हर बार से तीखी होगी बिहार की लड़ाई
आशुतोष झा, नई दिल्ली। बिहार में दो दशक बाद बदले राजनीतिक समीकरण और स्पष्ट रूप से बंटे दो खेमों में होने जा रही लड़ाई का फैसला संभवत: युवा व महिला वोटर ही करेंगे। लिहाजा बिहार की औसतन सीटों पर दोनों खेमों का संघर्ष उन 50-60 हजार वोटों के लिए होगा जो या तो पहली बार अपने राज्य के सत्ता गठन में हिस्सा लेंगे या बदले हुए समीकरण के अनुसार फैसला करेंगे। बिहार की 243 सीटों में प्रत्एक पर औसतन 32 हजार नए वोटर पहली बार मतदान करेंगे, जबकि पिछले दो विधानसभा चुनावों में हार जीत के फैसले का औसत अंतर 12-13 हजार का रहा है। गौरतलब है कि हर चुनाव में लगभग पांच फीसद फ्लोटिंग वोट होता है, जो आखिरी वक्त पर फैसला लेता है। राजनीतिक दलों के बीच सीटों के बंटवारे से पहले आंकड़ों की समीक्षा शुरू हो गई है। यह लगभग तय माना जा रहा है कि पिछले दो विधानसभा चुनावों के मुकाबले इस बार ज्यादा तीखी लड़ाई होगी। उम्मीदवारों को मिले वोटों के पिछले कुछ रिकॉर्ड भी टूट सकते हैं। इस बार बिहार चुनाव में जो भी दल मायने रखता है, वह खुलकर दो खेमों में खड़ा है।
2005 में लगभग 14 फीसद वोट लेकर अकेली लड़ने वाली लोजपा इस बार भाजपा के खेमे में है। जदयू से टूटे जीतन राम मांझी भी राजग का हिस्सा बन चुके हैं। 2010 में नौ फीसद वोट लेने वाली कांर्ग्रेस इस बार राजद-जदयू खेमे में है। ढाई फीसद वोट लेने वाली राकांपा भी संभवत: इसी खेमे में रहे। जाहिर है कि प्रभावी वोट लाने वाले उम्मीदवारों की संख्या कम हो गई और लड़ाई तीखी।
ऐसे में भाजपा के उत्साह का कारण पिछला आंकड़ा है। नीतीश कुमार को राजग का नेता स्वीकार करने के बावजूद पिछले चुनाव में भाजपा का वोट फीसद बड़ी छलांग लगाकर जदयू से आगे निकल गया था। 2005 विधानसभा चुनाव के मुकाबले न सिर्फ ज्यादा सीटें मिलीं, बल्कि वोट में भी तीन फीसद बढ़Þोतरी हुई। विकास के मानक पर नीतीश का जलवा चलने के बावजूद जदयू के वोट में मात्र डेढ़ फीसद की उछाल आई थी।
सांप्रदायिकता बनाम धर्मनिरपेक्षता, जातिगत समीकरण बनाम विकास जैसे दावों व नारों के बीच उन नए वोटरों का रुख मायने रखेगा जो पहली बार वोट डालेंगे। चुनाव आयोग के नए आंकड़ों के अनुसार, राज्य में सिर्फ 18-19 साल के वोटरों की संख्या ही लगभग तीन फीसद बढ़Þ चुकी है। जबकि नए वोटरों की संख्या में 76 लाख की बढ़Þोतरी हुई है। ए वो वोटर हैं, जिन्होंने लोकसभा चुनाव में वोट डाले थे। इन नए वोटरों पर एकमुश्त पकड़ ही चुनाव की दिशा तय करेगा। नीतीश अभी भी एक खेमे का चेहरा बने हुए हैं। जाहिर तौर पर उनकी ओर से दलील दी जाएगी कि आजमाए हुए को ही मौका दें, लेकिन उन्होंने एक बड़ा राजनीतिक प्रयोग किया है।
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