पॉलिटिक्स का पीके : पॉलिटिकल मैनेजमेंट का ट्रेंड
प्रशांत किशोर यानी राजनीति का `पीके`। जिस तरह आमिर खान अपनी सुपरहिट फिल्म ह्यपीकेह्य में दूसरे गोला (ग्रह) का प्राणी बनकर दुनिया को बदलने की कोशिश करते हैं, उसी तरह प्रशांत भारतीय राजनीति के पारंपरिक ढर्रे को बदल रहे हैं। एक साल पहले मोदी की जीत की स्क्रिप्ट लिखकर सुर्खियों में आने वाले प्रशांत बिहार चुनाव के महानायक बन गए हैं। चुनाव नतीजे आने के बाद प्रशांत की ब्रैंड वैल्यू बढ़Þ गई है। हर नेता राजनीति के इस ह्यपीकेह्य को अपने साथ रखना चाहता है। इस पीके की कहानी बता रहे हैं नरेन्द्र नाथ:
कभी हम साथ-साथ थे…
प्रशांत किशोर 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद तक नरेंद्र मोदी के साथ जुड़े थे, लेकिन नतीजे आने के फौरन बाद उनका ब्रेकअप हो गया। प्रशांत के एक करीबी ने बताया कि लोकसभा के आखिरी दौर के चुनाव 16 मई 2014 तक प्रशांत मोदी के सबसे करीबियों में से थे। लेकिन नतीजे आने के साथ ही प्रशांत को अलग-थलग करने की कोशिश की गई। प्रशांत को इससे बड़ा झटका लगा। उन्हें इस बात को लेकर ज्यादा नाराजगी थी कि मोदी ने एक बार भी मध्यस्थता करने की कोशिश नहीं की। प्रशांत को ज्यादा चिंता अपनी टीम मेंबर्स की थी, जो लोकसभा चुनाव के बाद के प्लान के बारे में पूछते थे। इनमें दर्जनों ऐसे युवा थे, जो देश-विदेश में बड़ी नौकरी छोड़कर उनके साथ जुड़े थे। 2 जून 2014 को सरकार बनने के बाद पीएम मोदी ने 7, आरसीआर में प्रशांत किशोर और उनकी टीम के अलावा चुनाव में काम करने वालों के लिए एक बड़े जलसे का आयोजन किया। इसे अमित शाह की टीम और प्रशांत किशोर की टीम के बीच हुए मनमुटाव के बाद ब्रेकअप पार्टी कहा गया। इस पार्टी के बाद दोनों की राहें अलग-अलग हो गईं। उस पार्टी के बारे में प्रशांत के एक करीबी ने बताया कि मोदी प्रशांत के साथ करीब 5 मिनट खड़े रहे, लेकिन दोनों के बीच कोई बात नहीं हुई, जबकि पिछले एक साल में मोदी ने सबसे ज्यादा बात प्रशांत किशोर से ही की थी। जाहिर है, रिश्ते में गांठ पड़ चुकी थी। सूत्रों के अनुसार, बीजेपी के साथ अपने अलगाव का बड़ा कारण प्रशांत अमित शाह को मानते हैं। शायद अमित शाह और उनकी टीम को लगा कि अगर सरकार में भी प्रशांत किशोर का दखल हुआ तो आने वाले दिनों में वह बहुत पावरफुल हो सकते हैं। हालांकि इस बारे में प्रशांत खुद खुलकर बात नहीं करते। वह बस इतना ही कहते हैं कि कोई किसी को लेकर इनसिक्योर हो तो इसमें सामने वाला कोई मदद नहीं कर सकता।
…क्योंकि मैं मोदी को पहचानता हूं
