सामाजिक न्याय के मुद्दे को राजद ने कभी नहीं छोड़ा : मीसा भारती

69 misa bharatiलालू प्रसाद की बेटी व राजद की युवा नेत्री मीसा भारती  की नवल किशोर कुमार से विशेष बातचीत का संपादित अंश – –

-यह पहली बार हो रहा है कि राजद जदयू के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है। राजद को इस नए गठबंधन से कितनी उम्मीदें हैं और यह भी कि नीतीश कुमार को नेता मानने का राजद के पारंपरिक मतदाताओं पर कितना असर पड़ेगा?
– राजद को पूर्ण विश्वास है कि महागठबंधन से समावेशी विकास की हमारी कवायद को नया बल मिलेगा। जैसा कि हम एक क बाद एक सभी ओपिनियन पोल्स में देख भी रहे हैं कि बिहार की जनता ने गठबंधन को सर आँखों पर बिठाया है।े और जहाँ तक रही हमारे पारंपरिक मतदाताओं की बात तो उसे राजद के नेतृत्व पर हमेशा पूर्ण विश्वास रहा है कि राजद उनके हितों की कभी अनदेखी नहीं होने देगा। चाहे सत्ता में हों या विपक्ष में, कमजोर वर्गों के कल्याण हेतु उठने वाली आवाजों में सबसे पहली और सबसे बुलंद आवाज राजद की ही होती है। नेता कोई भी हो, राजद के आदर्श और सिद्धांत वहीँ अडिग मिलेंगे। और यही कारण है कि पिछले कई चुनावों से राजद के पारंपरिक मतदाता जस के तस राजद के साथ खड़े रहे हैं। राजद के ए अडिग मतदाता विरोधी खेमों के लिए परेशानी और सरदर्द का सबब रहे हैं। राजद पर जानबूझकर पारंपरिक मतदाताओं वाली पार्टी की छवि से लादा जाता है। ए विधानसभा चुनाव राजद के लिए सुअवसर हैं कि वे इस मिथक को ध्वस्त कर नए समर्थकों को अपने साथ जोडें ।
-लगता है राजद एक बार फिर से अपने पुराने ट्रैक पर है। सामाजिक न्याय को चुनावी आधार बनाया जा रहा है। विपक्षी इसे जातिवादी राजनीति बता रहे हैं। आप इस संबंध में क्या कहेंगी?
– जब सबसे अधिक जाति आधारित सभा और सम्मेलनों का आयोजन करने वाली पार्टी जब किसी अन्य दल पर जातिगत राजनीति करने का आक्षेप लगाती है तो यह हास्यास्पद लगता है। अगर वे स्वयं जातिवादी राजनीति नहीं करते तो क्यों उन्हें दूसरी जातियों के वोटों में सेंध लगाने के लिए दूसरे दलों के बागी नेताओं की बैसाखी की जरूरत पड़ती है? क्यों किसी अपराधी की गिरफ़्तारी के कदम को किसी जाति विशेष विरोधी कदम के रूप में पेश किया जाता है? क्यों किसी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार को यकायक अपनी जाति को भुनाने की जरूरत पडती है? सामाजिक न्याय के मुद्दे को जब राजद ने कभी छोड़ा ही नहीं तो इसे आप इसे राजद का पुराना ट्रैक कैसे कह सकते हैं? और इस मुद्दे को पुराना तो वही कह सकते हैं जो आधुनिक मानव मूल्यों से अनभिज्ञ हैं। समानता और स्वतंत्रता जैसे मानवीय मूल्य भारत जैसे राष्ट्र में तभी सही मायने में लागू हो सकते हैं जब सामाजिक न्याय स्थापित करने की कवायद समाज में जड़ पकड़े। आज वही राष्ट्र आधुनिक व विकसित हैं जिन्होंने इतिहास में ढाई गई ज्यादतियों को स्वीकार कर, विशेष कदम उठा, सुधारात्मक बदलाव के बीज बोए। चाहे अमेरिका के अश्वेत हों, आॅस्ट्रेलिया के अबोरिजिन, न्यूजीलैंड के माओरी या ग्रेट ब्रिटेन के आयरिश अथवा स्कॉट- इन सभी देशों की सरकारों ने इन इतिहास में उत्पीड़ित लोगों के लिए विशेष हैंड होल्डिंग के कदम उठाए । और इसमें गलत कुछ भी नहीं है। भारत के हिस्से के सुधारात्मक कदम शब्दों, आरक्षण और कानूनों तक ही सीमित रह गए। समाज में इसे व्यवहार में उतारना अभी बाकी ही है। सामाजिक न्याय को सिर्फ जाति के चश्मे से नहीं देखा जाए, बल्कि अब इस संघर्ष में महिलाओं और विकलांगों की भी आवाज उठाई जाए। सामाजिक न्याय का अर्थ आरक्षण कतई नहीं समझा जाए, बल्कि इसे सभी नागरिकों के मन में समानता के भाव को जागृत करने के प्रयास के रूप में देखा जाना चाहिए। राजद जातिगत जनगणना के आंकड़ों को जारी करने के लिए आवाज उठा रही है क्योंकि एक लोकतंत्र में समाज को अपनी सही सामाजिक व आर्थिक तस्वीर जानने का हक है। अपना चेहरा देखने का हक है, चाहे यह चेहरा कितना ही असहज करने वाला क्यों न हो, यह आंकड़े रोक प्रधानमंत्री उसी जनता की बुद्धिमत्ता पर सवालिया निशान लगा रहे हैं जिसने उन्हें चुनकर संसद भेजा। यह सिर्फ जातिगत संख्या जानने की लड़ाई नहीं है। यह ांकड़े बताएगी कि दशकों से चली आ रही कल्याणकारी योजनाएं क्या सचमुच कोई छाप छोड़ पाई भी हैं या आवंटन की पद्धति, मानकों और रणनीति को नए चश्मे या कार्यशैली से परिभाषित करने की आवश्यकता है? योजना आयोग का नाम सिर्फ नीति आयोग कर देने से कोई आमूलचूल बदलाव नहीं आने वाला!!
