सहयोगियों के दावे बीजेपी के लिए सिरदर्द
यह सच है कि गठबंधन में हर पार्टी की अपनी मजबूती होती है, लेकिन बीजेपी की अपने बूते की तैयारी भी बहुत अच्छी है. सीटों का दावा वास्तविकता के आधार पर होना चाहिए, अगर किसी को दिक्कत है तो हमें भी किसी विकल्प से कोई गुरेज नहीं है. लेकिन सहयोगी दलों को पता है कि बीजेपी के साथ रहेंगे तो ही फायदा है.ह्व बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता के ए तेवर बिहार चुनाव के लिए सहयोगी दलों के उन बड़े-बड़े दावों के बाद हैं जिसमें बीजेपी को पुरानी 102 सीटों पर लडऩे की नसीहत के साथ अपने लिए बढ़Þा-चढ़ाकर सीटों का दावा किया गया है. लेकिन बीजेपी तब तक अपने पत्ते नहीं खोलना चाहती जब तक बिहार में 28 अगस्त तक चलने वाली परिवर्तन यात्रा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 1 सितंबर को भागलपुर में होने वाली रैली संपन्न नहीं हो जाती.
एनडीए के घटक दलों के बीच सीटों के बंटवारे पर भले घमासान दिख रहा हो, लेकिन बीजेपी हड़बड़ी में नहीं है. बिहार बीजेपी के प्रभारी महासचिव भूपेंद्र यादव इंडिया टुडे से कहते हैं, ह्लअभी सहयोगी दलों से अनौपचारिक चर्चा हुई है, परिवर्तन रैली के बाद ही सीटों पर औपचारिक चर्चा होगी. सीटों की संख्या अभी तय नहीं है, लेकिन सब कुछ सकारात्मक तरीके से हो जाएगा.ह्व लेकिन घटक दलों में बेचैनी की बड़ी वजह असहज माने जाने वाले नीतीश-लालू-कांग्रेस महागठबंधन में सीटों का बंटवारा सहजता से होना है. इसका जिक्र करते हुए राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के अध्यक्ष और मोदी सरकार में मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री उपेंद्र कुशवाहा कहते हैं, ह्लसीटों के बंटवारे में जितनी देरी हो रही है, उतना ही हम रणनीति में पिछड़ रहे हैं जो गठबंधन के लिए उचित नहीं है. इस बारे में जल्द फैसला होना चाहिए.ह्व बीजेपी सबसे ज्यादा आशंकित कुशवाहा से ही है जो अपनी पार्टी के लिए 67 सीटों का दावा ठोक रहे हैं जबकि बीजेपी के भरोसेमंद घटक माने जाने वाले एलजेपी अध्यक्ष रामविलास पासवान 66 तो पूर्व मुख्यमंत्री और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) के अध्यक्ष जीतन राम मांझी 75 सीटों की सूची बीजेपी आलाकमान को थमा चुके हैं. बीजेपी का मानना है कि घटक दलों की ए मांगें कहीं से भी यथार्थवादी नहीं दिखतीं क्योंकि 243 सीटों में से ए दल 208 सीटों पर दावा कर रहे हैं.
बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए में सीटों की मांगदरअसल, बीजेपी दबाव की राजनीति का खेल भांपकर दोहरी रणनीति पर काम कर रही है. एक, वह प्रधानमंत्री मोदी की रैली से पहले किसी तरह का मतभेद नहीं चाहती और दूसरे, सीटों के बंटवारे में देरी करके ऐसी स्थिति बना दी जाए कि आंखें दिखाने वाले सहयोगियों के पास एनडीए में बने रहने के अलावा कोई विकल्प न बचे. प्रतिष्ठा का सवाल बन चुके बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी अपने बलबूते बहुमत के लिए जरूरी 122 का जादुई आंकड़ा छूने की रणनीति बना रही है. उसके रणनीतिकारों का मानना है कि जादुई आंकड़े तक पहुंचने के लिए कम से कम उसे 170-175 सीटों पर लडऩा होगा. ऐसे में घटक दलों के लिए महज 73 सीटें बचती हैं. लेकिन जाति समीकरण का गुलदस्ता न बिखरे, इसके लिए बीजेपी 150-160 सीटों पर लडऩे तक झुक सकती है. लेकिन सूत्रों के मुताबिक, इस परिस्थिति में बीजेपी की ओर से कुछ उम्मीदवार घटक दलों को दिए जाएंगे जो क्षेत्रीय दलों के चुनाव चिन्ह पर लड़ेंगे. बीजेपी ने शुरुआती फॉमूर्ला लोकसभा सीटों के आधार पर दिया था&यानी तीन लोकसभा सीट वाली आरएलएसपी को 18 और एलजेपी को 40-42 सीटें. लेकिन आरएलएसपी के सूत्रों की मानें तो कुशवाहा किसी भी सूरत में 38 सीटों से नीचे नहीं मानेंगे, जबकि बीजेपी का मानना है कि कुशवाहा के पास विकल्प नहीं है और अगर वे बागी रुख अपनाते हैं तो फिर अमित शाह ऐसे मामलों में बेहद आक्रामक रवैया अक्चितयार कर सकते हैं जैसा कि उन्होंने महाराष्ट्र चुनाव में अपनाया था.
