शास्त्रार्थ में बिहार की महिला से हारे थे शंकराचार्य, नहीं दे पाए थे एक सवाल का जवाब

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भारतीय धर्म-दर्शन को उसके सबसे ऊंचे स्थान पर पहुंचाने वाले आदि शंकराचार्य एक सामान्य पर बुद्धिमान महिला से बहस में हार गए थे। वो महिला बिहार की थीं, उनका नाम था भारती। भारती के पति मंडन मिश्र मिथिलांचल में कोसी नदी के किनारे स्थित एक गांव महिषि में रहते थे। तब धर्म-दर्शन के क्षेत्र में शंकराचार्य की ख्याति दूर-दूर तक थी। कहा जाता है कि उस वक्त ऐसा कोई ज्ञानी नहीं था, जो शंकराचार्य से धर्म और दर्शन पर शास्त्रार्थ कर सके। शंकराचार्य देशभर के साधु-संतों और विद्वानों से शास्त्रार्थ करते मंडन मिश्र के गांव तक पहुंचे थे। यहां 42 दिनों तक लगातार हुए शास्त्रार्थ में शंकराचार्य ने हालांकि मंडन को पराजित कर तो दिया, पर उनकी पत्नी के एक सवाल का जवाब नहीं दे पाए और अपनी हार मान ली थी।
मंडन मिश्र गृहस्थ आश्रम में रहने वाले विद्वान थे। उनकी पत्नी भी विदुषी थीं। इस दंपती के घर पहुंचकर शंकराचार्य ने मंडन मिश्र से शास्त्रार्थ करने का प्रस्ताव रखा। उन्होंने शर्त रखी कि जो हारेगा, वह जीतने वाले का शिष्य बन जाएगा। अब सवाल खड़ा हुआ कि दो विद्वानों के बीच शास्त्रार्थ में हार-जीत का फैसला कौन करेगा। शंकराचार्य को पता था कि मंडन मिश्र की पत्नी भारती विद्वान हैं। उन्होंने उन्हें ही निर्णायक की भूमिका निभाने को कहा।
शंकराचार्य के कहे अनुसार भारती दोनों के बीच होने वाले शास्त्रार्थ का निर्णायक बन गईं। मंडन और शंकराचार्य के बीच 21 दिनों तक शास्त्रार्थ होता रहा। आखिर में शंकराचार्य के एक सवाल का जवाब नहीं दे पाए और उन्हें हारना पड़ा। निर्णायक की हैसियत से भारती ने कहा कि उनके पति हार गए हैं। वे शंकराचार्य के शिष्य बन जाएं और संन्यास की दीक्षा लें। लेकिन भारती ने शंकराचार्य से यह भी कहा कि मैं उनकी पत्नी हूं। अभी मिश्रजी की आधी ही हार हुई है। मेरी हार के साथ ही उनकी पूरी हार होगी। इतना कहते हुए भारती ने शंकराचार्य को शास्त्रार्थ की चुनौती दी।
शंकराचार्य और भारती के बीच भी कई दिनों तक शास्त्रार्थ होता रहा। एक महिला होने के बावजूद उन्होंने शंकराचार्य के हर सवाल का जवाब दिया। वे ज्ञान के मामले में शंकराचार्य से बिल्कुल कम न थीं, लेकिन 21वें दिन भारती को यह लगने लगा कि अब वे शंकराचार्य से हार जाएंगी। 21वें दिन भारती ने एक ऐसा सवाल कर दिया, जिसका व्यावहारिक ज्ञान के बिना दिया गया शंकराचार्य का जवाब अधूरा समझा जाता।
भारती ने शंकराचार्य पूछा- काम क्या है? इसकी प्रक्रिया क्या है और इससे संतान की उत्पत्ति कैसे होती है? आदि शंकराचार्य तुरंत सवाल की गहराई समझ गए। यदि वे उस वक्त इसका जवाब देने की स्थिति में नहीं थे, क्योंकि वे ब्रह्मचारी थे और यौन जीवन का उन्हें कोई अनुभव नहीं था। पढ़ी-सुनी बातों के आधार पर जवाब देते तो उसे माना नहीं जा सकता था। ऐसी स्थिति में उन्होंने उस वक्त हार मान ली, पर भारती से जवाब के लिए छह माह का समय मांगा। शंकराचार्य इस हार के बाद वहां से चले गए। कहा जाता है कि इस सवाल का जवाब जानने के लिए शंकराचार्य ने योग के जरिए शरीर त्याग कर एक मृत राजा की देह को धारण किया। राजा के शरीर में प्रविष्ट होकर उसकी पत्नी के साथ कई दिनों तक संभोग करने के बाद उन्होंने भारती के सवाल का जवाब ढूंढा। इसके बाद उन्होंने फिर भारती से शास्त्रार्थ कर उनके सवाल का जवाब दिया और उन्हें पराजित किया। इसके बाद मंडन मिश्र ने उनके शिष्य बन गए। from bhaskar.com






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