हम बिहार चुनाव के हाफ़-टाइम पर खड़े हैं. यह न सिर्फ महत्वपूर्ण है बल्कि दिलचस्प भी कि भारतीय जनता पार्टी ने कितनी बार अपना कथानक बदला है. यह चतुर रणनीति का हिस्सा है या फिर चक्रव्यूह में फंस जाने की तिलमिलाहट, ये तो अभी साफ नहीं. पांच दौर तक फैले मतदान के बीच सिर्फ मौसम ही नहीं बदला है. एनडीए के रणनीतिकारों को बहुत यकीन था कि लालू और नीतीश के वोट एक दूसरे को नहीं मिलेंगे. नरेंद्र मोदी सलामी बल्लेबाज की तरह आए और उन्होंने आते ही चार सभाएं की और उन्होंने सीधे बिहार से पूछा कि कितने पैसे काफ़ी होंगे, वोट के बदले.
तब तक एनडीए के टिकट भी नहीं बंटे थे और पार्टी सहयोगियों में एका के साथ इस बात का भरोसा भी था कि जीत उनकी राह में पलक-पांवड़े बिछा कर बैठी है. टिकट बंटने का सिलसिला सितंबर तक खिंच गया. नेता खींचतान और असंतोष खुली नुमाइश लगाकर बैठ गए. चाहे आर के सिंह का बयान हो या जीतनराम मांझी और रामविलास पासवान के बीच तनातनी. 84 सीटें सहयोगियों को देने के बाद भी, भाजपा न अपने सहयोगियों को संतुष्ट कर पाई, न अपने कार्यकर्ताओं को. तब तक महागठबंधन के सीटों की घोषणा एक झटके में हो गई, लालू-नीतीश के बीच यह समझ ज़मीनी तौर पर दिखने लगी थी. प्रचार शुरू हुआ तो एनडीए ने विकास के वादे के साथ-साथ नीतीश को अहंकारी, धोखेबाज और लालू को जंगलराज का पर्याय बताना शुरू किया.I
भाजपा नेताओं ने पिछले 25 साल के लिए लालू और नीतीश से हिसाब मांगना शुरू किया और लालू को जंगलराज पर घेरना शुरू किया. विकास का सिक्का विशेष पैकेज के साथ प्रधानमंत्री पहले ही जनता के बीच फेंक चुके थे लेकिन इस पैकेज को नीतीश कुमार ने रीपैकेजिंग करार दिया. सितंबर के पहले हफ्ते में केंद्र सरकार की तरफ से पैकेज का फुल पेज विज्ञापन अखबारों में आ रहा था, उसी समय राज्य सरकार का फुल पेज विज्ञापन भी छप रहा था जिसमें पैकेज के विवरण के साथ पूछा जाता था कि इसमें नया क्या है? इस बीच महागठबंधन की ओर से नीतीश कुमार ने सात सूत्र जारी किए और कहा कि अगर वे जीते तो उनकी सरकार इन सात सूत्रों पर ही चलेगी. इस बीच डीएनए विवाद, चंदन-भुजंग, जंगलराज-2, मंडल-2 जैसी बातें भी हुईं. इसके जवाब में नीतीश कुमार ने नरेंद्र मोदी-अमित शाह के बाहरी होने का मुद्दा उठाया, कहा कि बाहरी नहीं बिहारी चाहिए.
20 सितंबर को आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत आरक्षण की समीक्षा वाला बयान आया, लालू प्रसाद ने इस बयान को पकड़ लिया और इसे लोगों के बीच ले गए. हालांकि पहले और दूसरे चरण के मतदान से पहले तक भाजपा ने इसे गंभीरता से नहीं लिया और प्रधानमंत्री ने अपनी रैलियों में इसका जिक्र तक नहीं किया. हालांकि कुछ दिन बाद उन्हें कहना पड़ा कि आरक्षण हर हाल में जारी रहेगा और वे जान देकर भी उसे कायम रखेंगे, बीफ का मुद्दा भी आया जिस पर एक बयान देकर लालू प्रसाद फंसते दिखाई दिए लेकिन समय रहते लालू प्रसाद ने खुद को करेक्ट करने की कोशिश की.I
इस दौरान शैतान, नरपिशाच, महापिशाच, ब्रह्म पिशाच जैसे शब्द भी उछले, बात शुरू तो विकास से हुई थी. दुर्गा पूजा खत्म होते-होते भाजपा के सुर बदलने लगे, दूसरे राउंड का मतदान खत्म होते-होते ही भाजपा के ख़ेमे में सब वैसा नहीं रहा, जैसे शुरू में था. कई जगह चुनावी होर्डिंग बदलते दिखाई दिए. जहाँ नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की जगह स्थानीय नेताओं के चेहरे भी दिखलाई देने लगे. यकायक प्रधानमंत्री को अति-पिछड़ा बताया जाने लगा. इस बीच, आरएसएस के उत्तर-पूर्व क्षेत्र के कार्यवाहक डा. मोहन सिंह के नाम से एक प्रेस रिलीज भाजपा कार्यालय से जारी की गई, इस प्रेस रिलीज में कहा गया कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के परमपूज्य सरसंघचालक डाक्टर मोहन भागवत ने आरक्षण के संबंध में जो विचार दिया था, उसे तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत किया जा रहा है.
प्रधानमंत्री ने नीतीश-लालू पर पिछड़ों, अति पिछड़ों और दलितों के आरक्षण में से 5 फ़ीसदी दूसरे धर्म को देने की साज़िश करने का आरोप लगाया. प्रधानमंत्री ने इस बीच छह सूत्र भी उछाले- बिजली, पानी, सड़क, पढ़ाई, कमाई और दवाई. इस बीच, भाजपा की ओर से यह बयान भी आने लगे कि बिहार चुनाव के नतीजे केंद्र की एनडीए सरकार के कामकाज पर जनमत संग्रह नहीं माने जा सकते, फिर अमित शाह ने कह दिया कि अगर एनडीए बिहार चुनाव हारा तो पाकिस्तान में पटाखे फूटेंगे. बिहार में मतदान के दो दौर और बाकी हैं, जीत-हार का पता तो नतीज़े आने के बाद लगेगा लेकिन खेल अब सेकेंड हाफ में चला गया है. from bbchindi.com
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