फजीहत के बाद डैमेज कंट्रोल में जुटी भाजपा

bjp biharराकेश मोहन चतुवेर्दी, नई दिल्ली
किसी समय भाजपा के कद्दावर नेताओं में शामिल रहे एल. के. आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और यशवंत सिन्हा बिहार चुनाव में बेहद खराब प्रदर्शन के लिए जिम्मेदारी तय करने की अपनी मांग को लेकर भले ही अभी इंतजार कर रहे हैं, लेकिन पार्टी के केंद्रीय कार्यालय के पदाधिकारी डैमेज कंट्रोल में सक्रियता से जुट गए हैं। उन्होंने आने वाले दिनों में विरोध की और आवाजों को रोकने की कोशिशें शुरू कर दी हैं।
भाजपा के अनुभवी नेताओं में से एक शांता कुमार ने संकेत दिया है कि वह पार्टी के पूर्व प्रेजिडेंट राजनाथ सिंह, एम. वेंकैया नायडू और नितिन गडकरी के जवाब से संतुष्ट हैं। लेकिन आडवाणी, जोशी और सिन्हा जैसे अन्य तीन बड़े नेता अपने कदम पीछे नहीं खींचना चाहते। अपनी मांग पर कोई कार्रवाई न होने की स्थिति में वे इस मुद्दे को दोबारा उठा सकते हैं।
पार्टी के केंद्रीय कार्यालय के पदाधिकारियों से कहा गया है कि वे पुराने नेताओं या बिहार से सांसदों भोला सिंह, आर. के. सिंह और सी. पी. ठाकुर की ओर से लगाए गए आरोपों पर कोई प्रतिक्रिया न दें। पार्टी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने बताया, ‘कुछ वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि इखढ को प्रतिक्रिया देनी चाहिए लेकिन यह फैसला किया गया है कि इस समय जवाब देने से पार्टी को और शमिंर्दा होना पड़ेगा।
भाजपा के कुछ नेताओं ने पार्टी से असंतुष्ट नेताओं के साथ बातचीत कर उन्हें यह बताने की कोशिश की है कि अंदरूनी विवादों को सार्वजनिक करने से इखढ को नुकसान होगा। केंद्रीय मंत्री जयंत सिन्हा (यशवंत सिन्हा के बेटे) और विवेक ठाकुर (केंद्रीय नेतृत्व के खिलाफ बोलने वाले सी पी ठाकुर के बेटे) जैसे पार्टी की दूसरी पीढ़ी के नेताओं ने अपने परिवार में यह बात स्पष्ट कर दी है कि उन्हें असंतुष्टों के साथ मिलकर उनके करियर को खतरे में नहीं डालना चाहिए।
सूत्रों ने बताया कि बिहार से सांसद और नेता अब पार्टी के मंच पर ही अपनी बात रख सकते हैं, लेकिन शत्रुघ्न सिन्हा और आर. के. सिंह जैसे राज्य के सांसदों पर लगाम लगाना मुश्किल हो सकता है। बिहार में पार्टी की हार के कारणों पर विचार-विमर्श करने के लिए इखढ कार्यालय के पदाधिकारियों की कोई आधिकारिक बैठक नहीं हुई है, लेकिन पार्टी के वरिष्ठ नेता निजी तौर पर बिहार में हुई गलतियों पर बात कर रहे हैं।
भाजपा के कुछ वरिष्ठ नेताओं और ठऊअ के सहयोगियों ऌअट, छखढ और फछरढ के बीच भी इसे लेकर बातचीत हुई है। सूत्रों ने कहा कि ठऊअ के सहयोगी दलों ने शिकायत की है कि उन्हें ऐसी सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए कहा गया जो उनकी पहली पसंद नहीं थी और वे बिहार के उन क्षेत्रों में थीं, जो उनके मजबूत गढ़ नहीं हैं। भाजपा इस बात से निराश है कि उसके सहयोगी दल अपने वोट बैंक को पार्टी के लिए ट्रांसफर नहीं कर सके और तीनों सहयोगी दलों को कुल मिलाकर केवल पांच सीटें मिली हैं। from navbharattimes.com






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