जानकारी आ रही है कि इस बार न आप चुनाव लड़ेंगी और न ही आपकी मां राबड़ी देवी। कहा यह भी जा रहा है कि विधानसभा चुनाव के बाद आपको राज्यसभा भेजा जाएगा। इसमें कितनी सच्चाई है?
– इसमें कोई सच्चाई नहीं है राज्यसभा का विकल्प तो मेरे लिए काफी पहले से खुला था। बावजूद इसके मैंने लोकसभा का चुनाव लड़ा। मंजिल तक पहुँचने के रास्ते अलग अलग हो सकते हैं पर मेरा लक्ष्य मेरे मन में बिलकुल स्पष्ट रूप से अंकित है े और वह है बिहार के कमजोर और निर्धन वर्ग से आने वाली महिलाओं के लिए शिक्षा और स्वावलम्बन का मार्ग प्रशस्त करना और इस मार्ग में पार्टी मुझे जो भी भूमिका देती है उसे मैं सहर्ष स्वीकार करुँगी। हाँ मैं चुनाव नहीं लड़ूँगी लेकिन अपने दल व गठबंधन के लिए प्रचार करूँगी।
-एक समय था जब राजद जीतन राम मांझी के साथ खड़ी थी, लेकिन फिर ऐसा क्या हुआ कि राजद ने श्री मांझी को बीच मझधार में छोड़ दिया। क्या इससे राजद के सामाजिक न्याय को नुकसान पहुंचेगा?
– मांझी जी से राजद ने कभी मुंह नहीं मोड़ा लेकिन हमारा समर्थन उनके दल को था, उन्हें हटाने का फैसला उनके दल का था। उन्हे राजद ने महागठबंधन का हिस्सा बनने का निमंत्रण दिया ही था परन्तु उनकी यह शर्त थी कि उन्हें ही गठबंधन का मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित किया जाए, मानो मुख्यमंत्री बनना ही उनका एकमात्र राजनीतिक लक्ष्य रह गया होे और रातोंरात अपनी वर्षों की विचारधारा को धता बताते हुए वे एनडीए में भी बिना शर्त मिल गए। और ऐसे गठबंधन, जिसमें 12-15 स्वघोषित मुख्यमंत्री उम्मीदवार हैं, वहां उन्होंने मुख्यमंत्री पद की दावेदारी की भी तिलांजलि दे दी। बतौर मुख्यमंत्री उन्होंने कहा था कि अमित शाह हर चुनाव के पहले दंगे करवाते हैं, अब उन्हीं से जा मिले हैं। जब मांझी जी ने कहा था कि ऊंची जाति वाले लोग विदेशी हैं तो भाजपा के नेताओं ने उन्हें मानसिक संतुलन खोया हुआ तक कह डाला था, पर आज ठऊअ गठबंधन ने उनके हर विवादास्पद और हास्यास्पद बयान पर अपनी सैद्धान्तिक स्वीकारोक्ति दे दी है। जनता बखूबी जान रही है कि भाजपा के साथ खड़े हो सामाजिक न्याय की लड़ाई नहीं लड़ी जा सकती क्योंकि सामाजिक न्याय को फाल्स प्रोपगेंडा कहने वाले भाजपा के लोग सामाजिक न्याय को साम्प्रदायवाद से कुंद करना चाहते हैं। भाजपा के संग खड़े हो सामाजिक न्याय की बात करना मांझी जी के लिए बेमानी होगा।
राजद प्रमुख ने इस बार युवाओं को प्राथमिकता देने की बात कही है। लेकिन दूसरी ओर उन्होंने अपने ही दल के युवा सांसद पप्पू यादव को पार्टी से निकाल दिया है। इसे आप किस रूप में देखती हैं?
