नीतीश के मंत्रीमंडल में एक भी बनिया नहीं, जानिए किस जाति के कितने मंत्री
बिहार कथा. पटना। बिहार में पांचवीं बार मुख्यमंत्री बने नीतीश कुमार ने अपने 28 मंत्रियों के साथ शपथ लेते समय बिहार की जातिगत सामाजिक व्यवस्था के अनुरूप मंत्री मंडल के गठन का काम किया है.
यह कहा जा सकता है कि इंजीनियर की शिक्षा ग्रहण करने वाले नीतीश कुमार ने मंत्रिमंडल में सोशल इंजीनियरिंग को बेहतर तरीके से साधने का काम किया है. नीतीश कुमार के मंत्रिमंडल में मुख्यमंत्री सहित 3 कुर्मी, 7 यादव, 4 मुस्लिम, 5 दलित, 3-3 निषाद (ईबीसी) व कुशवाहा, 2 राजपूत, 1-1 भूमिहार व ब्राह्मण को प्रतिनिधित्व दिया गया है.
जब नीतीश कुमार 2010 में मुख्यमंत्री पद की शपथ लिए तो उनके मंत्रिमंडल में यादव, ब्राह्मण, वैश्य, अत्यंत पिछड़ा 3-3, भूमिहार व दलित 4-4, कुर्मी-कोयरी, मुस्लिम 2-2 मंत्री बनाए गए थे. बिहार के जातिगत समीकरण सवर्ण व दलित 16-16 प्रतिशत, अल्पसंख्यक-15 प्रतिशत, पिछड़ा वर्ग-21 प्रतिशत, अत्यंत पिछड़ा वर्ग-32 प्रतिशत संख्या में हैं. राष्ट्रीय निषाद संघ के राष्ट्रीय सचिव व राजनैतिक विश्लेषक व समीक्षक लौटनराम चौधरी कहते हैं कि संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार, बिहार में 36 मंत्री हो सकते हैं, जिसमें आरजेडी कोटे के 4, जदयू कोटे के 2 व कांग्रेस कोटे के 1 मंत्री को बनाया जाना बाकी है.
सामाजिक समीकरण को और मजबूत करने के लिए 1-1 ब्राह्मण, राजपूत या भूमिहार, कायस्थ, निषाद, चंद्रवंशी व नाई या वैश्य को प्रतिनिधित्व दिया जा सकता है. वह कहते हैं कि उत्तर प्रदेश के मंत्रिमंडल का नवंबर के प्रथम सप्ताह में पुनर्गठन व विस्तार किया गया. जिसमें सामाजिक व जातिगत समीकरण को साधने का पूरा प्रयास करने के बाद भी जातिगत समीकरण का खाका सही ढंग से फिट नहीं हो पाया, क्योंकि अतिपिछड़े वर्ग को न तो जनसंख्यानुपात कोटा मिला और न ही कैबिनेट में प्रतिनिधित्व.
उत्तर प्रदेश के मंत्रिमंडल में यादव-11, मुस्लिम-12, राजपूत-9, दलित -7 (पासी-3, चमार-2, कोरी व धोबी 1-1), सिख-1, वैश्य-1, अतिपिछड़ा (कुर्मी-3, लोधी-2, जाट-1, गूजर-1), अत्यंत पिछड़ा-7 (कश्यप निषाद-2, प्रजापति, किसान, पाल, चौरसिया, सैनी 1-1) हैं.
उत्तर प्रदेश के जातिगत समीकरण में सामाजिक न्याय समिति-2001 के अनुसार पिछड़ा वर्ग (यादव) 10.39, अतिपिछड़ा (कुर्मी, गूजर, जाट, सोनार, जायसवाल, आरख, लोधी, गोसाई)-10.22 , अत्यंत पिछड़ा-33.34, सामान्य वर्ग की जातियां (हिंदू, मुस्लिम)-20.95, अनुसूचित जाति-24.94, आदिवासी-0.06 प्रतिशत हैं.
उत्तर प्रदेश व बिहार का सामाजिक व जातिगत समीकरण कमोवेश सामान्य है तथा सामाजिक न्याय व प्रतिनिधित्व के मुद्दे पर उत्तर प्रदेश के भी पिछड़े-अतिपिछड़े काफी जागरूक हुए हैं. आगामी विधानसभा चुनाव तीन कोणीय होगा और अत्यंत पिछड़े वर्ग की रुझान 60 प्रतिशत से अधिक जिस दल की तरफ होगा उसी को उप्र की सत्ता मिलेगी.
सपा, बीजेपी, बसपा के साथ-साथ राष्ट्रीय लोक दल, कांग्रेस आदि दलों की निगाह भी अतिपिछड़े व अत्यंत पिछड़े वर्ग को अपने पक्ष में करने की कवायद है और देखना है कि विधानसभा चुनाव 2017 तक आते-आते किस तरह के सामाजिक व राजनीतिक समीकरण बनते हैं.
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