प्रभुनाथ व रूडी-सीग्रीवाल की प्रतिष्ठा दांव पर
सुशील कुमार सिंह, छपरा।
जिले के विधानसभा चुनावी अखाड़े में एक ओर राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद और पूर्व सांसद प्रभुनाथ सिंह तो दूसरी ओर केंद्रीय मंत्री राजीव प्रताप रूडी व सांसद जनार्दन सिंह सीग्रीवाल की प्रतिष्ठा दांव पर है। महाबठबंधन और एनडीए के उम्मीदवारों की घोषणा के बाद अमूमन हर विधानसभा क्षेत्र में बगावतियों के तीखे तेवर दिख रहे हैं। अधिकतर बगावतियों ने चुनाव लड़ने का एलान करने के साथ ही अपने-अपने नामांकन की तिथि की घोषणा भी कर दी है। कुछ अब भी चुनाव मैदान में उतरने के पूर्व कार्यकतार्ओं व समर्थकों से रायशुमारी कर रहे हैं। पहले तो इन राजनीतिक दिग्गजों को बगावतियों की चुनौती से पार पाना होगा और फिर महागठबंधन व एनडीए में यहां अपना-अपना पलड़ा भारी करने को जोर लगाना होगा।
छपरा-अमनौर में लालू व रूडी के लिए बड़ी चुनौतियां पिछले साल मई में हुए लोकसभा चुनाव में जिस छपरा विधानसभा क्षेत्र में करीब 38 हजार वोटों की रिकार्ड बढ़Þत की बदौलत रूडी तीसरी बार संसद पहुंच सके थे, भाजपा का वही किला महज ढाई माह बाद ही अगस्त में हुए उपचुनाव में ध्वस्त हो गया था। यहां जिस प्रभुनाथ ने 2005 में पहली बार लालटेन बुझाई थी, उनकी बदौलत ही एक दशक बाद उनके बेटे रणधीर कुमार सिंह ने यहां लालटेन दुबारा जलाई थी। तब रघुवंशी बहुल इस क्षेत्र में रूडी-सीग्रीवाल का जादू यहां फीका पड़ गया था।
वहीं रणधीर ने अपने पिता की महाराजगंज में लोसचुनाव में हार की सहानुभूति ले रघुवंशियों के वोटों में सेंध लगा माय समीकरण को नए अंदाज में साधते हुए बड़े अंतर से जीत दर्ज की थी। हालांकि इस बार लालू के कभी नजदीकी रहे पूर्व मंत्री उदित राय भी अखाड़े में उतरने के लिए ताल ठोंक दिया है। लिहाजा यहां जिस तरह उपचुनाव में रघुवंशियों को समेटने में रूडी-सीग्रीवाल को सफलता नहीं मिली, उसी तरह इस बार लालू के लिए यदुवंशियों को राजद के पाले में समेटना चुनौतीपूर्ण टास्क बन गया है।
इसी तरह इस बार पूर्व प्रत्याशी कन्हैया सिंह का टिकट कटने को ले राजपूत बहुल सिताब दियारा में जिस तरह भाजपाइयों ने सुशील मोदी के साथ-साथ रूडी का भी पुतला जलाया, उससे संकेत तो यही है कि उन्हें भी अपने समाज के लोगों की नाराजगी से इस चुनाव में पार पाना आसान नहीं होगा। हालांकि टिकट बंटने के बाद से अब तक न तो यहां लालू आए हैं और न ही रूडी। वहीं प्रभुनाथ ने इस क्षेत्र में अब तक दो कार्यकर्ता सम्मेलन का आयोजन कर कार्यकतार्ओं में नई ऊर्जा का संचार किया है।
इसी तरह अमनौर रूडी का पैतृक घर है। लोस चुनाव में छपरा के बाद रूडी को सर्वाधिक करीब दस हजार वोटों की दूसरी बढ़Þत यहीं मिली थी। इसे देखते हुए इस बार यहां भाजपा पहली बार लड़ रही है। यहां भी रघुवंशियों का अपेक्षाकृत अधिक वोट होने के बाद भी काफी कम मत वाले ब्रर्ह्षि समाज के शत्रुघ्न तिवारी उर्फ चोकर बाबा को भाजपा का टिकट मिला है। इससे रघुवंशी दावेदारों में खासा नाराजगी है।