बीजेपी भी मान रही है कि कुशवाहा गठबंधन से अलग नहीं होंगे, लेकिन राजनैतिक संभावनाओं को देखते हुए पार्टी ने अपनी दूसरी रणनीति भी तैयार रखी है. अगर कुशवाहा अलग होते हैं तो बीजेपी ह्लहमह्व को ज्यादा तवज्जो देगी क्योंकि कुशवाहा समाज में प्रभाव रखने वाले शकुनि चौधरी मांझी की पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष हैं. दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर और बिहार की जातिगत राजनीति के जानकार डॉ. सुबोध कुमार कहते हैं, अगर कुशवाहा एनडीए से अलग होते हैं तो बीजेपी को नुक्सान नहीं होगा. उसकी भरपाई मांझी के आने से पूरी हो जाती है. वे कहते हैं, बिहार में अब तक 15 विधानसभा चुनावों के इतिहास को देखें तो अमूमन कोइरी और भूमिहार भावनात्मक रूप से बीजेपी के साथ ही रहे हैं. कुशवाहा को लोकसभा में जो फायदा मिला वह बीजेपी की वजह से मिला. दूसरी तरफ 11 फीसदी महादलित और 6 फीसदी पासवान वोट का ज्यादातर हिस्सा एनडीए के खाते में जा सकता है.
हालांकि बीजेपी के लिए कुशवाहा के अलावा मुश्किल पासवान खेमे से भी है क्योंकि जेडी(यू) से टूटकर मांझी की हम के साथ जुड़े कुछ विधायकों को टिकट दिए जाने को लेकर एलजेपी संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष चिराग पासवान ने शाह के सामने अपनी आपत्ति दर्ज करा दी है. ए लोग 2005 में पासवान के साथ थे, लेकिन चुनाव बाद पाला बदल लिया था. हालांकि बीजेपी का मानना है कि पासवान को मनाया जा सकता है. लेकिन उनकी ओर से बीजेपी को यह भी कहा गया है कि कुशवाहा को अगर 40-45 सीटें दी जाती हैं तो फिर उसे भी बड़ा सहयोगी होने के नाते सम्मानजनक सीटें दी जानी चाहिए. सूत्रों के मुताबिक, गठबंधन के तहत सीट बंटवारे में एलजेपी को 40-45 सीटें दी जा सकती हैं. गठबंधन में चल रही खींचतान पर विपक्ष के नेता नंदकिशोर यादव कहते हैं, ह्लपरिवर्तन यात्रा की वजह से वरिष्ठ नेता दौरे पर हैं, इसलिए हमारी बैठक नहीं हो पाई है.ह्व बिहार बीजेपी के प्रवक्ता देवेश कुमार का भी मानना है कि गठबंधन में कोई दिक्कत नहीं आने वाली और समय आने पर सीटों का तालमेल हो जाएगा.
बीजेपी ने गठबंधन में सीटों का निर्धारण अभी नहीं किया है, लेकिन उसकी कोशिश अपनी पुरानी 102 सीटों में सहयोगियों को दूर रखते हुए जेडी(यू) वाली सीट में से घटक दलों को देने की है. इसके अलावा पार्टी ने बिहार के सभी 38 जिलों में कम से कम एक सीट पर गठबंधन के किसी न किसी सहयोगी को उतारने की भी रणनीति बनाई है. जाहिर है, बिहार चुनाव में चेहरा प्रोजेक्ट करने की दुविधा में फंसी बीजेपी अब सीटों के तालमेल में उलझती दिख रही है. उसे आशंका है कि त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में एनडीए का कोई एक घटक लालू-नीतीश खेमे की ओर झुक सकता है. इसलिए पार्टी अपना हर कदम फूंक-फूंक कर रख रही है.
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