लालू का पुत्र मोह, उम्मीद की किरण या घातक निर्णय!

sanjay swadeshनीतीश को कमजोर करके भी चूक गए लालू प्रसाद
संजय स्वदेश
समय से पहले और जरूरत से ज्यादा अगर कोई जिम्ममेदारी किसी को सौंपी जाती है तो सिर्फ चमत्कार से ही सफलता की उम्मीद करनी चाहिए। लालू के दोनों लाल तेजस्वी और तेज प्रताप पर भी यही बात लागू होती है। राजनीति में गहरी दिलचस्पी रखने वाले बुढ़े बुजुर्ग जानते होंगे कि लालू प्रसाद ने कैसे-कैसे राजनीतिक झंझावातों में अपनी सियासी नैया को मजबूती से खेते हुए अपनी चमक बरकरार रखे। जिस प्रदेश में करीब दो दशक तक अस्थिर सरकार की मजबूत परिपाटी रही हो, वहां लालू का दल पांच साल क्या पंद्रह साल तक सत्ता में रहती है। जेल जाने पर उनकी अशिक्षित पत्नी राबड़ी देवी कमान संभाल कर देश ही नहीं दुनिया में असल लोकतंत्र की चरम उदाहरण सी बनती हैं। लोकसभा चुनावों के बाद निष्प्राण हुई राजद में प्राण फूंकने के लिए भले ही लालू प्रसाद यादव ने दिन रात एक कर दिया हो, लेकिन किसी भी जंग के नायक की असली ताकत तो उनके पीछे के प्यादे भी होते हैं। तेजस्वी को उपमुख्यमंत्री बनने से सबसे अधिक निराशा अब्दुल बारी सिद्दीकी के होगी। सिद्दीकी को भले की वित्तमंत्री का पद मिल गया हो, लेकिन उनके चेहरे पर इस मंत्रालय के मिलने की खुशी से ज्यादा एक मलाल की रेखा साफ दिख रही थी। संभवत यह मलाल की रेखा इसलिए उभरी हो क्योंकि उनके हक पर उस लालू प्रसाद का पुत्र मोह भारी पड़ गया, जिसके लिए उन्होंने उनका साथ उस समय तक न हीं छोड़ा, जब लालू की वापसी की उम्मीद खत्म हो गई थी। लालू के जेल जाने के बाद भी वे डट कर पार्टी की मजबूती में जुटे रहे। लोकसभा चुनाव में पहले संकटमोचक कई अपने साथ छोड़ गए। विधानसभा चुनाव वे महागठबंधन से पहले जब पार्टी में मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी को लेकर संशय था, तब अब्दुल बारी सिद्दीकी ने अपनी अप्रत्क्ष रूप से दावेदारी पेश की थी। खैर अभी हालात जो भी हो, लेकिन जिस तरह चुनाव से पूर्व पप्पू यादव ने परिवारबाद को लेकर बागी तेवर दिखाए थे, वह भविष्य में राजद में नहीं दिखेगा, इसकी संभावन से इनकार नहीं किया जा सकता है। पार्टी में भले ही आज कोई कुछ न बोले लेकिन भविष्य में आतंकरिक कलह की संभावना हमेशा बनती है।
इसमें दो राय नहीं कि लोकसभा चुनाव के बाद राजनीति के हाशिए पर आए लालू प्रसाद ने विधानसभा चुनाव में अपने परंपरागत वोट बैंक की जबरर्जस्त वापसी की। माय का दरका वोट बैंक फिर से लालू के साथ जुड़ गया। नई नवेली सरकार के गठन में लालू प्रसाद ने जाने अनजाने में एक ऐतिहासिक चूक कर दी। वे चाहते तो उप मुख्यमंत्री का पद अपने बेटे को दिलाने के बजाय किसी मुस्लिम नेता को दिलाते। फिर क्या था, लालू एक क्षण में देशभर में समाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता के पुरोधा बन जाते। बोल बचनों से कोई इतिहास पुरुष नहीं बनता है। आने वाली पीढ़िया किसी नेतृत्व को तब याद करती है, जब उसने व्यवारिक धरातल पर जनमानस पर अपनी छाप छोड़ी हो। नब्बे के दशक में लालू ने पिछड़ों का मनोबल बढ़ा कर निश्चित रूप से जनता पर अपनी छाप छोड़ी, लेकिन इतिहास में ऐसे भी नायक रहे हैं जो महानायक बनने से इसलिए चूक गए क्योंकि वे सही मौके पर पुत्र या परिवार के मोह से जकड़ गए। लालू की राजद की झोली में जब पूरे मुस्लिम कुनबे का जनाधार है, तो यह समाज