क्या सीमांचल में लालू की ताकत बनेगी महागठबंधन के लिए खतरा?

laloo prasad yadavपटना। एम-वाई (मुस्लिम-यादव) समीकरण के बूते बिहार में लंबे समय तक सत्तारूढ़ रहे लालू प्रसाद यादव के लिए अब एमवाई का दांव उल्टा पड़ सकता है। महागठबंधन से समाजवादी पार्टी के अलग होने के बाद तीसरे मोर्च के रूप में नए विकल्प से महागठबंधन को ही अधिक नुकसान की आशंका है और इसमें तीसरे मोर्चे में शामिल जन अधिकार पार्टी के मुखिया पप्पू यादव और पूर्व केन्द्रीय मंत्री तारिक अनवर की पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) अहम भूमिका निभा सकती है।
बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन की ओर से सीटों के बंटवारे में पर्याप्त सम्मान नहीं मिलने से नाराज समाजवादी पार्टी ने किनारा करते हुए तीसरे मोर्चे में शामिल होने के साथ ही ह्यमुस्लिमह्ण वोटों में बिखराव की संभावना बन रही है। वहीं परिवाद के मुद्दे पर राजद सुप्रीमों लालू प्रसाद यादव से अलग अपनी राह चुनने वाले राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव की सीमांचल क्षेत्र में यादव मतदाताओं के बीच अच्छी पकड़ है। एमआईएम सांसद असउद्दीन आवैसी के चुनावी अखाड़े में उतरने के साथ ही ह्यएमआईह्ण समीकरण के बूते चुनावी वैतरणी पार करने की कोशिश में लगे महागठबंधन के नेताओं पर माथे पर चिंता की लकीरें खींच गई है।
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि चुनाव में इन नेताओं से बहुत बड़े रिजल्ट की उम्मीद तो नहीं है, लेकिन यह महागठबंधन के मनसूबों पर पानी जरूर फेर सकते हैं। यह माना जा रहा है कि यदि तीसरे मोर्चे से महागठबंधन का खेल बिगड़ता है तो इसका सीधा फायदा भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और उसके गठबंधन को मिलना तय है। बिहार के सीमांचल इलाके में जन अधिकार पार्टी के प्रमुख और सांसद राजेश रंजन उफ पप्पू यादव और मुस्लिमों के फायर ब्रांड नेता असदुद्दीन ओवैसी की सीधी नजर है। दोनों नेता सीमांचल में महागठबंधन का चुनावी गणित बिगाड़ सकते हैं। कोसी और पूर्णिया को मिलाकर बनने वाले सीमांचल से विधानसभा की 37 सीटें आती हैं, जिसमें पूर्णिया मंडल में 24 और कोसी मंडल में 13 सीटें हैं। सीमांचल की 25 सीटों पर मुसलमान वोटर निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं। आकड़ों के अनुसार किशनगंज में 68 प्रतिशत, कटिहार में 45, अररिया में 35 और पूर्णिया में 35 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं। पिछले कई दशकों से इस क्षेत्र में राजद, जदयू और कांग्रेस की अच्छी पकड़ है और यहां की अधिकांश सीटें महागठबंधन के पास हैं। इन जगहों पर ओवैसी अपनी पार्टी से उम्मीदवार उतार सकते हैं, जहां मुस्लिम वोटरों की संख्या अधिक है।
ऐसा माना जा रहा है कि बिहार में ओवैसी चुनाव में परचम नहीं लहरा सकते लेकिन वोट कटवा पार्टी के रूप में उभर सकते है और महागठबंधन को मुश्किलें में दे सकते हैं। हालांकि महागठबंधन के नेताओं ने यह आरोप लगा रही हैं कि ओवैसी भाजपा का मोहरा है।laloo yadav bihar
सीमांचल में अभी तक सबसे ज्यादा वोट राजद के खाते में गए हैं। इसकी वजह है कि यहां सालों से यादव-मुस्लिम फैक्टर काम करता आया है जिसका सबसे ज्यादा फायदा लालू प्रसाद यादव को मिलता आया है। ओवैसी के आने से राजद को भारी नुकसान की आशंका है। इस क्षेत्र में ओवैसी की पार्टी विकास के नाम पर जबर्दस्त प्रचार कर रही है। युवाओं में भी ओवैसी का जबर्दस्त क्रेज भी है।
