चुनाव में तालमेल पर पार्टियों की नजर
पांच साल में किसी भी राज्य में राजनीतिक माहौल शायद ही इतना बदला हो, जितना बिहार में बदला है। महाराष्ट्र में भी चुनाव से ऐन पहले शिवसेना और भाजपा का तालमेल टूटा था, लेकिन बिहार में सभी पार्टियों में जैसा बिखराव हुआ, वैसा वहां नहीं हुआ था। पिछले चुनाव में भाजपा और जनता दल यू साथ मिल कर लड़े थे और दोनों को ऐतिहासिक जनादेश मिला था।
बिहार की 243 विधानसभा सीटों में से 142 पर जनता दल यू के उम्मीदवार लड़े थे और 101 सीटों पर भाजपा लड़ी थी। इसमें 90 फीसदी की सफलता दर से भाजपा ने 91 सीटें हासिल कीं। जदयू के खाते में 115 सीटें गई थीं। 2010 के विधानसभा चुनाव में जदयू को 22.6 और भाजपा को 16.46 फीसदी वोट मिले थे।
तालमेल का कैसा फायदा भाजपा को हुआ था, इसका अंदाजा राष्ट्रीय जनता दल के नतीजों को देख कर लगाया जा सकता है। पिछले चुनाव में राजद को 18.84 फीसदी वोट मिले थे यानी भाजपा से करीब ढाई फीसदी ज्यादा, लेकिन सीटें सिर्फ 22 मिलीं। उस समय राजद 168 सीटों पर लड़ी थी और 75 सीटें उसने अपने सहयोगी रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा के लिए छोड़ी थीं। लोजपा को 4.35 फीसदी वोट और सिर्फ तीन सीटें मिलीं। पिछले चुनाव में कांग्रेस अकेले सभी सीटों पर लड़ी थी और उसे 8.39 फीसदी वोट मिले थे, लेकिन उसके भी सिर्फ चार विधायक जीत पाए थे। बसपा ने हर बार की तरह लगभग सभी सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे, जिसमें से उसका एक भी उम्मीदवार जीत नहीं पाया था, पर उसे 3.21 फीसदी वोट मिले थे। सीपीआई और सीपीएम दोनों को मिला कर 2.40 फीसदी वोट मिले और 171 सीटों पर लड़ने वाली एनसीपी को करीब डेढ़ फीसदी वोट मिले थे।
लेकिन अब चुनावी तस्वीर बदल गई है। भाजपा और जदयू अलग हो गए हैं। अगर पिछले विधानसभा चुनाव को आधार मानें तो भाजपा के 16.46 फीसदी वोट में पासवान के 4.35 फीसदी वोट को जोड़ा जाएगा और यह आंकड़ा 20.81 फीसदी का बनेगा। इसके उलट राजद और जदयू साथ आते दिख रहे हैं। पिछले विधानसभा के आंकड़ों के मुताबिक इन दोनों का वोट 41.4 फीसदी बनता है। इसमें अगर कांग्रेस का भी वोट जोड़ दें तो आंकड़ा 50 फीसदी के करीब पहुंच जाता है। लेकिन आंकड़ों का खेल अजीब होता है।
हर बार इनसे सच्ची तस्वीर सामने नहीं आती है। इसके अलावा पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव ने आकलन के लिए नए आंकड़े भी दिए हैं। लोकसभा चुनाव में भाजपा और जदयू अलग-अलग लड़े थे। 38 सीटों पर लड़ कर जदयू सिर्फ दो पर जीती और उसे महज 17 फीसदी वोट मिले। 25 सीटों पर लड़ कर राजद को करीब 21 फीसदी और 15 सीटों पर लड़ी कांग्रेस को छह फीसदी वोट मिले। इस तरह इनका आंकड़ा 44 फीसदी पहुंचता है। यानी 2010 के विधानसभा चुनाव में तीनों को मिले वोट से छह फीसदी कम।
फिर भी यह वोट एनडीए की तीनों घटक दलों के वोट से ज्यादा है। पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा, लोजपा और रालोसपा एक साथ लड़े थे और इन तीनों को मिल कर 38.8 फीसदी वोट मिले। जबकि खराब प्रदर्शन के बावजूद राजद, जदयू और कांग्रेस को 44 फीसदी। उस चुनाव के बाद एक फर्क यह आया है कि जीतन राम मांझी जदयू से अलग हो गए हैं और वे भाजपा से तालमेल की बातचीत कर रहे हैं। अगर वे महादलित वोट भाजपा की ओर घुमाने में कामयाब होते हैं तब भी कम से कम आंकड़ों में बराबरी का मुकाबला दिख रहा है।
पिछले चुनाव में भाजपा-जदयू साथ लड़े थे
भाजपा-जदयू को 39 फीसदी वोट मिले थे
दोनों के 206 विधायक जीते थे
राजद को 18.84 फीसदी वोट और 22 सीटें मिलीं
लोजपा 75 पर लड़ कर सिर्फ तीन पर जीती थी
कांग्रेस सभी सीटों पर लड़ी 8.39 फीसदी वोट मिले
अब सभी पार्टियों के समीकरण बदल गए हैं
लोकसभा में राजद, जदयू, कांग्रेस का 44 फीसदी वोट
एनडीए के तीनों घटक दलों को 38.8 फीसदी वोट
मांझी के अलग होने से भी बदलेगा आंकड़ा
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