'टीपू सुल्तान' अब बिहार में!
आईचौक से
अभी कुछ दिनों पहले कर्नाटक में वहां की कांग्रेस सरकार ने टीपू सुल्तान की जयंती मना कर अच्छा खासा बवाल खड़ा कर दिया. अब बिहार की सरकार ने भी एक राजा की जयंती मनाने का फैसला किया है. दोनों राज्य सरकारों के फैसलों में समानता ए कि दोनों की नजरें वोट बैंक पर हैं. कर्नाटक में टीपू के सहारे तो बिहार में सम्राट अशोक के. अशोक भले ही टीपू सुल्तान की तरह विवादित नहीं हों लेकिन फिर भी एक बहस तो बिहार में शुरू हो ही गई है. वाकई दाद देनी पड़ेगी बिहार सरकार को. सम्राट अशोक कब पैदा हुए, इतिहासकार इसे लेकर अब भी माथापच्ची कर रहे होंगे लेकिन बिहार की सरकार ने उनके जन्म की तारीख खोज निकाली. बिहार की नई-नवेली महागठबंधन सरकार के अनुसार अशोक 14 अप्रैल को पैदा हुए थे और अगले साल से इस दिन बिहार में राजकीय अवकाश होगा. 14 अप्रैल भीमराव अंबेडकर की भी जयंती होती है.
राजनीति में अशोक की ‘एंट्री’ नई नहीं!
इसी साल बिहार चुनाव के दौरान तमाम आरोप-प्रत्यारोप और एक-दूसरे पर कीचड़ उछालने की प्रतिस्पर्धा के बीच सम्राट अशोक की एक बार फिर ‘राजनीति’ में एंट्री हुई. जून में केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने पटना में सम्राट अशोक पर डाक टिकट जारी किया. उसी कार्यक्रम में रविशंकर प्रसाद ने यह घोषणा भी कर दी कि अगर बिहार में बीजेपी सत्ता में आई तो अशोक की एक मूर्ति पटना में लगेगी. यह बड़ा दांव था और नया भी. बस फिर क्या था. चुनाव नजदीक थे तो अशोक की जाति का जिक्र आना था और ए आया भी. अशोक किस जाति के थे, इसे लेकर खूब बहस हुई. वे मौर्य थे, कुशवाहा थे, बौद्ध या हिंदू. इस सवाल का कोई सटीक जवाब न आना था और न ही आया. लेकिन राजनीति में अशोक के नाम का इस्तेमाल कोई नया नहीं है. बहुजन समाज पार्टी पहले भी कई बार बौद्ध परंपरा का हवाला देते हुए अशोक के नाम का इस्तेमाल करती रही है. यह और बात है कि अशोक ने अपने शिलालेखों में अपने जन्मदिन या जाति का कोई उल्लेख नहीं किया है. न ही यह स्पष्ट है कि वे दिखते कैसे थे. लेकिन करीब दो हजार साल बाद भी सब उनकी जाति और जन्मदिन पूछ रहे हैं. इतिहास में दर्ज है कि वे चंद्रगुप्त मौर्य के वंश से आते हैं. आमतौर पर कुशवाहा समाज को अशोक से जोड़ कर देखा जाता है लेकिन उसमें भी विरोधाभास है. क्योंकि बिहार और पूर्वी यूपी के ज्यादातर कुशवाहा समाज के लोग खुद को लवकुश का वंशज मानते हैं तो कई तथागत भगवान बुद्ध के.
बिहार सरकार के पास तथ्य नहीं फिर भी जयंती क्यों?
यह सवाल गंभीर है. अशोक कोई पौराणिक किरदार नहीं है. वह इतिहास हैं. आखिर क्या जरूरत पड़ी कि बिहार सरकार ने बिना किसी एतिहासिक तथ्यों के उनकी जयंती मनाने की घोषणा कर दी. यह नेक सलाह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को किसने दी? यह साफ दिखता है कि कारण वोट बैंक ही है लेकिन इसके लिए तथ्यों को भी गलत तरीके से पेश करने की जिद! परंपरा क्या सही है?
from – ichowk.in
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