यादवों के वोट से ही यादवों को सत्ताविहीन बनाएगी भाजपा!
नवल किशोर
मामला बहुत दिलचस्प है। भाजपा की ओर से इस बात के तमाम प्रयास किए जा रहे हैं कि यादवों के मत में अधिक से अधिक सेंधमारी की जाय। इसके लिए उसने यादवों को ही यादवों का दुश्मन बना दिया है। जबकि सच्चाई यह है कि आजतक भाजपा में यादवों की हैसियत सवर्णों के आगे कुछ भी नहीं रही है। हालांकि यादवों को तोड़ने के लिए उसने कई अहम प्रयास भी किए हैं। मसलन राजनीतिक साजिश के तहत विधानसभा में विपक्ष के नेता पद पर नंद किशोर यादव को बिठाया गया। लालू प्रसाद से विद्रोह करने वाले राम कृपाल यादव को केंद्रीय राज्यमंत्री का पद तोहफे में दिया गया। वहीं बिहार के यादवों को मोहने के लिए भूपेन्द्र यादव को बिहार भाजपा का प्रभारी तक बनाया गया। लेकिन सच्चाई तो सभी जानते हैं कि आज भी सुशील कुमार मोदी, डा सी पी ठाकुर, मंगल पांडेय, राजीव प्रताप रुडी, गिरिराज सिंह और अश्विनी चौबे जैसे नेताओं के सामने भाजपा के तथाकथित यादवों की हैसियत नाम मात्र की है।
इसका एक प्रमाण अभी हाल ही में दिल्ली में सामने आया। दिल्ली में अमित शाह के घर पर एनडीए के घटक दलों की बैठक चल रही थी। बैठक में नंद किशोर यादव और भूपेन्द्र यादव भी मौजूद थे। विश्वसनीय सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक इस बैठक में नंद किशोर यादव ने अपने आकाओं को सलाह दिया कि यादवों को तोड़ने के लिए ऐसे यादवों का इस्तेमाल नहीं किया जाय, जिनके कारण पार्टी की छवि खराब हो। उनका इशारा पप्पू यादव की ओर था। वे चाहते थे कि यादव बहुल विधानसभा क्षेत्रों में यादवों को उम्मीदवार बनाया जाय। लेकिन श्री यादव के इस सलाह को उनके आकाओं ने सिरे से नकार दिया। खैर यह सच्चाई है कि भाजपा में गैर सवर्णों और गैर बनियों की औकात इससे अधिक नहीं है।
उधर स्वयं को यादवों के सबसे बड़े नेता के रुप प्रचारित करने वाले पप्पू यादव भी यादवों को तोड़ने में जुटे हैं। उन्हें यकीन है कि इस चुनाव में लालू प्रसाद पूरी तरह से खत्म हो जाएंगे और बिहार के यादव उन्हें एकमात्र नेता के रुप में वहीं स्थान देंगे जो लालू प्रसाद को हासिल था। यादवों को भरमाने के लिए पप्पू यादव ने वह तमाम तिकड़म किए हैं, जिनसे यादव वोट प्रभावित हो और लालू प्रसाद को नुकसान पहुंचे। हाल के दिनों में कोसी के अलावा उन्होंने मगध को टारगेट किया है। मगध में यादवों को तोड़ने के लिए उन्होंने एक भ्रामक बयान दिया कि नीतीश कुमार के राज करीब एक लाख यादवों को टारगेट किया गया।
बहरहाल सबसे अधिक दिलचस्प यह है कि बिहार का यादव समाज आज दोराहे पर खड़ा हो गया है। हालांकि अभी भी यादवों का बड़ा समूह लालू प्रसाद के साथ दिखता है लेकिन यह भी सच्चाई है कि यादवों को तोड़ने की कोशिशें कामयाब भी हुई हैं। खास बात यह है कि बिहार के यादव जितना बिखरे हैं, सवर्ण उतने ही एकजुट हुए हैं। लिहाजा बिहार में एक बार फिर सवर्ण राज की संभावना बढ़ गई है। देखना दिलचस्प होगा कि इस बार विधानसभा चुनाव में यादव स्वयं को एकजुट रख पाते हैं या फिर वे बहकावे में आकर अपने ही जड़ों में मट्ठा डालेंगे। (लेखक apnabihar.org के संपादक हैं)
Related News
इसलिए कहा जाता है भिखारी ठाकुर को भोजपुरी का शेक्सपियर
स्व. भिखारी ठाकुर की जयंती पर विशेष सबसे कठिन जाति अपमाना / ध्रुव गुप्त लोकभाषाRead More
पारिवारिक सुख-समृद्धि और मनोवांछित फल के लिए ‘कार्तिकी छठ’
त्योहारों के देश भारत में कई ऐसे पर्व हैं, जिन्हें कठिन माना जाता है, यहांRead More
Comments are Closed