गायब हो रही हैं गंगा की गाय!

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File photo

पटना. गंगा नदी में शार्क की तरह उछलती और कूदती डॉल्फिनें बिहार की पहचान रही हैं। स्थानीय भाषा में सोंस कही जाने वाली यह विशेष मछली अब विलुप्तता के कागार पर है। डॉल्फिनें बिहार के अलावा उत्तरप्रदेश के बिजनौर से नरोड़ा और फतेहपुर से लेकर मिजार्पुर के अलावा चंबल एवं इलाहाबाद में पाई जाती हैं। लेकिन डॉल्फिनों की यूपी से अधिक संख्या बिहार में है। इसलिए जब वर्ष 2010 में केंद्र सरकार द्वारा गंगा नदी को राष्ट्रीय नदी के रूप में घोषित किया गया तब डॉल्फिनों को बचाने के लिए भी विशेष पहल किए गए। इस क्रम में पटना के सिन्हा घाट से लेकर कटिहार तक गंगा में विशेष डॉल्फिन जोन के रूप में घोषित किया गया। इसके साथ ही डॉल्फिनों को बचाने के लिए इनके शिकार पर पूरी तरह रोक लगा दी गई। इसके बावजूद डॉल्फिनें मछुआरों के जाल में फंस जाती हैं और परिणति उनकी मौत से होती है। हालांकि इस संबंध में सरकारी महकमे का जवाब बड़ा सीधा होता है। पूछने पर वे कहते हैं कि सोंस की शिकार को लेकर कोई घटना हाल के दिनों में सामने नहीं आई है। इसका श्रेय वे विभाग द्वारा चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं को देने से भी गुरेज नहीं करते हैं। जबकि सच्चाई इसके ठीक विपरीत है।
उल्लेखनीय है कि पहली बार वर्ष 1801 में विलियम रॉक्सबर्ग और हेनरिक जुलियस ने गंगा नदी में पाए जाने वाले विशेष मछलियों की पहचान की और उन्हें डॉल्फिन गंगेटिक की संज्ञा दी। बाद में वर्ष 1828 में रेने लेसॉन ने बांग्ला में इसका नामकरण सोंस कहा और फिर यही नाम पूरे हिन्दी पट्टी में फैल गया। करीब दो से तीन मीटर तक लंबी इन मछलियों का विशेष महत्व है। खासकर इसके चर्बी से निकले तेल का इस्तेमाल आज भी बांग्ला संस्कृति में जारी है। गर्भवती महिलाएं इसका इस्तेमाल करती हैं। बाद में जब सरकार की ओर से डॉल्फिनों को विशेष संरक्षित जीवों की श्रेणी में शामिल किया गया तब इसके शिकार पर पूरी तरह रोक लगा दी गई। लेकिन चोरी छुपे इसका शिकार जारी रहा।
बहरहाल कहना अतिश्योक्ति नहीं है कि डॉल्फिनें बिहार के जलीय संस्कृति की खास पहचान हैं और अब यह विलुप्ति के कगार पर है। शनिवार को पटना के एनआईटी घाट पर मिली मृत डॉल्फिन इस बात का प्रमाण है कि तमाम सरकारी दावों के बावजूद इनका शिकार जारी है। वैसे अंतिम बार इसके शिकार की घटना 29 अप्रैल 2010 को प्रकाश में आई थी जब पटना में मछुआरों ने डॉल्फिन का शिकार किया था और बाद में पकड़े जाने के डर से किनारे पर ही छोड़ दिया था।
मृत डॉल्फिन बरामद होने पर सनसनी
शनिवार को पटना में फिर एक डॉल्फिन मछली मृत अवस्था में मिली है। डॉल्फिन मछली एनआईटी घाट में मिली है। मृत डॉल्फिन के मिलने की खबर के बाद से सरकारी महकमें में सनसनी फैल गई है। मामले के पांच घंटे बीतने के बाद भी सरकारी महकमे और वन विभाग से कोई अधिकारी मौका-ए वारदात पर नहीं पहुंचा है। कहा जा रहा है कि सुबह के आठ बजे लोगों ने एक डॉल्फिन को जाल में फंसा देखा था। जिसके बाद लोगों ने उसे निकाला तो वह मरी हुई थी. जानकारों के मुताबिक मछली की मौत जाल में फंसने से ही हुई है। बताते चलें कि पटना समेत आसपास के इलाकों में भारी पैमाने पर मछली और डॉल्फिन मछली को मारने का काम चल रहा है। डॉल्फिन के निरंतर हो रही मौत के बाद गंगा में होने वाले डॉल्फिन संरक्षण पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। मालूम हो कि पटना से बहने वाली गंगा नदी को डॉल्फिन कॉरिडोर के नाम से भी जाना जाता है। गंगा में होने वाले प्रदूषण और रोजाना बहने वाले गंदगी को भी डॉल्फिन की मौत का एक कारण माना जा रहा है। source http://www.apnabihar.org

मार कर उसका तेल निकालकर बेच देते हैं :एनआईटी घाट पर गंगा में शनिवार को एक डॉल्फिन मृत मिली। सूचना मिलने पर पीरबहोर थाना पुलिस ने मौके पर पहुंच कर मामले की जांच की। थानाध्यक्ष निसार अहमद ने बताया कि मृत डॉल्फिन बहते हुए एनआईटी घाट पर पहुंची थी। उसका वजन 35-40 किलो होगा। वन विभाग को सूचना दी गई है। उनका कहना था कि घाट पर रहने वाले लोग आपस में बातचीत कर रहे थे कि यहां आए दिन डॉल्फिन का शिकार किया जा रहा है। शिकारी डॉल्फिन को मार कर उसका तेल निकालकर बेच देते हैं। वहीं नाविकों का कहना था कि गंगा में ठंड में डॉल्फिन को मार कर कुछ मछुआरे भी ले जाते हैं। गौरतलब हो कि पटना के गंगा नदी में डॉल्फिन बहुतायत में पाई जाती हैं। यहां के आर के सिन्हा को तो डॉल्फिन मैन तक कहा जाता है। सरकार इनकी संरक्षा के लिए सख्त कानून ला चुकी है। इन्हें मारना या शिकार करना अपराधिक श्रेणी में रखा गया है।






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