क्या कोबरा पोस्ट के खुलासे से बिहार में होगा नए सिरे से राजनीतिक धुव्रीकरण?
नई दिल्ली। विधानसभा चुनाव के मुहाने पर खड़ी बिहार की राजनीति में कोबरा परत उधेड़ने की कोशिश की गई है। इतना ही नहीं घंटे भर की सीडी में लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार के बाद 1पोस्ट के स्टिंग आॅपरेशन ने खलबली मचा दी है। नब्बे के दशक से अब तक हुए छह बड़े दलित नरंसहारों की997 में बनी जस्टिस अमीर दास कमेटी के अध्यक्ष स्वयं जस्टिस अमीर दास ने को यह कहते हुए दिखाया गया है कि जदयू-भाजपा की सरकार सत्ता बिहार में आने के बाद एक सदस्यीय जांच आयोग को इसीलिए भंग कर दिया गया क्यों कि हमारी रिपोर्ट में बिहार के कई बड़े नेताओं के नाम थे। आयोग की अंतिम रिपोर्ट का भी इंतजार नहीं किया गया। उन्होंने इस सदंर्भ में खुलकर वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी, यशवंत सिन्हा, सुशील कुमार मोदी और सीपी ठाकुर सरीखे नेताओं का नाम लेते हुए कहा कि जांच में इनके नाम संदहास्पद की सूची में शुमार थे। राजनीतिक रूप से बेहद संवेदनशील मामले को कोबरा पोस्ट ने उस समय सार्वजनिक किया है जब समूचे बिहार में सियासत उफान पर है। जदयू-राजद गठबंधन और भाजपा के नेतृत्व में राजग गठबंधन के बीच देश का सबसे चर्चित विधानसभा चुनाव सितंबर-अक्टूबर में होने है। भाजपा की ओर से पूर्व उपमुख्यमंत्री और विधान परिषद में विपक्ष के नेता सुशील कुमार मोदी मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदारों में से एक हैं। बातचीत में कोबरा पोस्ट के कर्ताधर्ता अनिरुद्ध बहल ने माना कि स्टिंग का काम सालभर से चल रहा था। समय से पहले स्टिंग सार्वजनिक होने से उसकी महत्ता अपेक्षाकृत कम होती। चुनाव का समय है। लोगों को हकीकत का पता लगना चाहिए। वोट के रूप में वे अपने लोकतांत्रिक अधिकारों का उपयोग कर सकते हैं। अनिरुद्ध बहल ने बताया कि स्टिंग में जिन नेताओं के नाम आए सभी से बात करने का प्रयास किया गया ताकि उनके बयान को भी कलमबद्ध किया जा सके, लेकिन किसी ने बात नहीं की। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद को घेरने के लिए भाजपा की ओर से भागलपुर दंगे को हर चुनाव में हवा दी जाती रही है। यह पहली बार है जब सीधे भाजपा के बड़े नेताओं को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की गई है। बिहार की राजनीति में यह भी पहली बार है जब भाजपा पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को अपने खेमे में लेकर महादलित वोटों के धु्रवीकरण का प्रयास कर रही है। कोबरा पोस्ट में बथानी टोला, लक्ष्मणपुर बाथे, शंकर बिघा, मियांपुर, सरथुआ और इकवारी नरसंहारों का स्टिंग किया गया है जिसमें 144 दलितों की निर्मम हत्या रणवीर सेना द्वारा कर दी गई थी। वर्ष 2012 में रणवीर सेना की नींव डालने वाले ब्रहेंश्वर मुखिया की हत्या और अब भूमिहारों के नेता माने जाने वाले विधायक अनंत सिंह को कई जेल में डालने के बाद से दबंग माने जाने वाले इस तबके का राजद-जदयू गठबंधन से मोह भंग हुआ है।
क्या है रणवीर सेना : मूल रूप से उच्च बिरादरी के माने जाने वाले भूमिहारों के खेतों में काम करने वाले दलित बिरादरी के लोगों ने काम के बदले कम मजदूरी या बिना मजदूरी के काम न करने का ऐलान सीपीआई (माले) के बैनरतले किया। हथियार बंद माले के कार्यकर्ताओं को कुचलने के लिए भूमिहारों ने अत्याधुनिक हथियारों से लैस रणवीर सेना का गठन किया था। हरिभूमि से साभार
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