शत्रुघ्न सिन्हा की 'क्रांति' की 5 भ्रांतियां…

Shatrughan_Sinha BIHARI BABU BIHAR KATHAअमरेश सौरभ|
‘बिहारी बाबू’ का अंदाज है सबसे जुदा…
सिनेमा के पर्दे पर दूसरों को अपने खास अंदाज में ‘खामोश’ कराने वाले शत्रुघ्न सिन्हा इन दिनों अपनी पार्टी की ‘लक्ष्मण रेखा’ पार करके बयान दे रहे हैं. दरअसल, बिहार में विधानसभा चुनाव नजदीक है और शत्रुघ्न की महत्वाकांक्षा किसी से छिपी नहीं है.
सवाल उठता है कि ‘बिहारी बाबू’ सियासी जमीन पर सचमुच बड़े कद्दावर नेता हैं या वे ‘आत्म-मुग्धता’ के शि‍कार हैं. आगे सवालों के जरिए उन बिंदुओं की चर्चा की गई, जो शत्रुघ्न की मनचाही कामयाबी की राह में रोड़ा बन सकते हैं…
1. अपने सियासी कद को लेकर भ्रम तो नहीं?
शत्रुघ्न सिन्हा फिल्मी पर्दे पर चाहे ज‍ितने कामयाब रहे हों, पर उन्हें समझना होगा कि सियासत में उनका कद अभी इतना बड़ा नहीं हुआ है कि वे सीधे केंद्रीय नेतृत्व से टक्कर ले सकें. लगातार बगावती सुर से पार्टी के भीतर उनकी इमेज निगेटिव बनती जा रही है, जो उनके सियासी करियर के लिए बेहतर नहीं है.
2. नई युवा पीढ़ी पर कितना प्रभाव?
शत्रुघ्न सिन्हा अगर पाला बदलकर किसी दूसरी पार्टी का दामन थाम लें, फिर भी वे कोई खास करिश्मा कर सकेंगे, इसमें भारी संदेह है. वोटरों का बहुत बड़ा हिस्सा उस आयु-वर्ग का है, जिसने फिल्मी पर्दे पर शत्रुघ्न सिन्हा के करिश्मे को महसूस ही नहीं किया है. नई सोच वाली युवा पीढ़ी को शत्रु कितना लुभा पाएंगे? साथ ही पार्टी बदलने से उनकी छवि पर भी बुरा असर होगा.
3. जाति की नैया से होगा बेड़ा पार?
शत्रुघ्न अगर यह समझ रहे हों कि वे जाति की नैया पर सवार होकर हर बार किसी पार्टी का बेड़ा पार लगा देंगे, तो यह भी उनका भ्रम हो सकता है. जाति के मौजूदा समीकरण में उनका गणि‍त अगर फेल हो जाए, तो यह कोई अचरज की बात नहीं होगी.
4. पब्ल‍िक को नाराज करके ‘क्रांति’?
अपनी ही पार्टी के खिलाफ ‘क्रांति’ करना एक अलग बात है, पर शत्रुघ्न सिन्हा ने हाल में कुछ ऐसे कदम उठाए हैं, जो जनता के बड़े वर्ग को शायद ही रास आए. मुंबई को खून के आंसू रुलाने वाले याकूब मेमन को फांसी मिली, तो शत्रुघ्न ने ‘दया’ दिखलाने में देर नहीं लगाई. संसद की मर्यादा भंग करके लगातार शोर-शराबा करने वाले सांसदों को जब स्पीकर ने 5 दिनों के लिए बाहर का रास्ता दिखाया, तो बिहारी बाबू इससे ‘निराश’ हो गए. लगता है कि वे पब्ल‍िक का मूड भांपने में नाकाम हो रहे हैं.
5. बिन सेवा के ही ‘मेवा’ की चाह?
शत्रुघ्न बाबू ने अभी बीजेपी की उतनी सेवा नहीं की है, जितना करके कोई किसी बड़े पद का हकदार बनता है. लालकृष्ण आडवाणी जी के त्याग-तपस्या और उसके फल से वे भलीभांति वाकिफ होंगे….तो अपने निंदक की भी कुछ सुनेंगे, क्या फिर ‘खामोश’ ही रहने को कहेंगे बिहारी बाबू?  FROM- aajtak.intoday.in






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