ब्रेकअप के बाद प्रशांत किशोर के पास दो विकल्प थे – एक बार फिर अमेरिका लौट जाएं और कॉरपोरेट दुनिया में वापसी करें या फिर संघर्ष करें और साबित करें कि मोदी की जीत में उनका योगदान कोई मिथ नहीं था। प्रशांत किशोर ने अपनी टीम से कहा कि अगर इस मुकाम पर लौट गए, हार गए तो इतिहास कभी हमारे योगदान को स्वीकार नहीं करेगा। तभी एक बड़े राजनेता ने प्रशांत किशोर और नीतीश कुमार के बीच तार जोड़ा। नीतीश और प्रशांत के बीच की डील के बारे में करीब से जाननेवाले एक शख्स बताते हैं कि प्रशांत को अपने साथ जोड़ने से पहले नीतीश ने प्रशांत से पूछा कि वह उन्हें क्यों रखें? उन्हें क्या फायदा होगा? प्रशांत ने बिना संकोच के नीतीश से कहा: आप जिन मोदी से लड़ने जा रहे हैं, उन्हें न सिर्फ जानता हूं बल्कि पहचानता भी हूं। अगर मोदी और उनकी टीम को मेरे अगले कदम का अनुमान हो सकता है तो यही फायदा मुझे भी होगा। बस इसी जवाब के बाद दोनों की डील सील हो गई। इसके बाद दोनों ने एक-एक शर्त रखी। प्रशांत किशोर ने शर्त रखी कि नीतीश और उनके बीच कोई और नहीं होगा और यह भी उन्हें उनके ही आवास में आॅफिस मिले। नीतीश ने शर्त मान ली और बदले में एक शर्त रख दी – प्रशांत उनकी तरह ही सफेद कुर्ता-पाजामा पहनेंगे। इसके साथ ही अपनी फेवरिट जींस और टी-शर्ट से प्रशांत पूरे नेता के लुक में आ गए।
जब अलगाव की उड़ी अफवाह
नीतीश कुमार के साथ प्रशांत किशोर का लगभग एक साल का सफर उतार-चढ़ाव भरा रहा। मोदी के साथ जीत के बाद जो प्रशांत को झेलना पड़ा, वैसा ही कुछ उन्हें नीतीश के साथ शुरू में ही झेलना पड़ा। प्रशांत के एक करीबी ने बताया कि जेडीयू और आरजेडी के एक बड़े नेता ने शुरुआती दिनों में सबके सामने कई मौकों पर कहा- यह कल का लड़का हमको चुनाव लड़ना सिखाएगा? नीतीश बाबू से मोटा माल लेगा और कहीं का नहीं छोड़ेगा। कई मौकों पर नीतीश कुमार के कान भरने की कोशिश की गई। जुलाई में कई पत्रकारों के पास कॉल आईं कि प्रशांत किशोर को नीतीश कुमार ने निकाल दिया है। पटना से वह लौटकर दिल्ली आ गए हैं। हालांकि सचाई यह थी कि प्रशांत कैंसर पीड़ित अपनी मां से मिलने गए थे। जेडीयू के एक बड़े नेता ने बताया कि उन दिनों भी प्रशांत दिन में अपनी मां की केयर करते थे और रात में नीतीश के लिए रणनीति बनाने में बिजी रहते थे।
कोई पॉलिटिकल आइडियॉलजी नहीं
चंद मीडियाकर्मियों के साथ प्रशांत की एक अनौपचारिक बातचीत हो रही थी। इसी बातचीत में एक पत्रकार ने प्रशांत से सवाल पूछा: पिछले साल आप मोदी के साथ, आज नीतीश के साथ तो क्या आपकी कोई पॉलिटिकल आइडियॉलजी नहीं है? प्रशांत ने साफ शब्दों में कहा: मेरी कोई राजनीतिक प्रतिबद्धता नहीं है। कल मोदी के साथ था, आज नीतीश के साथ हूं, कल किसी और के साथ हो सकता हूं। मेरा अपना कोई दल नहीं है। मैं और मेरी टीम ने अगर इस प्रफेशन को करियर बनाया है तो हमें अपने हिसाब से रास्ता बनाना होगा। हम खोखले आदर्श में भरोसा नहीं