बिहार के लाल डा. सुमन को गोंडवाना भूषण
पन्नालाल धुर्वे
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा में हिंदी एवं तुलनात्मक साहित्य विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ सुनील कुमार सुमन को गोंडवाना जंगोम दल और उलगुलान आदिवासी साहित्य व सांस्कृतिक मंच, वर्धा की तरफ से गोंडवाना भूषण सम्मान से नवाजा गया है। उन्हें यह सम्मान वर्धा में आयोजित एक भव्य समारोह में क्षेत्रबंधन हटाओ आंदोलन की कार्यकर्ता रहीं बुजुर्ग मातृशक्ति सखुबाई तुमडाम के द्वारा प्रदान किया गया। जेएनयू, नई दिल्ली से उच्चशिक्षा प्राप्त डा. सुनील कुमार सुमन बिहार के अरेराज (मोतिहारी) के गोड आदिवासी हैं। डॉ. सुमन छात्र-जीवन से ही दलित-आदिवासी आंदोलनों और उनसे जुड़ी अकादमिक गतिविधियों से सक्रिय रूप से जुड़े रहे हैं। 2009 में वर्धा हिंदी विश्वविद्यालय में प्राध्यापक बनने के बाद पूरे विदर्भ और देश के कई अन्य हिस्सों में ए दलित स्वाभिमान और आदिवासी अस्मिता के बौद्धिक धरातल को मजबूत करने के काम में लगातार लगे हुए हैं। ए विदर्भ के आदिवासी गाँवों में गोंडी भाषा-धर्म-संस्कृति को लेकर अलख जगाने का काम विशेष रूप से कर रहे हैं। दलित-आदिवासी अस्मिता और उसकी वैचारिकी को लेकर डॉ. सुनील नियमित रूप से अकादमिक लेखन व प्रबोधन करते रहते हैं। फेसबुक जैसे सोशल मीडिया-माध्यमों से भी आप परिवर्तनकामी आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं। डॉ. सुमन की सैकड़ों रचनाएँ देश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में छप चुकी हैं और इनकी कई पुस्तकें भी प्रकाशित हैं। नाट्य-लेखन के लिए डॉ सुनील को हिंदी अकादमी, दिल्ली सरकार द्वारा दो बार प्रथम पुरस्कार प्राप्त हुआ है। 2013 में लॉर्ड बुद्धा मैत्री संघ (लॉर्ड बुद्धा टीवी चैनल, महाराष्ट्र) द्वारा आपको शिक्षा मैत्री सम्मान से सम्मानित किया गया।
हाईकोर्ट से मिली ऐतिहासिक जीत
2009 में हिंदी विवि, वर्धा में अध्यापन-सेवा आरंभ करने के साथ ही डॉ. सुनील ने यहाँ अपनी सामाजिक जिंदगी भी शुरू कर दी और परिवर्तनकामी आंदोलन का नेतृत्व करने लगे। इनके नेतृत्व में अंबेडकरवादी मिशनरी नौजवानों की गोलबंदी होने लगी। यह वर्धा विवि के जातिवादी खेमे को रास नहीं आया। खासकर वहाँ के तत्कालीन कुलपति और पूर्व आईपीएस विभूति नारायण राय ने सुनील को टारगेट में ले लिया। भूमिहार जाति के विभूति राय कथित रूप से वामपंथी थे, लेकिन अपने मूल चरित्र में घोर सामंती और जातिवादी आदमी थे। छात्रों में लगातार बढ़ती जा रही डॉ. सुनील की लोकप्रियता वहाँ के मनुवादी अध्यापकों के लिए भी एक चुनौती बनती गई। विभूति राय मौके की तलाश में थे और 2013 में उन्होंने एक साजिश रच डाली। एक फर्जी केस में फंसाकर गैर-कानूनी ढंग से 01 अगस्त, 2013 को डॉ. सुनील निलंबित कर दिए गए। अपने साथ हुई इस नाइंसाफी के खिलाफ डॉ. सुनील ने अपनी लड़ाई शुरू कर दी और जरा भी नहीं झुके। इस घटना के विरोध में देश के कई विश्वविद्यालयों में धरना-प्रदर्शन और कुलपति राय का पुतला-दहन हुआ। केंद्र सरकार को तमाम विरोध-पत्र भेजे गए। सोशल मीडिया और बहुजन पत्र-पत्रिकाओं में भी इस अन्याय के खिलाफ काफी लिखा गया। लेकिन जातिवादी नशे में चूर कुलपति वी एन राय ने डॉ सुनील को अवैध तरीके से 13 जनवरी, 2014 को नौकरी से बर्खास्त कर दिया। इसके विरुद्ध डॉ. सुमन ने माननीय बम्बई उच्च न्यायालय, नागपुर खंडपीठ में याचिका दायर की। विगत 13 जुलाई, 2015 को न्यायालय ने डॉ सुनील को पूरी तरह निर्दोष साबित हुए इनकी बर्खास्तगी को गैर-कानूनी करार दिया और विश्वविद्यालय पर दस हजार का जुमार्ना भी लगा दिया। डॉ सुनील के साथ हुए साजिश और फिर उनकी कानूनी लड़ाई के बाद मिली साहसिक जीत ने हिंदी की बौद्धिक दुनिया में कई बहसों को जन्म दे दिया। गौरतलब है कि डॉ. सुनील वर्धा विवि में एकमात्र आदिवासी प्राध्यापक हैं। लेकिन यह भी वहाँ के जातिवादी तंत्र को बर्दाश्त नहीं हुआ। कुलपति वीएन राय जैसे लोग घटिया हरकत करने से बाज नहीं आए। बहरहाल डॉ सुनील कुमार सुमन को मिली ऐतिहासिक जीत ने पूरे हिंदी जगत में हलचल मचा दी और भारी संख्या में लोगों ने खासकर दलित-आदिवासी-ओबीसी समाज ने उन्हें बधाई दी। आज बहुजन समाज के बहुत सारे नौजवानों के लिए डॉ सुनील का संघर्ष एक प्रेरणास्त्रोत की तरह सामने आया है। सबसे खास बात यहाँ यह है कि दो साल तक नौकरी से बाहर रहने के बावजूद डॉ सुमन अंबेडकरी विचारधारा के साथ प्रतिबद्ध भाव से सामाजिक-सांस्कृतिक चेतना फैलाने में पहले की ही तरह पूरे मनोयोग से लगे रहे। हमें उम्मीद है कि डॉ सुनील ऐसे ही सच्चाई और साहस के साथ पूरे बहुजन समाज के लिए काम करते रहेंगे और अन्याय-अत्याचार के खिलाफ लड़ते रहेंगे।
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