बाहुबली राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव का राजनीतिक सफर लगभग ढाई दशक पुराना है। इस दौरान वे कई पार्टियों में आते-जाते रहे। बिहार के कोसी क्षेत्र में श्री यादव का अच्छी पकड़ हैं। राजनीतिक दल आज पप्पू यादव को बिहार में सबसे बड़े ह्यवोट कटवाह्ण के रूप में देख रहे हैं। यादव पांच बार मधेपुरा से सांसद रह चुके हैं जबकि उनकी पत्नी रंजीता रंजन सुपौल से कांग्रेस सांसद हैं। यही वजह है कि पप्पू यादव की सीमाचंल क्षेत्र में जबर्दस्त पकड़ है। यादव वोटों का ध्रुवीकरण होने से फायदा भाजपा को मिल सकता है।
सपा के प्रमुख मुलायम सिंह भी अपने पार्टी से टिकट देने के समय मुस्लिम-यादव फैक्टर को ध्यान मे रखकर प्राथमिकता दे सकते हैं। समाजवादी पार्टी के लिए बिहार का चुनाव अबतक किसी तिलस्म से कम नहीं रहा है। पार्टी ने फरवरी, 2005 में हुए विधानसभा चुनाव में चार सीटें जीती थी। अक्टूबर, 2005 में सपा ने मात्र दो सीट पर ही जीत दर्ज की थी। वर्ष 2010 के चुनाव में सपा अपना खाता भी नहीं खोल पाई। पिछले कुछ चुनावों में सपा का बिहार में वोट शेयर भी गिरा है। बिहार में पार्टी का कैडर वोट नहीं के बराबर है लेकिन उत्तर प्रदेश में मुस्लिम हितैषी होने की पार्टी की इमेज का फायदा बिहार में मिलने की उम्मीद है। भले ही सपा बिहार में स्थिति अच्छी नहीं हो यदि सभी विपक्षी पार्टियों के मात्र एक फीसद वोट काटने में भी सफल रही तो चुनावी समीकरण बदल सकते हैं।
तारिक अनवर बिहार में राकांपा के एकमात्र सांसद हैं और पांच बार कटिहार लोकसभा क्षेत्र से सांसद रह चुके हैं। राकांपा चाहती तो तीन सीटों के साथ बिहार में महागठबंधन के साथ चुनाव लड़ सकती थी, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। कटिहार लोकसभा सीट में विधानसभा की कटिहार, कदवा, बलरामपुर, प्राणपुर, मनिहारी और बरारी सीटें आती हैं। 2010 के चुनाव में भाजपा को चार सीटें (कदवा, कटिहार, प्राणपुर और बरारी) मिली थीं। मनिहारी सीट जदयू और बलरामपुर निर्दलीय ने जीती थी। इन चुनावों राकांपा दूसरे नंबर की पार्टी बनकर उभरी थी। ऐसा माना जा रहा है कि राकांपा यहां कम से कम एक सीट जीत सकती है और बाकी सीटों पर समीकरण बिगाड़ सकती है। अगर ऐसा हुआ तो भाजपा को अप्रत्यक्ष रूप से फायदा मिल सकता है। मुस्लिम मतदाता का पार्टी को समर्थन प्राप्त है।
देवेंद्र यादव पहले जदयू से अलग होकर जीतन राम मांझी के साथ चले गए थे। वे चाहते थे कि हम को राजग में लोजपा से ज्यादा सीटें मिलें। लेकिन मांझी कम सीट के लिए राजी हो गए। इससे नाराज होकर उन्होंने हम से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने अपनी नई पार्टी समाजवादी जनता दल बना ली है। यादव तीसरे मोर्चा में शामिल हुए और उन्हें अपने गठबंधन में 23 सीटें मिली।
देवेंद्र प्रसाद यादव झंझारपुर संसदीय सीट से पांच बार से सांसद रहे। उन्हें लगता है कि समाजवादियों के साथ जाने से उन्हें अपने क्षेत्र में अच्छा-खासा फायदा मिल सकता है। पिछले चार दशक से यह सीट समाजवादियों का गढ़ रही है। इस लोकसभा सीट में खजौली, बाबूबरही, राजनगर, झंझारपुर, फुलपरास और लौकांहा विधानसभा सीटें हैं। 2010 के विधानसभा चुनाव में इन छह सीटों में दो भाजपा और चार जदयू -राजद महागठबंधन को मिली थीं। अब देवेंद्र के अलग पार्टी बनाने से कम से कम छह सीटों के साथ बाकी 19 सीटों पर असर पड़ सकता है। उल्लेखनीय है कि इस बार के विधान सभा चुनाव में महागठबंधन ने 33 मुस्लमानों और 64 यादव वर्ग के उम्मीदवारों को टिकट दिया है वहीं भाजपा गठबंधन ने नौ मुस्लमानों और 25 यादव समुदाय के लोगों को टिकट दिया है।






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