करते। इस काम के बदले कितना पैसा मिलता है, इस बारे में भी प्रशांत को बात करना पसंद नहीं। इस सवाल का जवाब वह कुछ यूं देते हैं- सरवाइव करने के लिए कौन पैसा नहीं लेता? मैं भी पैसा लेता हूं, लेकिन पैसे से पहले मैं काम को अपने पैशन और चाहत के साथ जोड़ता हूं। यह नहीं मिलेगा तो आप फिर मुझे पैसे से नहीं खरीद सकते। वैसे, प्रशांत को अपनी निजी जिंदगी के बारे में बातें करना भी ज्यादा पसंद नहीं है।
155 से कम सीटें तो प्रफेशन छोड़ दूंगा
5 नवंबर को 5 चरणों की वोटिंग के बाद प्रशांत एक्जिट पोल देख रहे थे। इनमें कांटे की टक्कर बताई जा रही थी। तभी प्रशांत किशोर ने सबके सामने ऐसी घोषणा की, जिसे सुनकर सभी हैरान रह गए। उन्होंने कहा कि अगर चुनाव में महागठबंधन को 155 से कम सीटें मिलीं तो वह इस प्रफेशन को छोड़ देंगे। अगर इतनी सीटें नहीं मिलती हैं तो इसका मतलब होगा कि उन्हें कोई राजनीतिक समझ नहीं है। बाद के दिनों में लालू प्रसाद और नीतीश कुमार, दोनों उनके प्रशंसक हो गए। जेडीयू के सीनियर नेता के. सी. त्यागी ने बताया कि वह यह देखकर हैरान रह गए कि पार्टी की एक मीटिंग में प्रशांत ने अलग-अलग सीटों के बूथों तक के बारे में फीडबैक दिया। यह सुनकर वहां आए उम्मीदवार हैरान थे। जब प्रशांत किशोर से पूछा गया कि महाठबंधन के लिए 155 से ज्यादा सीट मिलने का तुक्का था या कोई गणित? उन्होंने मुस्कराते हुए अपने आईपैड में पिछली अप्रैल में बनाई एक्सेल शीट दिखाई, जिसमें बीजेपी को अकेले 272 से ज्यादा सीट मिलने की रिपोर्ट बनाई गई थी।
पॉलिटिकल मैनेजमेंट का ट्रेंड
प्रशांत किशोर की कामयाबी ने भारतीय राजनीति में नए प्रयोग के रास्ते खोल दिए हैं। जिस तरह पहले नरेंद्र मोदी और फिर नीतीश कुमार ने पेशेवर तरीके से अपने चुनावी कैंपेन के लिए गैर राजनीतिक लोगों की मदद ली और उनकी सलाह पर आगे बढ़Þे, आने वाले दिनों में दूसरे नेता भी इससे प्रभावित होंगे ही। अरविंद केजरीवाल का भी कैंपेन कहीं-न-कहीं मॉडर्न पॉलिटिकल मैनेजमेंट का हिस्सा था। इसका फौरी असर देश के सबसे बड़े राज्य यूपी में दिख रहा है, जहां अखिलेश यादव ने गर्नाड आॅस्टिन की मदद लेने की पहल की है। आॅस्टिन अमेरिका में बिल क्लिंटन और ओबामा के चुनावी सलाहकार रह चुके हैं। सूत्रों के अनुसार, कम-से-कम आधा दर्जन ऐसी एजेंसियां देश में अगले कुछ दिनों में खुलने की प्रक्रिया में हैं, जो चुनावी प्रचार से लेकर राजनीतिक नीतियां बनाने तक का काम करेंगी। भले ही हमारे देश में यह ट्रेंड नया हो, लेकिन यूरोप और अमेरिका में इसका चलन लंबे समय से है। वहां तमाम नेता और राजनीतिक दल एक्सपर्ट एजेंसियों की मदद से ही चुनाव प्रचार अभियान को आगे बढ़Þाते हैं।
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