्म्स एक्ट), 299/93 (हत्या), 206/95 (रंगदारी), 206/96 (हत्या), 301/96 (हत्या का प्रयास), 144/97 (हत्या का प्रयास), 138/97 (हत्या का प्रयास), 96/99 (हत्या), 197/99 (अपराधी संरक्षण), 125/89 (हत्या का प्रयास), 238/87 (डकैती), 46/89 (डकैती), 52/92 (हत्या का प्रयास), 189/92 (रंगदारी), 129/94 (हत्या का प्रयास), 266/96 (अपहरण), 298/97 (रंगदारी), 169/99 (अपराधी संरक्षण), 90/97 (हत्या), 59/2000 (हत्या), 142/2000 (हत्या), 187/99 (हत्या), 89/01 (हत्या का प्रयास), भोरे थाना कांड संख्या 24/98 (डकैती), 69/2000 (हत्या का प्रयास), कटेया थाना कांड संख्या 97/97 (हत्या), 72/05 (अपराधी संरक्षण), गोपालगंज 326/95 (अपहरण), 271/2000 (हत्या), 339/03 (डकैती), 337/93 (रंगदारी), 229/95 (अपहरण), 18/10 (हत्या), गोपालपुर थाना कांड संख्या 22/05 (नरसंहार), 23/05 (नरसंहार), 64/05 (नरसंहार), भोरे 69/2000 (हत्या का प्रयास), विश्वंभरपुर 99/05 (हत्या) तथा कुचायकोट थाना कांड संख्या 7/97 (हत्या) का मामला शामिल है। इसके अलावा सतीश पांडेय पर सिवान जिले के मुफस्सिल थाना कांड संख्या 111/97 (हत्या), 95/97 (अपहरण), नगर थाना कांड संख्या 4/98 (हत्या), 47/86 (हत्या), नौतन थाना कांड संख्या 7/2000 (हत्या का प्रयास), 68/2000 (हत्या), 5/01 (हत्या), रघुनाथपुर 11/2000 (हत्या का प्रयास), आंदर थाना कांड संख्या 18/2000 (हत्या) के मामले भी लंबित हैं। के एस अनुपमन ने दावा किया कि इसके अलावा भी इस सरगना पर कई मामले उत्तरप्रदेश में भी लंबित हैं। जिसके बारे में जानकारी इकट्ठा की जा रही है। लेकिन पांच साल में बहुत कुछ मैनेज हो गया। सतीश पांडे के परिवार के लोग कहते हैं कि न्याय मिला है। जो पीड़ित है, अब वे कहते हैं कि न्याय तो ईश्वर करेंगे। कई चीजें नियति भी तय करती है। फिलहाल जिले में ढेरों ऐसे लोग हैं, जो बाबा से हमदर्दी तो दिखा रहे हैं, लेकिन गार्ड से अपराधियों के गाडफादर वाले बाहुबली के अब समाज के मुख्यधारा से जुड़ने की बात का असली मकसद टटोल रहे हैं। फिलहाल आगे पंचायत चुनाव है।
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