– अगर लोकतंत्र एक तंत्र के अनुरूप कार्य करता है तो उसका हिस्सा बनी पार्टियां भी एक तंत्र के अधीन कार्य करती हैं। जो ज्यादा समय तक एक पार्टी का हिस्सा बने नहीं रह सकते वो लोकतंत्र की मूल भावना को भी समझने का दावा नहीं कर सकते। पार्टी की ही रैंक एंड फाइल से उन्होंने युवा शक्ति नामक गुट का निर्माण किया और फोर्स मल्टीप्लायर बनाने के बजाय इसे समानांतर शक्ति बनाने की कोशिश करने लगे। गौरतलब है कि युवा शक्ति के बैनरों पर भीड़ जुटाने राष्ट्रीय अध्यक्ष का फोटो लगाते थे और बाद में सभाओं में पार्टी को ही गाली देते थे। हर पार्टी का हर मुद्दे पर अपना एक स्टैंड होता है, पर जब अपनी अपनी डफली और अपना अपना राग होने लगे तो बाहर निकलने का दरवाजा खोलना जरूरी हो जाता है। युवाओं को प्राथमिकता देने का यह अर्थ कतई नहीं है कि युवा होना ही एक मात्र शर्त है। अनुशासन में रहना उससे कहीं बड़ी शर्त है। वैसे 47 साल की उम्र को युवा नहीं कहा जा सकता। फिलहाल वो भाजपा की बी टीम बने बैठे हैं। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि किसी भी ओपिनियन पोल ने उन्हें एक भी सीट नहीं दी है। वैसे सीट जीतने की ना उनमें कुव्वत है, ना यह उनका लक्ष्य है। उनकी हैसियत सिर्फ एक वोट कटुआ की है और लक्ष्य भाजपा की बी टीम बनकर उसे लाभ पहुँचाना है। अत: जनता सचेत रहे और उनपे अपना वोट बर्बाद ना करे।
आपके दोनों भाईयों के चुनाव लड़ने पर स्थानीय स्तर पर विरोध हो रहा है। आपके हिसाब से इसकी वजह पार्टी में अनुशासनहीनता या फिर कोई साजिश तो नहीं है?
– हर सीट पर उम्मीदवार घोषित होने पर अंतर्कलह और विरोध होना हर पार्टी के लिए आम बात है। ए सिर्फ राजद की बात नहीं है। कुछ तो दल ही बदल लेते हैं। संभव है कि विरोधी गठबंधन ही इसे हवा दे रही हो क्योंकि वहाँ नए और युवा चेहरों के कारण उन्हें अपनी जमीन खिसकती नजर आ रही है। वैसे तेजस्वी और तेज प्रताप की उम्मीदवारी के फैसले को सम्बंधित विधानसभाओं के लोगों की इच्छाओं और आशाओं को मद्देनजर रखते हुए ही लिया गया है। क्षेत्र के लोगों की कृपा लम्बे समय से राजद पर रही है और दोनों की उम्मीदवारी को लेकर खासा उत्साह है।
विधानसभा चुनाव में आपकी भूमिका क्या होगी?
– विधानसभा में मेरी भूमिका एक मार्गदर्शक और संदेशवाहक की होगी। नए उम्मीदवारों के लिए जीत का मार्ग प्रशस्त करना, उनका मार्गदर्शन करना, जनता तक पार्टी और उम्मीदवारों के संदेशों को ले जाना और एक तत्पर टीम बनाकर पार्टी के संसाधनों को सुचारू रूप से काम पर लगाना मेरे जिम्मे होगा। नए युग के प्रचार के तरीकों और सोशल मीडिया का पार्टी द्वारा बहुतायत प्रयोग होगा। इसमें रंग-रूप, शैली और शब्दों की एकरूपता सुनिश्चित करने पर भी विशेष ध्यान दूँगी। पार्टी की सेवा में लगाने के लिए संसाधन जुटाना और स्वयंसेवकों की टीम खड़ी कर उनमे तालमेल की रणनीति तैयार करना भी आवश्यक होगा। जब सभी बड़े नेता अपने अपने विधानसभा तक ही सीमित हो जाएँगे तो मैं और राष्ट्रीय अध्यक्ष गठबंधन के सभी घटक दलों, उम्मीदवारों, कार्यकतार्ओं और मतदाताओं के बीच एक पुल की भूमिका में आ जाएँगे। उस समय पूरे बिहार में चल रही राजनीतिक गतिविधियों पर मेरी पैनी नजर होगी और मेरी जिम्मेदारियाँ मात्र राजद के प्रति ही नहीं, बल्कि समस्त गठबंधन के प्रति होगी। from : http://www.apnabihar.org/






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