बिहार चुनावों पर बीबीसी की विशेष सिरीज़ ‘बूझिए ना बिहार को’ में हम आपको अगले कुछ दिनों तक राज्य से जुड़े मिथकों और तथ्यों के बारे में बताते रहेंगे. इस कड़ी में जानिए, क्या बिहार चुनाव केवल जाति पर आधारित है? बाहरी व्यक्ति के लिहाज़ से देखें तो बिहार चुनाव का मतलब केवल जाति है. लोग केवल जाति देखकर वोट देते हैं और हमेशा ऐसा ही होता है. यह सही है कि बिहार में जाति के आधार पर लोग वोट देते आए हैं. यादव समुदाय के लोग बड़ी संख्या में राजद को वोट देते आए हैं.
जाति के लिए वोट
इसी तरह कुर्मी जाति के मतदाता बड़ी तादाद में नीतीश कुमार की जनता दल (यूनाइटेड) के लिए मतदान करते हैं. दूसरी ओर, सवर्ण जाति अमूमन भारतीय जनता पार्टी को वोट देती है. दलित मतदाता रामविलास पासवान को अपना वोट देता आया है. इस बार जीतन राम मांझी पर भी उनकी नजरें होंगी. लेकिन आम लोग केवल जाति के आधार पर ही वोट देते हों, ऐसा नहीं है.
तीसरी कड़ी: नीतीश ‘लोकप्रिय’, पर जुटा सकेंगे वोट?
विकास कितना अहम मुद्दा है?
लोग विकास के लिए भी वोट देते हैं. विकास की परिभाषा अलग अलग लोगों के लिए अलग होती है.
सवर्ण किसके साथ हैं?
दलित और अन्य पिछड़ा वर्ग के गरीब लोगों के लिए सामाजिक सशक्तिकरण, आर्थिक विकास जितना ही महत्वपूर्ण मुद्दा रहा है. इस वर्ग के लोगों का वोट सामाजिक विकास और सामाजिक बदलाव का दावा करने वाली पार्टियों को मिलता रहा है. ऐसे में वे राजद और एलजेपी को वोट देते रहे हैं. यह भी महत्वपूर्ण है कि राजद को सभी यादवों का वोट इसलिए नहीं मिलता कि लालू खुद यादव हैं. यादवों का वोट उनकी पार्टी को इसलिए मिलता है कि ग़रीब-गुरबे उन्हें समाजिक सशक्तिकरण का श्रेय देते हैं. सवर्ण सामाजिक सशक्तिकरण को ही विकास नहीं मानते. वे शिक्षा और रोजगार के अवसरों को भी वे विकास के लिए जरूरी मानते हैं. यह समूह बीजेपी को वोट करता रहा है क्योंकि उन्हें ये अपने हितों वाली पार्टी लगती है.
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