कोसी क्षेत्र में साख बचाने में जुटे दिग्गज
नवीन निशांत.सहरसा,
आखिरी चरण के लिए कोसी में मंच सज चुका है। सबसे खास यह कि दोस्त बनकर राजनीतिक दुश्मन एक मंच पर दिखेंगे। एक कहावत है कि रोम पोप का और मधेपुरा गोप का तो निर्णायक क्षमता रखने वाले 33 फीसदी यादव वोट से जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव, राजद नेता लालू प्रसाद, उनके बागी राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव, मंत्री बिजेन्द्र प्रसाद यादव व नरेंद्र नारायण यादव सरीखे नेताओं के कद मापे जाएंगे। साथ ही आकलन होगा कि पीएम नरेंद्र मोदी की तीन-तीन रैलियां का क्या असर रहा।
कोसी के तीन जिले सहरसा, मधेपुरा व सुपौल में कुल 13 सीटें हैं, लेकिन इनका बिहार में बनने वाली हर सरकार में दबदबा रहा है। कांग्रेस के जमाने में इसी इलाके से जगन्नाथ मिश्र तीन बार मुख्यमंत्री बने। दशहरा पूजा भूल शरद ने मोर्चा संभाल लिया है। शरद और लालू यादव को जनता इसबार एक मंच से वोट मांगते देखेगी, लेकिन पप्पू यादव के उम्मीदवार सभी सीटों पर महागठबंधन को ललकार रहे हैं। रोचक होता अगर पप्पू यादव की सांसद पत्नी रंजीत रंजन महागठबंधन के मंच से पति को चुनौती देतीं लेकिन वह चुनावी राजनीति से दूर हैं। नाराज हैं कि महागठबंधन ने कांग्रेस को कोसी में एक सीट नहीं दी। नीतीश के 10 वर्षों के शासनकाल में साथ रहकर क्षेत्र में कुछ ज्यादा कुछ नहीं कर सकी भाजपा ने सात सीटें अपने पास रखी हैं। भाजपा के नेता कहते हैं कि उनके पास कोसी में पाने के लिए बहुत कुछ है। 13 सीटों का गणित यह कि 10 पर जदयू, दो पर राजद और एक पर भाजपा के विधायक हैं। भाजपा ने रवीन्द्र चरण (बिहारीगंज), नीरज बबलू (छातापुर) व विश्वमोहन (पिपरा) जैसे जदयू के नाराज नेताओं पर दांव खेला है। नीतीश कुमार कोसी में अपने विकास कार्यों की मजदूरी मांगते हैं। पिछले 10 वर्षों में कई बड़े काम हुए। बलुआहा में दो किमी लंबा पक्का पुल के साथ ही दो तटबंधों के बीच 12 पुलों की श्रृंखला खड़ी कर दशकों से बंटे कोसी और मिथिलांचल को जोड़ने का प्रयास हुआ। मधेपुरा में मेडिकल कॉलेज की नींव रखी जा चुकी है, लेकिन कुछ शिकायतें भी हैं, डुमरी पुल पर यातायात बंद है। सहरसा में तीन-चार शिलान्यासों के बाद भी एक ओवरब्रिज नहीं बना। फिर भी सबको यकीन है कि विकास का मुद्दा सिर्फ मंच की शोभा बढ़ाने के लिए है।
कोसी में पैर जमाने के प्रयास में भाजपा
लोकसभा में झटका खायी भाजपा कोसी क्षेत्र को नए सिरे से ताकत लगा रही है। पार्टी ने सुपौल को कोसी, सीमांचल और मिथिलांचल का क्षेत्रीय मुख्यालय बनाया है। राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह सुपौल में कार्यकर्ताओं को संबोधित कर चुके हैं। पीएम बनने से पहले और बाद में नरेंद्र मोदी सुपौल व सहरसा में तीन रैलियां कर चुके हैं। 1 नवंबर तो वह मधेपुरा आ रहे हैं। डेढ़ साल के भीतर देश के किसी पीएम का कोसी में यह तीसरा दौरा होगा।
कहीं सीधा तो कहीं त्रिकोणीय मुकाबला
नीतीश सरकार के दो मंत्रियों बिजेन्द्र प्रसाद यादव (सुपौल) और नरेन्द्र नारायण यादव (आलमनगर) की प्रतिष्ठा दांव पर है। ये दोनों नेता वही हैं जिन्हें नीतीश के त्यागपत्र देने के बाद मुख्यमंत्री बनाने की चर्चा चली थी लेकिन बाजी मार ले गए थे जीतनराम मांझी। शरद यादव के करीबी पूर्व सांसद दिनेश चंद्र यादव सिमरी बख्तियारपुर से किस्मत आजमा रहे हैं। यहां से जदयू ने विधायक अरुण यादव का टिकट काट दिया है। कोसी में कहीं सीधी तो कहीं त्रिकोणीय मुकाबला दिख रहा। पप्पू यादव की जनअधिकार पार्टी कई सीटों पर निर्णायक भूमिका में है। from hindustan
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