सीटों के बंटवारे का अंकगणित
नीतीश का समीकरण यह है कि जेडीयू और कांग्रेस मिलकर 140 सीटों पर लड़ रहे हैं। यानी नीतीश 140 सीटों को अपना मान रहे हैं। लालू यादव की आरजेडी पर अब भी नीतीश उतना भरोसा नहीं करते. इसलिए आरजेडी को बराबर का सीट देकर भी कांग्रेस को 40 सीटें दिलाना नीतीश की जीत मानी जा सकती है।
पंकज प्रियदर्शी
पटना में एक बहुचर्चित प्रेस कॉन्फ्रÞेंस. मीडिया के सामने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) प्रमुख लालू प्रसाद यादव और कांग्रेस के सीपी जोशी. ऐसा कम ही होता है जब तीन अलग-अलग धुरी की राजनीति करने वाले एक साथ मंच पर नजर आए। लेकिन बिहार में चुनाव है और चुनाव में इस महागठबंधन का मकसद भाजपा का रथ रोकना है. इस प्रेस कॉन्फ्रÞेंस से यह बात निकलकर आई कि इस गठबंधन के तीन दलों आरजेडी, जेडीयू और कांग्रेस को कितनी-कितनी सीटें मिलेंगी। इस प्रेस कॉन्फ्रÞेंस में हुई घोषणा से बिहार की राजनीति को करीब से देखने वालों को आश्चर्य नहीं होना चाहिए. इसकी चर्चा बहुत समय से थी कि लालू प्रसाद जेडीयू के बराबर सीटें लेने की जिÞद पर अड़े हुए थे।
इस घोषणा से यही लगता है कि लालू यादव की चली है। घोषणा के मुताबिक आरजेडी 100 सीटों, जेडीयू 100 सीटों और कांग्रेस 40 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. बिहार विधानसभा में कुल 243 सीटें हैं। सीटों के बँटवारे पर हुई घोषणा यही बताती है कि नीतीश कुमार कितने बैकफुट पर हैं। 10 साल सत्ता में रहने और सुशासन बाबू का तमगा हासिल करने के बाद भी उन्हें भाजपा और खासकर नरेंद्र मोदी के प्रभाव को रोकने के लिए किस हद तक समझौता करना पड़ रहा है। लेकिन अगर इस गठबंधन की जीत हुई, तो सारे गिल-शिकवे पृष्ठभूमि में चले जाएँगे. लेकिन चुनावी नतीजे आने में काफी समय है और बिहार की राजनीति आने वाले समय में और रोचक होगी। क्योंकि इस गठबंधन पर सीटों के बँटवारे पर सवाल उठाने वाला एनडीए भी कम मुश्किल में नहीं।
वहां भी सीटों का बँटवारा ऐसा गंभीर विषय है कि अभी तक कोई खुलकर बोल तक नहीं रहा। कम से कम आरजेडी-जेडीयू-कांग्रेस गठबंधन ने सीटों के बँटवारे का पहले ऐलान करके एक मनोवैज्ञानिक बढ़Þत तो जरूर बना ली है।
लेकिन आरजेडी-जेडीयू और कांग्रेस के सीटों के बँटवारें का विश्लेषण करें, तो नीतीश कुमार के लिए यह घुटने टेकने के समान है। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा से गठबंधन के बावजूद जेडीयू ने 141 सीटों पर चुनाव लड़ा था। भाजपा सिर्फ 102 सीटों पर लड़ी थी। इसलिए कहीं न कहीं नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार मान चुके लालू ने सीटों के बँटवारे को लेकर चौका लगाया है। जानकार और सूत्र शुरू से ही यही बता रहे थे कि इस मुद्दे पर लालू यादव कोई समझौता करने को राजी नहीं थे।
नीतीश की हल्की जीत इस मायने में कही जा सकती है कि वे कांग्रेस को 40 सीटें दिलाने में कामयाब रहे हैं. भाजपा से गठबंधन टूटने के बाद नीतीश और कांग्रेस की करीबी किसे से छिपी नहीं है। और तो और अपने को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करवाने के लिए नीतीश ने कांग्रेस का इस्तेमाल दबाव डलवाने के लिए भी किया था। नीतीश का समीकरण यह है कि जेडीयू और कांग्रेस मिलकर 140 सीटों पर लड़ रहे हैं। यानी नीतीश 140 सीटों को अपना मान रहे हैं। लालू यादव की आरजेडी पर अब भी नीतीश उतना भरोसा नहीं करते. इसलिए आरजेडी को बराबर का सीट देकर भी कांग्रेस को 40 सीटें दिलाना नीतीश की जीत मानी जा सकती है।
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