बिहार में चुनावी रणनीति का बदलता खेल
मधुकर उपाध्याय वरिष्ठ पत्रकार
बिजनेस स्कूलों और मार्केटिंग गुरुओं के सिद्धांत जो दिखता है, वो बिकता है की कामयाबी पर किसी को संदेह नहीं है लेकिन क्या इसे राजनीतिक दलों पर लागू किया जा सकता है? क्या इस सिद्धांत के आधार पर राजनीतिक दल अपनी स्वयंसिद्ध और आजमाई हुई रणनीति छोड़ने का खतरा मोल ले सकते हैं? क्या पारंपरिक बिहार नवचेता बिहार पर आज भी भारी है? बल्कि इतना अधिक कि लौटकर उसके पास जाना सियासी जमातों की मजबूरी हो गया है? बिहार में अक्तूबर-नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव के संदर्भ में इसका कोई स्पष्ट उत्तर तो शायद न मिले लेकिन तीनों सवालों को जोड़कर देखने पर लगता है कि सारे राजनीतिक दल अभियान के सिलसिले में इस बार कुछ नया कर रहे हैं. अंतर केवल इतना है जहां सत्ता की उम्मीद में भाजपा ह्यपारंपरिकह्ण तरीकों की ओर लौट रही है, वहीं जनता दल (यूनाइटेड), राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस गठबंधन आभासी प्रयोग कर रहा है, जो उसने पहले कभी नहीं किया.
सोशल मीडिया का हथियार
ट्विटर युद्ध के महारथियों से लैस भाजपा की रणनीति बदलने के दो मुख्य कारण बताए जा रहे हैं. पहला यह कि पार्टी के दिग्गज आश्वस्त नहीं हैं कि बिहार में पहुंच के लिए सोशल मीडिया जैसा कारगर हथियार हो सकता है, जैसा वह आम चुनाव में राष्ट्रीय स्तर पर था. दूसरा कारण इसका ठीक उल्टा है. यह कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पहल करके ट्विटर और सोशल मीडिया के दूसरे हथियार भाजपा से छीन लिए.शब्द वापसी का पूरा युद्ध और डीएनए के नमूने दिल्ली भेजने के अभियान को देखते हुए भाजपा ने युद्ध के हथियार बदल देना उचित समझा. कुछ प्रेक्षकों का कहना है कि हो सकता है बिहार के चर्चित पिछड़ेपन की वजह से भाजपा समाज में नए मीडिया की पहुंच और उसके दखल के बारे में दुविधा में हो. बिहार में विधानसभा की कुल 243 सीटें हैं. 38 जिÞलों में फैली हुई. कुल क्षेत्रफल 94,163 वर्ग किलोमीटर और 2011 की जनगणना मुताबिक कुल आबादी 10.38 करोड़, जो संख्या के हिसाब से उसे देश का तीसरा सबसे बड़ा राज्य बनाती है.
परिवर्तन यात्रा और रथ
जाहिर है, बढ़Þ चलने के बावजूद बिहार में राज्य पक्षी गौरैया की बात कम सुनी जाती है. राज्य पशु बैल के सहारे इतने बड़े क्षेत्र में हर जगह पहुंचना करीब-करीब असंभव है. पहुंचे भी तो मुमकिन है तब तक अगले चुनाव का वक़्त आ जाए. राज्य पुष्प गेंदा जरूर हर जगह है पर सिर्फ़ शोभा बढ़Þाने के काम आता है.प्रधानमंत्री के भाषण और मुख्यमंत्री के डीएनए पर सवाल उठाने के बाद भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने परिवर्तन यात्रा के 200 रथों को हरी झंडी दिखाई. पहला रथ हरिहर क्षेत्र से रवाना हुआ. ये यात्राएं एक महीना चलने वाली हैं. टेम्पो-ट्रैवेलर से बनाए गए रथों की सुविधाएं, मसलन बिस्तर, फ्रिज, एसी और लालबत्ती छोड़ दीजिए तो भी इनका सीधा अंकगणित कम चमत्कारिक नहीं है. केंद्रीय रसायन मंत्री और बिहार के प्रभारी अनंत कुमार के अनुसार रथों की संख्या 160 से 200 तक होगी और इनका उद्देश्य सीधे संपर्क के साथ सकारात्मक प्रचार अभियान होगा.
जमीनी राजनीति
इस हिसाब से राज्य के हर जिÞले में चार से पांच रथ होंगे और प्रतिदिन एक सौ किलोमीटर के औसत से दिन में पांच सौ किलोमीटर चलेंगे. तीस दिन के अभियान में हर जिÞले में पंद्रह हजार किलोमीटर तय किए जाएंगे. यानी वे हर जगह दिखेंगे. कई जगह, कई बार. सारे जिÞलों में कुल मिलाकर ए रथ पांच लाख सत्तर हजार किलोमीटर चलेंगे, जिसका जवाब दूसरे खेमे को तलाश करना होगा. पिछले किसी चुनाव में ऐसा जमीनी अभियान देश ने शायद नहीं देखा होगा.बिहार में खेल बदल गया है. जो सोशल मीडिया के हिमायती थे, आभासी संसार से जमीन पर उतर आए हैं. जमीनी राजनीति करने वाले आभासी हथियार उठाए हुए हैं. किसके पांव कीचड़ में सने होंगे और किसके तीर निशाने पर लगेंगे, महीने-डेढ़ महीने में पता चल जाएगा. -बीबीसी हिंदी डॉटकॉम के से
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