सत्ता की राजनीति में वाम आंदोलन का रंग फीका
ध्रुवनारायण सिंह.मोतिहारी,
चम्पारण में लगातार तीन दशक तक लाल झंडे का डंका बजा चुकी सीपीआई आज राजनीतिक संकट के दौर से गुजर रही है। गरीबों के हक की लड़ाई लड़ने की पहचान रखनेवाली इस पार्टी के समक्ष आज कई राजनीतिक व सामाजिक चुनौतियां खड़ी है, जिससे जनता को गोलबंद कर वोट कैश करा पाने की डगर आसान नहीं है। जनसहयोग के बल पर अपनी पहचान रखनेवाली पार्टी को हाईटेक चुनावी जंग में पूंजीवाद से लोहा लेना आसान काम नहीं है। लिहाजा, आज के बदले राजनीतिक माहौल में पार्टी विचार मंथन कर वाम एकता के बल पर चुनावी जंग में कूदने की तैयारी कर रही है। आजादी के बाद पहली बार 1952 में केसरिया विस क्षेत्र से पितांबर सिंह को सीपीआई ने उम्मीदवार बनाया था, लेकिन वे चुनाव हार गए। 1953 के उपचुनाव में भी श्री सिंह 356 मतों से पराजित हुए। 1957 में पार्टी ने केसरिया से फिर पितांबर सिंह को व सिकटा से एक अन्य प्रत्याशी को खड़ा किया। फिर किस्मत ने साथ नहीं दी। अंतत: दोनों सीटें गंवानी पड़ी। 60 के दशक में सीपीआई ने विधानसभा में खाता खोला जो 90 के दशक तक जारी रहा। 1962 में पार्टी ने नौ जगह से प्रत्याशी खड़े किए, जिसमें से केसरिया से पितांबर सिंह व ढाका से नेक मोहम्मद अख्तर पहली बार चुनाव जीतकर विस पहुंचे, वहीं पिपरा से पार्टी समर्थित उम्मीदवार गंगानाथ मिश्रा ने चुनाव जीता। 1967 में केसरिया से पितांबर सिंह, मधुबन से महेंद्र भारती व हरसिद्धि से एसएम अब्दुल्ला चुनाव जीते। 1969 में हुए मध्यावधि विस चुनाव में मधुबन से महेंद्र भारती चुनाव जीतने में कामयाब रहे। महेंद्र भारती के निधन के बाद 1972 में मधुबन से उनकी पत्नी राजपति देवी, पिपरा से तुलसी राम व केसरिया से पितांबर सिंह व सिकटा से उमाशंकर शुक्ल ने चुनाव जीत वामपंथ का लोहा मनवाया था। 1972 में पूर्वी व पश्चिमी चंपारण जिला अलग होने के बाद 1977 में हुए चुनाव में केसरिया से पितांबर सिंह चौथी बार विधायक बन लाल झंडे के गढ़ को आबाद रखने में कामयाब रहे, वहीं पिपरा से तुलसी राम ने दोबारा जीत दर्ज की। इसके बाद भाकपा को कांग्रेस को समर्थन देने की कीमत 1980 में चुकानी पड़ी। आठ सीटों पर चुनाव लड़नेवाली भाकपा को सभी सीटें गंवानी पड़ी थी। तब सीपीआई व सीपीएम मिलकर चुनाव लड़ी थी। पुन: 1985 से वामपंथ का सिक्का चमका। 1985 में मोतिहारी से त्रिवेणी तिवारी ने लाल झंडा लहराया था। 1990 में मोतिहारी से पुन: त्रिवेणी तिवारी व केसरिया से यमुना यादव ने जीत दर्ज की। पुन: 1995 में मोतिहारी से तीसरी बार जीत दर्ज कर त्रिवेणी तिवारी ने हैट्रिक लगाई व केसरिया से यमुना यादव दूसरी बार विधायक बन कर वाम आंदोलन को धार दी थी, लेकिन सीटों के समझौते का खामियाजा पार्टी को वर्ष 2000 से लेकर 2010 तक हुए विस चुनाव में भुगतना पड़ा। सीपीआई के वरीय नेता त्रिवेणी तिवारी भी स्वीकार करते हैं कि समझौते से पार्टी को नुकसान उठाना पड़ा है। अब वाम शक्तियों को एकजुट कर पार्टी आसन्न विस में खोई राजनीतिक जमीन पाने की कोशिश करेगी। -लाइव हिंदुस्तान से साभार
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