जीरादेई के चुनावी मैदान में लंदन का बिहारी एनआरआई

udeshwar_singh_nri_candidate_ jiradei siwanपंकज प्रियदर्शी. सिवान से
सिवान में जीरादेई विधानसभा क्षेत्र से वैसे तो कई उम्मीदवार मैदान में हैं, लेकिन शिवसेना के एक उम्मीदवार की अच्छी खासी चर्चा है. इसलिए नहीं कि वे चुनाव में बढ़ÞÞत बनाए हुए हैं, बल्कि इसलिए क्योंकि वर्षों तक लंदन में रहने वाले अनिवासी भारतीय उदेश्वर सिंह भी इस विधानसभा चुनाव में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. वैसे तो उदेश्वर सिंह पिछले कुछ वर्षों से भारतीय जनता पार्टी के साथ जुड़े हुए थे. लेकिन जब टिकट मिलने की उनकी आस पूरी नहीं हो पाई, तो उन्होंने शिवसेना का दामन थाम लिया. उदेश्वर सिंह 18 साल से लंदन में रह रहे हैं, लेकिन उन्होंने ब्रिटेन का पासपोर्ट नहीं लिया है, हालाँकि उन्होंने लंदन में ही शादी की है और उनकी पत्नी भी ब्रितानी हैं. भारत आकर राजनीति में कूदने के सवाल पर वो कहते हैं, मैं यहाँ राजनीति नहीं धर्मनीति करने आया हूँ. यहाँ की मिट्टी की सुगंध मुझे यहाँ खींच लाई है. मैं तो यहाँ सेवा करने आया हूँ.
पिछले कुछ वर्षों में अपनी राजनीतिक जमीन तैयार करने के लिए उदेश्वर सिंह ने जीरादेई इलाके में कई काम भी किए हैं. उनका मोबाइल अस्पताल भी यहाँ चर्चा में रहता है और कई बार यहाँ देश-विदेश से कई बड़े डॉक्टर भी आ चुके हैं. उदेश्वर सिंह लंदन में बिहारी कनेक्ट नाम का एक संगठन भी चलाते हैं, जो प्रवासी बिहारियों को एक प्लेटफॉर्म देता है. उन्होंने सरदार पटेल की प्रस्तावित प्रतिमा की तर्ज़ पर देश के पहले राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद की विशाल प्रतिमा बनाने का वादा भी किया है, जिसे वे स्टैचू आॅफ इंटेलिजेंस कहते हैं.
ऐन चुनाव के मौके पर भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने की बात पर वे कहते हैं, मैं अब भी भारतीय जनता पार्टी से जुड़ा हूँ. उसका घटक हूँ. भाजपा ने मुझे टिकट नहीं दिया, जबकि मेरा नाम सबसे ऊपर था. लेकिन उनके किसी नेता ने मुझे फोन तक नहीं किया, जिससे मैं काफी आहत हुआ. दूसरी ओर शिवसेना सुप्रीमो उद्धव ठाकरे ने मुझसे सीधे बात की.
हालाँकि उन्होंने स्वीकार किया कि दोनों पार्टियों में कुछ ज्यादा मतभेद नहीं. उदेश्वर सिंह कहते हैं कि दो भाइयों के बीच थोड़े मतभेद होते हैं, लेकिन हम इसे संभाल लेंगे. अगर चुनाव में निराशा हाथ लगी, तो वे भविष्य में क्या करेंगे, इसके जवाब में उदेश्वर सिंह दार्शनिक अंदाज में कहते हैं, लोग ब्रिटेन बसने जाते हैं और उनका पहला काम है ब्रिटेन का पासपोर्ट लेना. लेकिन मैं 18 साल ब्रिटेन में रहने के बाद यहाँ आ गया हूँ और मेरा पासपोर्ट भी भारतीय है. मैं बीच-बीच में लंदन जाता रहता हूँ, लेकिन मुझे अब यहीं लोगों के बीच रहना है. उदेश्वर सिंह कहते हैं कि उन्होंने ऋषिकेश में अपना स्थान बना लिया है और अब उन्हें वापस बसने के लिए ब्रिटेन नहीं जाना है. from bbchindi.com






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