टिकट के लिए जदयू छोड़ भाजपा में शामिल वैश्य व अतिपिछड़ा समाज के धर्मेंद्र साहभी टिकट से वंचित होने के बाद लोगों से रायशुमारी कर रहे हैं। इन सभी चुनौतियों से पार पार होते हुए रूडी को अपने गृह क्षेत्र में भाजपा को जीत दिलाने की चुनौती है। वहीं राजद नेता रहे सुनील राय ने 2010 के पिछले विधानसभा चुनाव में बगावती तेवर अपना दूसरा स्थान हासिल किया था और लोजपा-राजद गठबंधन के उम्मीदवार को चौथे स्थान पर ढकेल दिया था। लालू के स्वजातीय सुनील इस बार भी जदयू के खाते में सीट रहने से टिकट से वंचित हो गए हैं और वे एक बार फिर अखाड़े में उतरने को तैयार हैं। लिहाजा इस बार भी लालू के लिए स्वजातीय वोटरों को जदयू उम्मीदवार के पाले में लाना आसान नहीं है।
सीग्रीवाल के क्षेत्र में सभी सीटों पर राजपूत, मांझी में चुनौती
रूडी के संसदीय क्षेत्र के छह विस क्षेत्रों में से एनडीए का केवल एक राजपूत उम्मीदवार है तो सीग्रीवाल के संसदीय क्षेत्र के जिले के सभी चार विस क्षेत्रों में राजपूत उम्मीदवार ही हैं। इनमें जिस जलालपुर से सीग्रीवाल ने विधानसभा चुनाव में जीत की हैट्रिक लगाई थी, वह अब मांझी क्षेत्र में ही है। यहां कई भाजपाई दावेदार थे पर यह सीट अंतत: लोजपा के खाते में चली गई। इसे ले नाराज भाजपाइयों को मनाने की चुनौती भी कम नहीं है। साथ ही राजपूत बहुल इस क्षेत्र में लोजपा उम्मीदवार के इसी वर्ग से उतारने के बाद स्वजातीय वोटों की गोलबंदी की चुनौती भी सीग्रीवाल के सामने है। खासकर उस स्थिति में सीटिंग विधायक गौतम सिंह और पिछली बार राजद प्रत्याशी रह दूसरा स्थान हासिल करने वाले हेमनारायण सिंह के भी चुनावी अखाड़े में उतरने से राजपूत वोटों का बिखराव तय माना जा रहा है।
बनियापुर में प्रभुनाथ को भाई का बेड़ा लगाना है पार
प्रभुनाथ के लिए छपरा में जहां अपने बेटे के किले को बचाना है, वहीं बनियापुर में अपने छोटे भाई व सीटिंग विधायक केदारनाथ सिंह का बेड़ा पार लगाने की भी चुनौती है। केदारनाथ बॉडीगार्ड हत्याकांड में अभी न्यायिक हिरासत में होने के चलते क्षेत्र से दूर हैं। उक्त कांड में कुछ समय तक फरारी में रहने की स्थिति में भी वे क्षेत्र से दूर रहे हैं। वहीं प्रभुनाथ के एक अन्य भाई दीनानाथ सिंह भी उक्त हत्याकांड में फरार चल रहे हैं। भतीजा युवराज सुधीर सिंह भी न्यायिक हिरासत में हैं। लिहाजा प्रभुनाथ को ही वहां की चुनावी कमान भी संभालनी पड़ रही है। वहीं यहां इस बार भाजपा की ओर से केदारनाथ के कट्टर राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी रहे पूर्व विधायक तारकेश्वर सिंह को यहां के चुनावी अखाड़े में उतारा गया है। इसी क्षेत्र में सीग्रीवाल का पैतृक घर है और यहां भी टिकट से वंचित हम व भाजपा के दावेदारों में नाराजगी है। इन्हें मनाना भी सीग्रीवाल व अन्य एनडीए नेताओं के लिए आसान नहीं है।
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