बिहार चुनावों पर बीबीसी की विशेष सिरीज़ ‘बूझिए ना बिहार को’ में हम आपको अगले कुछ दिनों तक राज्य से जुड़े मिथकों और तथ्यों के बारे में बताते रहेंगे. इस कड़ी में जानिए, क्या बिहार में होने वाले चुनावों में सवर्ण लोग जाति के आधार पर वोट नहीं देते हैं? क्या वे मुद्दों के आधार पर ही तय करते हैं किसे वोट दिया जाए?
मुद्दों पर मतदान?
आमतौर पर यह माना जाता है कि बिहार का अन्य पिछड़ा वर्ग या ओबीसी (जिसमें यादव, कुर्मी और कोइरी प्रमुख हैं) और दलित मतदाता जाति के आधार पर वोट देते हैं.समझा जाता है कि सवर्ण मतदाता सिर्फ़ मुद्दों के आधार पर वोट देता है. इसका मतलब यह हुआ कि सिर्फ़ दलित और अन्य पिछड़ा वर्ग के मतदाता ही जाति के आधार पर वोट देते हैं. ऐसा इसलिए माना जाता है कि अन्य पिछड़ा वर्ग और दलितों में ज़्यादातर अशिक्षित हैं. यह भी माना जाता है कि ऐसे लोग राजनीति को नहीं समझते. उन्हें जाति के नाम पर मतदान करने के लिए आसानी से तैयार किया जा सकता है.
क्या है सच?
केवल ओबीसी और दलित मतदाता ही जाति के आधार पर वोट देते हों, ऐसा नहीं है.बिहार ही नहीं, अन्य राज्यों के सवर्ण मतदाता भी जाति के आधार पर वोट देते रहे हैं. बिहार के ओबीसी और दलित मतदाता अब तक लालू प्रसाद की राष्ट्रीय जनता दल और नीतीश कुमार की जनता दल-यूनाइटेड को वोट देते आए हैं. दूसरी ओर, सवर्ण मतदाता बड़ी संख्या में भारतीय जनता पार्टी को वोट देते रहे हैं.
सवर्ण किसके साथ हैं?
विधानसभा के तीन चुनावों में बिहार के 65 फ़ीसदी सवर्ण मतदाताओं ने बीजेपी-जेडीयू गठबंधन को वोट दिया.साल 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान चार सवर्ण जातियों (ब्राह्मण, भूमिहार, राजपूत और कायस्थ) ने मोटे तौर पर बीजेपी को वोट दिया.क़रीब 78 फ़ीसदी सवर्ण मतदाताओं ने बीजेपी और उनके सहयोगियों को मत दिया था.
सबसे बड़ा जातीय ध्रुवीकरण
प्रत्येक 10 भूमिहारों में नौ ने बीजेपी गठबंधन को मत दिया था. यह बिहार ही नहीं, भारत के चुनावी इतिहास में किसी एक जाति का किसी एक पार्टी के पक्ष में सबसे बड़ा ध्रुवीकरण था.ऐसे में क्या हम कह सकते हैं कि सवर्ण मतदाता जाति के आधार पर मतदान नहीं करते?
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