उनसे इतनी उम्मीद तो कर ही सकता है। याद करिए महाराष्ट्र को जहां बाल ठाकरे के करिश्मे ने शिवसेना और भाजपा को सत्ता की गद्दी तक पहुंचाया था और बाल ठाकरे ने एक रिमोट मुख्यमंत्री बना दिया था। डेढ़ दशक बाद तक शिवसेना सत्ता में नहीं आई। हां, दो दशक बाद आज भाजपा की सरकार में शामिल होकर दोयम दर्जे की स्थिति में है। आज लालू भले ही सरकार को नियंत्रित करें, लेकिन भविष्य में बेटे को सत्ता का शिद्दस्त करने का एक मौका चूकते दिख रहे हैं। एक उदाहरण पंजाब का भी लेते हैं। प्रकाश सिंह बादल प्रतीक रूप से अकाली दल के सवेसर्वा हैं। सरकार में भले ही सारे निर्णय सुखबीर सिंह बादल लेते रहे, लेकिन परिणाम यह हुआ कि चाहकर भी वे अपनी स्वीकार्यता पंजाब में नहीं बना पाए। बिहार के उप मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री की कुर्सी तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव के लिए राजनीति में न केवल एक अवसर की तरह है, बल्कि एक चुनौती भी है। रोजमर्रा के काम काज को निपटाने के लिए जो प्रशासनिक दक्षता चाहिए होगी, उसका परीक्षण अभी तक लालू के दोनों बेटो में नहीं हो पाया है। वैसे भी ये मंत्री की कुर्सी पर बैठे बिना भी पिता के मार्गदर्शन में काम करते हुए जितना श्रेय ले सकते थे, लेकिन उन्हें सीधे जवाबदेही और बदनामी के लिए तैयार रहना होगा। उप मुख्यमंत्री बनने और मंत्री बनने के पास उनके पास जादू की छड़ी आ गई है। इसमें कोई दो राय नहीं लेकिन इस छड़ी से खरगोश कबूतर हो जाएगा या फिर कबूतर खरगोश, यह कहना मुश्किल है। हर संभावना का अंत शिखर पर पहुंचकर हो जाता है। प्रदेश में सत्ता के एक पग दूर तक पहुंच कर तेजस्वी यादव और तेज प्रताप कौन सी संभावना पैदा करेंगे, इसे हर कोई देखना चाहेगा।
मंत्रालयों के बंटवारे पर गौर करें तो यह साफ होता है कि बिहार में ताजपोशी भले ही नीतीश कुमार की हुई है लेकिन असल पावर कहीं न कहीं राजद के पास है। तेजस्वी को उप मुख्यमंत्री बनाने के साथ ही पीडब्लूडीमंत्री बनाना और तेज प्रताप को भी स्वास्थ्य और सिंचाई जैसा अहम मंत्रालय सौंपना इस बात का साफ संकेत है। यही नहीं, अब्दुल बारी सिद्दीकी को वित्तमंत्री बनाकर राजद ने अपना पलड़ा और भारी किया है। इसके अलावा अन्य कई मलाईदार मंत्रालयों को राजद के खाते में दिला कर लालू प्रसाद ने यह साबित कर दिया कि भले ही ताजपोशी नीतीश कुमार की हुई हो, लेकिन असली सत्ता उनकी पार्टी राजद के हाथ में ही रहेगी। लिहाजा, मंत्रियों के क्रियाकलापों पर अपराध की अराजकता का दंश झेल रहे बिहार में सुशासन अब नीतीश की असली परीक्षा होगी। नीतीश निश्चित ही अपने प्रथम व ऐतिहासिक मुख्यमंत्रित्वकाल की तुलना में कमजोर दिख रहे हैं। लिहाजा, ज्यादा उम्मीद तो लालू, तेजस्वी और तेजप्रताप से ही बनेगी।






Related News

  • आंबेडकर ने दलितों को पगलाने के लिए नहीं कहा बुद्धनमा
  • बच्चे मरते हैं, मरने दें, आपको क्या? रसगुल्ला खाइए भाई!
  • चला बुधनमा नीतीश कुमार से भेंट करे
  • ईश्वर से बढ़कर है संविधान बुधनमा
  • रामराज और आदर्शराज का अंतर समझो बुधनमा
  • कौन जात के बच्चे इंसेफलाइटिस या चमकी बुखार से बच्चे मर रहे हैं
  • इ मुलूक बदल रहा है बुधनमा
  • बुधनमा, पत्रकार कोई दूसरे ग्रह से आया एलियन नहीं है
  • Comments are Closed

    Share
    Social Media Auto Publish Powered By : XYZScripts.com